लेख: धर्मशाला में पाकिस्तान के साथ मैच का विरोध होना चाहिए

आई.एस. ठाकुर।।
 
A Wednesday मूवी में नसीरुद्दीन शाह का डायलॉग है- हम भारतीयों की याद्दाश्त बहुत कमजोर है। हमें बहुत जल्दी चीज़ों की आदत हो जाती है। एकदम सटीक डायलॉग है। हम भारतीयों को याद नहीं रहता कि कब-कब कहां पर आतंकी हमला हुआ, कितने जवान शहीद हुए, कितने परिवार उजड़े। हमें आदत हो गई अक्सर ऐसी खबरें पढ़ने-सुनने की कि फ्लां जगह पर आतंकी हमला, इतने जवान शहीद। अगले दिन से फिर लग जाते हैं इधर-उधर के कामों में।
शहादत शब्द ऐसा है, जो गर्व का चोला ओढ़ाकर मौत की विभीषिका को छिपा देता है। लोग शहीद जवानों की तस्वीरों को लाइक करते हैं, शेयर करते हैं और कॉमेंट करते हैं कि शहादत पर गर्व है, RIP, अमर रहें, भारत माता की जय और फिर अगली ही पोस्ट में होठों की आकृतियां बनाकर तुरंत सेल्फी पोस्ट कर देते हैं। झूठी देशभक्ति और झूठी संवेदनाएं दिखाती हैं कि हम कितने मतलबी हो गए हैं।
जाहिर है, पिछले समय से लगातार हो रहे हमलों को लेकर आरोप-प्रत्यारोप ज्यादा चला रहता है। लोग पूछते हैं कि कहां गया 56 इंच का सीना, तो कुछ लोग कहते हैं कि पाकिस्तान को उचित वक्त पर जवाब दिया जाएगा। कुछ लोग कहते हैं कि प्रधानमंत्री अच्छी पहल कर रहे हैं पाकिस्तान से करीबियां बढ़ाकर तो कोई आलोचना करता है कि यह क्या नौटंकी है। इन सब बातों का सच कहूं तो कोई मतलब नहीं है। राजनीति से प्रेरित बातें हैं और बेहद छिछली हैं। एक-दूसरे को नीचा दिखाने में जुटे रहने वाले लोग ऐसे मौकों पर भी कीचड़ उछालने में व्यस्त रहते हैं। अरे भैया, देश पर हमला हुआ है, एकजुटता दिखाइए। मगर नहीं, ऐसा मौका फिर कहां मिलेगा।
मैं उन लोगों में नहीं हूं जो पाकिस्तान को उड़ा देने की सोच रखता हूं। उनमें भी नहीं जो मानते हैं कि पाकिस्तान से कोई रिश्ता कोई बात नहीं होनी चाहिए। मैं हमेशा से चाहता हूं कि इस मुल्क के साथ अच्छे रिश्ते हों ताकि हम शांति से तरक्की की राह पर बढ़ें। पड़ोसी चिल्ल-पौं करता हो तो घर का माहौल ठीक नहीं रहता। वह भी तब, जब पड़ोसी के घर में पड़ी गंदगी की बदबू आपके घर तक आने लगे। पहले वहां से मक्खियां उड़कर आएंगी, फिर चूहे, कीड़े और न जाने-जाने क्या-क्या परजीवी आपके घर पर डेरा जमा लेंगे। जो गत आपके पड़ोसी की होगी, उससे बुरी आपकी होगी।
इन हालात में क्या किया जाए? क्या पाकिस्तान से बात की जाए? क्या पाकिस्तान को समझाया जाए? क्या उसके आगे गिड़गिड़ाया जाए? क्या उसके साथ युद्ध कर लिया जाए? इन सबका कोई फायदा नहीं है। पाकिस्तान को समझना होता तो समझ चुका होता। युद्ध भी हल नहीं है। नुकसान अपना भी होगा। कहावत भी है- मंगणा पिच्छे खिंदा नी फुकदे यानी खटमलों के चक्कर में खिंद (रजाई) नहीं जलाई जाती। तो क्या किया जाए?
पाकिस्तान अक्सर कहता है कि वह खुद आतंकवाद से जूझ रहा है, लिहाजा उसके ऊपर आरोप न लगाए जाएं। वह कहता है कि हमारे यहां हम किसी आतंकी को भारत नहीं भेजते, कुछ संगठन जो भारत विरोधी सोच रखते हैं, वे हमारे भी खिलाफ हैं और हम उनके खिलाफ कार्रवाई करते हैं। पाकिस्तानकी ये बातें पहली नजर बड़ी दर्द भरी लगती हैं। मगर जब भारत कहता है कि जनाब आपकी बात सही है, आप बस हमें अपने यहां जांच का मौका दे दो।
यह कहना होता है कि पाकिस्तान के सुर बदल जाते हैं। वह तुरंत आरोप लगाने लगता है। कहता है कि भारत हमारे बलूचिस्तान में अशांति फैला रहा है। फ्लां कर रहा है, ढिमाका कर रहा है। वह कश्मीर का राग आलापने लगता है और मुद्दा वहीं खत्म। पाकिस्तान के इरादों का यहीं से पता चल जाता है। अगर वह कुछ करने की इच्छा रखता तो सहयोग दिखाता। ऐसे में इसके खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए।
यह कार्रवाई कैसे हो? पाकिस्तान को बॉयकॉट किया जाए। खेल को यूं तो राजनीति व कूटनीति से अलग रखा जाता है, मगर इसे अलग न रखा जाए। क्रिकेट क्या, कोई भी खेल पाकिस्तान के साथ न हो। अन्य सारी गतिविधियां तब तक होल्ड पर डाली जाएं, जब तक पाकिस्तान को इसका नुकसान न हो। जब पाकिस्तान के खिलाड़ी, लोग औऱ जनता खुद अपनी सरकार को कोसने लगें। वे खुद अपनी हुकूमत पर प्रेशर डालें। क्योंकि वे लोग ही अपने मुल्क तो सुधार पाएंगे, वरना ऊपर वाला भी पाकिस्तान को समझा पाने में नाकाम रहेगा।
शुरुआत होनी चाहिए धर्मशाला में होने जा रहे क्रिकेट मैच से। हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला कोई असली वाली धर्मशाला नहीं है कि कोई भी उठकर चला आए। अपनी निजी हितों के लिए कुछ लोग देश की पूरी रणनीति को कमजोर कर रहे हैं। क्रिकेट मैच से पैसा बनाने के चक्कर के साथ-साथ हिमाचल की जनता को तुष्ट करके राजनीति करना चाहते हैं। ऐसे लोगों के इरादों को तुरंत समझा जाना चाहिए। हिमाचल प्रदेश के लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धर्मशाला में पाकिस्तान के साथ मैच न हो पाए। इसके लिए शांतिपूर्ण तरीके से सोशल मीडिया और प्रदेश में प्रदर्शन करना चाहिए, ताकि बीसीसीआई अपने कदम पीछे हटा ले।
जिन लोगों ने धर्मशाला को धर्मशाला बना रखा है, उन्हें सबक सिखाया जाना चाहिेए। बाकी अगर किसी को अब भी लगता हो कि खेल अलग रखना चाहिए और धर्मशाला में मैच हो, तो उसकी अपनी इच्छा। कृपया वह कॉमेंट करके बताए कि ऐसा क्यों होना चाहिए।

(लेखक आयरलैंड में रहते हैं और ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com से संपर्क किया जा सकता है।)

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