यह क्रिकेट का राजनीतिकरण नहीं, राजनीति का क्रिकेटीकरण है

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  • सर्वेश वर्मा

हिमाचल प्रदेश पिछले दिनों से चर्चा में है। चर्चा ही वजह है धर्मशाला में मैच को लेकर हुआ बवाल। मेरा मानना है कि यह मैच होना चाहिए था और इसके विरोध की कोई वजह नहीं थी। जिन लोगों ने भी इसका विरोध किया, वे ठोक वजह नहीं बता सके। नेताओं से पूछा गया कि आप क्यों विरोध कर रहे हैं, तो उनका कहना था कि शहीदों के परिवार विरोध कर रहे हैं, इसलिए उनकी भावनाओं का सम्मान होना चाहिए। शहीदों के परिजनों के मन में गुस्सा क्यों था, यह बात समझ आती है। उन लोगों की भावनाओं पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, क्योंकि उन्होंने अपना खोया है। पूर्व सैनिक होने के नाते मैं इस बात को समझ सकता हूं।

मैच रद्द होने के बाद एक अलग ही हाल सोशल मीडिया पर देखने को मिल रहा है। बीजेपी और कांग्रेस के दो खेमे आपस में पहले बहस किया करते थे, अब मैच समर्थनक और मैच विरोधी खेमे हो गए हैं। क्रिकेट ने राजनीति की दूरियों को पाट दिया है। अब मैच एक बड़ा मु्द्दा हो गया है। प्रदेश के नेताओं पर छींटाकशी हो रही है, अभद्र भाषा इस्तेमाल हो रही है। गिरने के चरम स्तर तक गिरकर आरोप लगाए जा रहे हैं। छुटभैय्ये नेता तो छोड़िए, बड़े नेताओं के परिजन तक इस कीचड़ में कूद चुके हैं।

आज मैंने हिमाचल के पूर्व मुख्यमंंत्री प्रेम कुमार धूमल के छोटे बेटे और BCCI सचिव अनुराग ठाकुर के छोटे भाई अरुण की फेसबुक पोस्ट देखी तो विचलित हो गया। मैच रद्द होने से मैं भी आहत हुआ हूं, मगर जिस तरह की भाषा अरुण ने इस्तेमाल की है, वह चौंकाने वाली है। राजनीति में आने के लिए डेस्परेट दिखने वाले अरुण कई बार पहले भी वीरभद्र सिंह के प्रति असंयमित होकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर चुके हैं। मगर इस बार उन्होंने अपनी ही पार्टी के सीनियर नेता पर निशाना साधा है।

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अरुण ठाकुर (फेसबुक टाइलाइन से साभार)

अरुण ठाकुर के पिता प्रेम कुमार धूमल जिस नेता की उंगली पकड़कर राजनीति में आए थे, आज अरुण उसी पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं। वह लिखते हैं-

‘जिन लोगों के विक्रम कुछ नहीं कर पाए उनके गठबंधन ने एक फ़्रॉड विनय को गोद लेके इस प्रदेश के साथ इतना बड़ा धोखा कर दिया । इस प्रदेश में यह ना हो वो ना हो, क्या यही राजनीति होगी या है कोई इस बात की भी चिंता करेगा कि क्या हो सकता है। प्रदेश के लोग तय करें जो लोग केवल अपना या अपने परिवार का कायाकल्प करते हैं वो लोग चाहिए या वो जो इस प्रदेश का कायाकल्प करने का मादा रखते हैं वो ।।
इन चार पंक्तियों में प्रदेश की राजनीति का सार है ।। उम्मीद है आप सब समझ गए होंगे। आप सब के विचार आमंत्रित हैं । जय हिंद जय हिमाचल ।।’


ऊपर जो शब्द मैंने बोल्ड किए हैं, वे पालमपुर में शांता कुमार द्वारा चलाए जा रहे ट्रस्ट के नाम की तरफ इशारा करते हैं। गौरतलब है कि शांता कुमार ने इस मैच का विरोध किया था। जिस तरह से मैच के समर्थन या विरोध को लेकर हम सभी की अपनी राय हो सकती है, उसी तरह से शांता कुमार की राय भी हो सकती है। मगर जब आर राजनीति में एक पार्टी का सहारा लेकर आने की इच्छा रखते हैं, उसी पार्टी के पितामहों पर निशाना साधना आपको शोभा नहीं देता।

जिन लोगों के विक्रम कुछ नहीं कर पाए उनके गठबंधन ने एक फ़्रॉड विनय को गोद लेके इस प्रदेश के साथ इतना बड़ा धोखा कर दिया । …
Posted by Thakur Arun Singh on Wednesday, March 9, 2016

ऐसी ही एक पोस्ट नीरज भारती की देखी। उस पोस्ट में नीरज भारती ने अनुराग ठाकुर को छक्का कहा है। आपत्ति इस बात से नहीं है कि अनुराग ठाकुर को छक्का कहा गया। छक्का कहना दिखाता है कि नीरज भारती की समझ का स्तर कितना है। छक्का शब्द हिंदुस्तान औऱ पाकिस्तान में उस तबके के लिए अपमानजनक रूप से कहा जाता है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तृतीय लिंग या थर्ड जेंडर की पहचान दी है। वे हमारी और आपकी ही तरह इंसान हैं। अब तक वे उपेक्षित होते रहे, उस बात के लिए, जिसमें उनकी कोई गलती नहीं। उन्हें छक्का कहना और उनका उपहास उड़ाना सभ्य समाज को शोभा नहीं देता। इसी तरह से किसी और इसी तरह के शब्द संबोधित करना मानसिक दिवालियेपन की ही निशानी है। वैसे भी नीरज भारती के बारे में कुछ कहना भी बेकार लगता है। मुख्मंत्री ने उन्हें हिमाचल कांग्रेस का ब्रैंड ऐंबैसडर बना रखा है।

कुछ भारतीय जनता पार्टी के अंधभक्त भौंकु इस छक्के को HPCA का शेर कह रहे हैं बिल्कुल ठीक कह रहे हो अंधभक्त भौंकुऔं ये सिर…
Posted by Neeraj Bharti on Tuesday, March 8, 2016

मैं कभी राजनीति में नहीं पड़ा, न ही मेरी रुचि रही कभी। मगर मैंने सजग नागरिक होने के नाते प्रदेश की राजनीति पर नजर रखी है। वीरभद्र और शांता कुमार में लाख बुराइयां सही। इन बुुजुर्ग नेताओं ने हिमाचल के मौजूदा स्वरूप को आकार देने में महत्वूर्ण भूमिका निभाई है। शांता कुमार ने जो नीतियां बनाईं, उनमें से बहुतायत आज भी प्रदेश में फॉलो की जा रही हैं। वीरभद्र ने भी उन नीतियों को सराहा है और उन्हें जारी रखा है। इन नेताओं को पसंद करना या न करना आपके वश में है। उनकी आलोचना भी होनी चाहिए, मगर तथ्यों एवं तर्कों के आधार पर। व्यक्तिगत लांछन लगाकर नहीं।

यह अफसोस की बात है कि प्रदेश में लाँछन लगाने की राजनीति चरम पर है। अरुण ठाकुर की ही बात की जाए तो वह बीजेपी के मंच से कभी कुछ नहीं बोलते। कभी नीतियों पर चर्चा नहीं, फैसलों पर राय नहीं। मगर जब उनके पिता या भाई को लेकर कोई सवाल उठे, तो हिमाचल भाजपा उन्हें आगे कर देती है और पार्टी के मंच से वह वीरभद्र पर निशाना साधते हैं। फिर दोबारा गायब हो जाते हैं। अब एक कदम बढ़कर उन्होंने उस शख्त पर हमला कर दिया, जिसने प्रदेश में पार्टी को स्थापित किया है।

मैच तो एक बहाना है। प्रदेश में क्रिकेट के नाम पर जिस तरह से राजनीति हो रही है, वह अफसोसनाक है। असल मुद्दे गायब हैं। बजट पर कोई चर्चा नहीं, लोगों की समस्याओं का कोई जिक्र नहीं, बस मैच की चिंता है। अफसोस, उम्मीद थी कि राजनीति बदलेगी। मगर यह नहीं पता था कि राजनीति का क्रिकेटीकरण हो जाएगा।

(लेखक पूर्व सैनिक हैं और इन दिनों एक निजी यूनिवर्सिटी में अध्यापन कार्य कर रहे हैं।)