क्या कौशल विकास निगम के लिए विक्रमादित्य सिंह से अच्छा विकल्प नहीं मिला?

  • आई.एस. ठाकुर।।
ये विक्रमादित्य सिंह है कौन? इसकी क्या उपलब्धि है? कोई कलाकार है या कोई साइंटिस्ट? कोई लेखक है या कोई हुनरमंद मजदूर? कोई अधिकारी है या बिजनसमैन? इस युवक ने ऐसा क्या किया है जिससे लोग प्रेरित हो सकें? इसने कहीं पर काम किया है जो यह जान सके कि कैसे किसी के लिए कुछ किया जा सकता है?
अगर इन सब सवालों का जवाब कुछ है तो कृपया कॉमेंट में बताएं। मगर मुझे तो इनका जवाब नहीं मिला। मेरे लिए विक्रमादित्य सिंह दरअसल हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री के बेटे से बढ़कर कुछ नहीं है। जो लोग कहेंगे कि वह हिमाचल युवा कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, तो मैं उन्हें यही कहूंगा कि वह इस पद पर इसीलिए हैं क्योंकि वह वीरभद्र सिंह के बेटे हैं। इसके अलावा उन जनाब ने कोई तीर नहीं मारा जो इस पद के काबिल हैं वह। यही बात मैं अनुराग ठाकुर के लिए कहता रहा हूं, जो अपने पिता के नाम और काम की बदौलत राजनीति और क्रिकेट में आगे बढ़े थे।
पिता वीरभद्र को मिठाई खिलाते विक्रमादित्य (Outlook.com)
खैर, मैं तीखे शब्दों में यह लेख लिखने को मजबूर हूं, क्योंकि मैंने कुछ दिन पहले एक खबर पढ़ी। खबर में लिखा है- हिमाचल युवा कांग्रेस के अध्यक्ष विक्रमादित्य सिंह कौशल विकास निगम के निदेशक होंगे। निदेशक या डायरेक्टर; यानी वह इस निगम की कार्यकारी जिम्मेदारी संभालेंगे। मगर मैं यह सोचकर हैरान हूं कि एक ऐसा शख्स, जिसकी अपनी कुशलता और योग्यता का किसी को पता नहीं, वह इस पद पर क्या करेगा? क्या प्रदेश में लायक लोगों की कमी हो गई है?
मुझे विक्रमादित्य से कोई रंजिश या शिकवा नहीं है। मेरी शिकायत मौजूदा सिस्टम और राजनीति के स्तर से है। यह पदों के चेयरमैन, डायरेक्टर बनाने की परंपरा बंद होनी चाहिए। हर सरकार हारे अपनी पार्टी के हारे हुए चहेतों या अपने चमचों को इन पदों पर बिठा देती हैं। इन लोगों को मोटी तनख्वाह दी जाती है, जो कि जनता की गाढ़ी कमाई से जाती है। ये लोग करते कुछ नहीं, बस गाड़ियों में घूमते हैं, पार्टी का काम करते हैं और मौज काटते रहते हैं।
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बेहतर होता अगर कौशल विकास निगम के निदेशक के पद पर किसी ऐसे शख्स को बिठाया जाता, जो अपनी फील्ड में सफल हो। जो कम से कम 10 साल का तो अनुभव रखता ही हो किसी फील्ड में। जो इस फील्ड से जुड़ी बातों की समझ रखता हो। जिसकी कोई अच्छी क्वॉलिफिकेशन ही नहीं, अच्छी पहचान और इज्जत भी हो। और फिर उस शख्स को खुला हाथ दिया जाना चाहिए, ताकि वह कुछ क्रिएटिव कर सके। क्या कोई अच्छी राजनीति शुरू नहीं कर सकता?

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वरना बनाते रहो निगमों पर निगम, अपने बेटों और चहेतों को सेट करते रहो। आज तक यही होता आया है और आगे भी होगा। प्रदेश की जनता राजा की जय, टीका जी की जय, धूमल जी की जय, ठाकुर साहब जिंदाबाद करती रहेगी। पढ़ा-लिखा तबका यही सोचकर अलग रहेगा कि छोड़ो, हमें क्या। और घटिया, नाकाबिल और वाहियात लोग प्रदेश और देश का बंटाधार करते रहेंगे।

(लेखक आयरलैंड में रहते हैं और ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com से संपर्क किया जा सकता है।)

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