अपराधों को उकसावा देने के लिए सरकार पर भी होनी चाहिए कार्रवाई

इन हिमाचल डेस्क।। कसौली में अवैध निर्माण तोड़े जाने के दौरान होटल मालिक की गोली से महिला अधिकारी की मौत ने पूरे हिमाचल को हिलाकर रख दिया है। इस हत्या से हर कोई विचलित है और रह-रहकर यही सवाल उठ रहा है कि अपना हिमाचल तो ऐसा न था, आखिर कैसे इस तरह के अपराध होने लग गए। इस घिनौने अपराध की जितनी भी निंदा की जाए, कम है। अवैध निर्माण को बचाने के लिए उस शख्स ने न सिर्फ एक बेकसूर महिला की जान ले ली, बल्कि अपना और अपने परिवार का भी जीवन तबाह कर दिया।

बेकसूर महिला ऑफिसर, जो सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन करके अपना फर्ज अदा कर रही थी, उसकी मौत के लिए सिर्फ गोली चलाने वाला वह होटल मालिक ही जिम्मेदार नहीं, बल्कि हमारे राजनेता भी बराबर के जिम्मेदार हैं, हमारी सरकारें भी जिम्मेदार हैं। इसलिए, क्योंकि राजनेताओं की वोट हासिल करने के लिए तुष्टीकरण भरी राजनीति के कारण ही यह नौबत आई है।

सरकारें देती हैं अवैध काम को संरक्षण
आप आए दिन पढ़ते होंगे कि अवैध कब्जे नियमित किए जाएंगे, होटलों को तोड़ने से बचाने के लिए कानून में बदलाव किया जाएगा, अवैध निर्माण नियमित कर दिए जाएंगे। ये फैसले करता कौन है? हमारे राजनेता, हमारी सरकारें। और यही कारण है कि इस तरह के फैसलों के कारण आम लोगों को उकसावा मिलता है कि जमकर अवैध कब्जे करो, जमकर अवैध निर्माण करो, कल को ये राजनेता वोटों के चक्कर में इसे नियमित तो कर ही देंगे।

यही हिमाचल प्रदेश में होता आया है। वीरभद्र सरकार के दौरान जब सरकारी जमीन पर अवैध कब्जों का मालिकाना हक कब्जाधारियों को दिया जाने लगा था तब ‘इन हिमाचल’ ने इसका विरोध किया था कि इस तरह से तो आप खुला संकेत दे रहे हैं कि जो अवैध कब्जा करेगा, उसकी मौज है और जो गैरकानूनी काम नहीं करता, वह बेवकूफ है (पढ़ें)। इसी तरह जयराम सरकार ने भी जब एनजीटी के आदेशों की काट निकालने के लिए अवैध निर्माण करने वाले होटलों को राहत देने के लिए कानून ही बदल डाला था, तब भी ‘इन हिमाचल’ ने इसका विरोध किया था (पढ़ें)।

लालच में आते हैं लोग
सरकारों और इन वोटों के लालची नेताओं के चक्कर में आम जनता के मन में जो लालच पैदा होता है, उसके लिए ये राजनेता और सरकारें ही तो जिम्मेदार हैं। वे सरकारी जमीनो पर अवैध कब्जे करने लग जाते हैं, उसपर घर बनाने लगाते हैं, नक्शे पास करवाए बिना इमारते खड़ी करने लगते हैं। उन्हें लगता है कि क्या होगा, सरकार छूट तो दे ही देगी इलेक्शन आते ही। इस चक्कर में अपना सारा पैसा वे फंसा देते हैं।

पहले कहां होते हैं शासन-प्रसासन?
जो काम सरकारों और प्रशासन को करना चाहिए, वह न्यायपालिका को करना पड़ता है। जब कोर्ट से इन अवैध निर्माणों या कब्जों को हटाने का आदेश आता है, तब तक लोग बहुत सारा पैसा, अपनी पूंजी लगा चुके होते हैं। सरकार और तंत्र ने उन्हें लालची बनाया होता है और अब उस लालच में वे रही सही पूंजी भी लगा बैठते हैं। ऐसे में कोर्ट के आदेश आते हैं तो सरकार और प्रशासन तुरंत कब्जों को गिराने चल पड़ते हैं। मगर वे तब कहां होते हैं जब कब्जे हो रहे होते हैं, अवैध निर्माण हो रहे होते हैं?

ताकतवर लोगों को आंच तक नहीं आती
कसौली की दुर्भाग्यपूर्ण घटना को सही ठकराने की कोशिश भी नहीं की जा सकती। हत्यारे को कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए। मगर साथ ही साथ उन लोगों को भी तो सजा होनी चाहिए जिसने उस होटल वाले को हत्यारा बनाया? हत्यारा बनाता है ये सिस्टम। हर कोई सरकार में बैठे उस मंत्री की तरह ताकतवर तो नहीं कि अपने होटल पर आंच आए तो कानून ही बदलवा दे (पढ़ें)। फिर वह क्या करेगा?

इस हत्या के मामले में न सिर्फ उस होटल मालिक को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए ताकि दोबारा कोई इस तरह की हरकत करने के बारे में सोच न पाए। साथ ही शासन और प्रशासन की भी जिम्मेदारी मानते हुए उन राजनेताओं और आला अधिकारियों पर भी मुकदमा चलना चाहिए, जो अवैध को वैध बनाने के खेल में जनता को मुफ्तखोर और अपराधी बना रहे हैं। चंद वोटों के चक्कर में इन्होंने हिमाचल को बर्बाद कर दिया है। शिमला में जंगल के जंगल साफ हो गए। देवदार काटकर सरकारी भूमि पर सेब के बागीचे लगा दिए। और सरकारें कब्जाधारियों को राहत देने के लिए नए-नए नियम लाती रहीं। अब समय आ गया है जब यह सिलसिला बंद होना चाहिए।

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