आखिर क्यों हम युवाओं के कंधों पर टिका है स्वच्छ भारत का सपना ?

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  • प्रज्ज्वल बस्टा।।

दुष्यंत  और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से जाने जाता हमारा देश भारत आज स्वतंत्रता के 67 साल बाद एक नई करवट ले रहा है। जब पिछले साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वछ भारत की कल्पना का दर्शन दिया तो वास्तव में पूरा देश एक नए प्रण के लिए उमड़ पड़ा।  सच में 2 अक्टूबर 2014  का दिन भारत के लिए महत्वपूर्ण था। महात्मा गांधी की जयंती, उनका स्वप्न और युवा पीढ़ी का उत्साह; सब कुछ अछा होता दिख रहा था, जब प्रधानमंत्री जी ने 9 स्वच्छता प्रहरी नियुक्त किए और वो भी युवा। मुझे वास्तव में विश्वास हो गया कि यह स्वछता अभियान अब जनांदोलन बन जाएगा, क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने इसे सफल बनाने के लिए युवा पीढ़ी को चुना है।
  

आज का युवा आज का नागरिक है, जो नए भारत की तस्वीर है। जींस-टीशर्ट पहनकर या संजीदगी से इस्त्री किए हुए पहनावे में युवा वर्ग भारत की पहचान है। भारत ने जब-जब युवा पीढ़ी पर भरोसा किया, तब-तब इस देश ने वैभव को पाया है।  आखिर लाल बहादुर शास्त्री ने किस से एक समय भोजन की अपील की थी? आखिर लोक नायक जय प्रकाश  ने आपातकाल का विरोध  क्यों युवाओं के कंधे पर दिया था? आखिर कंप्यूटर के माउस पर थिरकते इन हाथों ने जब झाड़ू उठाया तो सोच समझकर ही उठाया है।
  
स्वच्छता से जहां देश की अवधारणा का सम्मान बढ़ेगा, वहीँ देशवासियों की सेहत का मान रखना भी हमारा ही कर्तव्य है। हम जानते है कि गंदगी और गरीबी का चोली दामन का साथ है।  स्वस्थ मन में स्वस्थ शरीर निवास करता है परन्तु स्वच्छ परिवेश में  स्वस्थ  शरीर ही नहीं, बल्कि स्वस्थ मन दोनों निवास  करते हैं। स्वछता से जहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, वहीँ रोजगार के अवसर सृजित होंगे। जो सीधे सीधे युवा पीढ़ी को सम्बल देंगे , आखिर युवा जैसा खुद को देखना चाहता है वैसे ही अपने देश को भी देखना चाहता है, रोजगार और आर्थिक संबल से स्वयं को सशक्त कहीं पर्वत झुके भी हैं,  कहीं दरिया रुके भी हैं।

‘नहीं रुकती रवानी है, नहीं झुकती जवानी है’ – शायद इसी बात को देख कर यह अभियान युवा पीढ़ी ने अपने हाथों में लिया है।  हम गंदगी के कारण बढ़ते रोगों को अब देख नहीं सकते , हम कूड़े  के ढेर पर लिपटे अपने शहर को लज्जित होते कब तक देखेंगे , कब तक सांप सपेरों के देश की बात हम विदेशों से सुनते रहेंगे? 




अगर आज युवा पीढ़ी ने यह संकल्प हाथ में लेने से कोताही की तो घर घर गंदगी के ढेर लगे होंगे, हर शहर, हर क़स्बा कूड़े के ढेर में खोता हुआ दिखेगा। हमारे महानगर अपने अस्तित्व को धिक्कारते हुए नज़र आएंगे और तब,  हम अपने ही  साये से घबराने लगेंगे।  इसलिए समय रहते मित्रो हमे आगे आना ही होगा, इस अभियान को देश शहर परिवार और अपने लिए सफल बनाना ही होगा। आओ इस अभियान को जान आंदोलन बना सफल करें।
स्वच्छता वास्तव में व्यवहार है, जैसे नियमों का पालन व्यवहार है, सड़क पर बाएं चलना व्यवहार है, रोज घर में सफाई व्यवहार है। व्यवहार परिवर्तन एक दिन में नहीं हो सकता, जिनका बंद शौचालय में दम घुटता हो वो एक दिन में खुले में शौच की प्रथा छोड़ देंगे, यह सम्भव नहीं। परन्तु असंभव भी नहीं क्योंकि युवा असम्भव को सम्भव करना जनता है। समझता है उन तौर तरीकों को कि कैसे समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है।
  
युवाओं को जब भी मौका मिला है, उन्होंने पूरे विश्व मैं अपनी क्षमता से अधिक परिणाम दिए हैं। अभी हाल ही में हॉन्ग-कॉन्ग का आंदोलन युवाओं ने ही तो लड़ा। स्वच्छता की बात करें तो बांग्लादेश में भारत की तरह ही खुले मैं शौच का चलन था, उसे ख़त्म करने के लिए युवा ही तो आगे आए थे। युवा प्रकृतिक तौर पर नेता होते हैं, सबको साथ लेकर चलना  युवाओं का महत्वपूर्ण गुण है।

हम अपने घरों में झांक कर देखेंगे तो पाएंगे कि युवा ही स्वच्छता की बागडोर संभाल रहा है। गांवों में बावड़ी और चश्मे गंदे हैं, सूखे है तो वे अपने युवा साथियों को निहार रहे हैं। आखिर यह सड़कें यह शहर यह कार्यालय भी तो युवा वर्ग से आस लगाए बैठें हैं कि कब नौजवान उठेगा और क्रांति आएगी। इंतजार है कि यह भारत फिर से आजाद हो जाएगा और यह आजादी गंदगी से होगी। यह आज़ादी  बीमारियों से होगी, यह आज़ादी खुले में शौच करने की आदत से होगी, यह आज़ादी व्यववहार से होगी। युवाओ के बारे में एक बात कहकर मैं अपनी बात समाप्त करना चाहूंगी-

‘हम वो पत्ते नहीं जो आंधियों के डर से शाख से गिर जाएं 
आंधियों को कहना कि अपनी औकात में रहे।’  


(लेखिका सामाजिक मुद्दों पर आवाज बुलंद करती रहीं हैं एवं हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से लॉ कर रहीं हैं। उनसे  prajwalbusta@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)