ज्वाला वाले धवाला आखिर क्यों बन गए हैं ऐंग्री मैन

रमेश धवाला

कांगड़ा।। ज्वालामुखी के विधायक रमेश धवाला शनिवार को नगर परिषद के कार्यालय में मनोनीत पार्षदों के शपथ ग्रहण में पहुंचे थे। जैसे ही विधायक कार्यालय में पहुंचे तो कार्यालय में चरमराई व्यवस्थाओं को देख कर आग बबूला हो गए। कार्यालय के एक कमरे में चारपाई लगी हुई थी। फिर क्या था विधायक ने जमकर कर्मचारियों पर गुस्सा निकाला। विधायक ने बाकी के कमरे भी खुद जाकर देखे।

इससे पहले रमेश धवाला और उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह के बीच विधानसभा में तीखी नोकझोंक देखने को मिली है। धवाला ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा कि ये विकास से जुड़ा मुद्दा है। मुझे उम्मीद है आप बुरा नहीं मानेंगे, क्योंकि आप मेरे उत्तराधिकारी हैं। धवाला ने सदन में मामला उठाया कि किस प्रकार कानूनी तरीके से हो रहे खनन कार्यों में अड़चनें आ रही हैं।

अपने सम्बोधन के अंत में धवाला ने उद्योग मंत्री को यह भी कहा मैं आपके बड़े भाई की तरह हूँ, आप मेरी बात का बुरा न मानें। मगर इसमें सुधार करें। अगर आपने सुधार नहीं किया तो मैं संघर्षशील हूं। जिसके जवाब में उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह ने कहा कि मैं मानता हूं आप ईमानदार हैं और संघर्षशील भी हैं। लेकिन मैं भी यहां आया हूँ और मैंने भी ईमानदारी से काम किया है। मैं भी संघर्षशील हूं। 23 साल मुझे राजनीति में हो चुके हैं। आपके आशीर्वाद से मुझे पहली बार मौका मिला है। आपने मना किया तभी मैं मंत्री बना, नहीं तो आप बनते, क्योंकि हमारा क्षेत्र एक ही है।

धवाला ने कहा कि पंचायतों में सीमेंट सेट हो रहा है। पंचायत वालों के फोन आ रहे हैं। डेढ़ महीने से बजरी-रेत नहीं है। ऐसे में लेबर क्या करेगी। मनरेगा में लगाने की मांग लेकर मेरे पास भी लोग आते हैं। उन्होंने कहा कि पंजाब से चोरी का माल आ रहा है। इससे सरकार को क्या मिल रहा है।

जवाब में उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह ने कहा कि मैनुअल लोडिंग के बजाय मेकेनिकल लोडिंग की हम अधिसूचना जारी कर रहे हैं। नूरपुर और इंदौरा में राज्य प्रदूषण बोर्ड की कोई अलग शर्त नहीं है। बरसात में क्रशर चलाने पर कोई प्रतिबंध नहीं है।

बजट सत्र में भी घेरी थी सरकार

इससे पहले विधायक रमेश धवाला मार्च महीने में हुए बजट सत्र के दौरान भी अपनी सरकार को घेर चुके हैं। उस दौरान धवाला ने कहा था कि कई विभागों में अफसरों की फौज है, लेकिन कर्मचारियों की भारी कमी है। उन्होंने एचआरटीसी का उदाहरण देते हुए कहा था कि निगम में करीब 50 आरएम हैं, लेकिन ड्राइवर और कंडक्टर के पद भारी संख्या में खाली हैं। यही सबसे बड़ा कारण है कि आज प्रदेश में कई निगम और बोर्ड घाटे में चल रहे हैं। अफसरों की फौज खड़ी हो गई है, निगम-बोर्ड घाटे में हैं। इनके लिए काम ढूंढना चाहिए।

बजट पर चर्चा में भाग लेते हुए धवाला ने अफसरशाही पर नकेल कसने और फिजूलखर्ची पर भी रोक लगाने की भी मांग की थी। उन्होंने कहा था कि प्रदेश में नेताओं के अलावा अधिकारियों द्वारा गाड़ियों के फिजूल इस्तेमाल पर भी लगाम लगाने की जरूरत है। गाड़ियों की माइलेज कागजों में कुछ और भरी जाती है, जबकि होती कुछ और है।

इससे पहले 2018 में भी विधानसभा सत्र के दौरान विधायक रमेश धवाला और मंत्री सरवीण चौधरी के बीच बुढ़ापा पेंशन को लेकर नोकझोंक देखने को मिली थी।

धवाला की मंत्री बनने की इच्छा

यूँ तो रमेश धवाला तीन बार प्रदेश कैबिनेट में मंत्री रह चुके हैं। लेकिन अभी भी मंत्री बनने की ख्वाहिश भी रखते हैं। धवाला का मंत्री बनने का दर्द 2019 में उस समय छलका था जब प्रदेश कैबिनेट के दो मंत्रियों अनिल शर्मा और किशन कपूर ने इस्तीफा दिया था। उस दौरान भाजपा नेता कैबिनेट में खाली इन दो पदों के लिए जद्दोजहद कर रहे थे। भाजपा के विधायक मंत्रीपद के लिए अपनी-अपनी लॉबिंग में जुटे हुए थे। उस दौरान धवाला ने कहा था कि मंत्री बनने की इच्छा मेरी भी है, वैसे कईयों ने नए कोट सिलवा लिए हैं। अब ये सीएम जयराम ठाकुर के हाथ में है कि वह किसके नाम पर मुहर लगाते हैं।

उस दौरान धर्मशाला में चल रहे विधानसभा के शीतकालीन सत्र के दौरान धवाला ने यह भी कहा था कि मंत्री बनने की दौड़ में एक नहीं, अनेक नेता भाग रहे हैं। उन्होंने कहा था कि वह पहले भी मंत्री रह चुके हैं और अपना काम पूरी निष्ठा से किया है। वह अपने काम के प्रति ईमानदार हैं। पर अब दूल्हा कैसे कह सकता है कि मेरी शादी करवा दो। इसी दौरान, वह बातों-बातों में कह गए थे कि कहीं ना कहीं उनके मन में भी मंत्री बनने की इच्छा है।

भाजपा से खफा होकर निर्दलीय लड़ा चुनाव

रमेश धवाला यूं तो जीवन भर बीजेपी के नेता रहे। लेकिन 1998 के विधानसभा चुनावों में जब ज्वालामुखी सीट से टिकट मांगा तो पार्टी ने नहीं दिया। जिसके बाद चुनाव में निर्दलीय उतरे और जीत भी गए। सरकार बनाने के लिए 33 विधायक चाहिए थे। कांग्रेस ने धवाला को अपने साथ लेकर सरकार बनाने का दावा पेश किया था। लेकिन धवाला ने पाला बदल दिया और भाजपा का दामन थाम लिया। यही वो समय था जब वीरभद्र सिंह को मात्र दो हफ़्तों में ही सीएम पद छोड़ना पड़ा था।

कांग्रेस नेताओं पर लगाया था किडनैपिंग का आरोप

उस दौरान धवाला ने कांग्रेस नेताओं पर उन्हें जबरदस्ती हॉली लॉज ले जाने का आरोप लगाया था। धवाला ने कहा था कि 22 मार्च 1998 को शिमला के पीटरहॉफ में रात 9.40 बजे तत्कालीन भाजपा प्रदेश प्रभारी नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में भाजपा-हिविकां गठबंधन को समर्थन देने का निर्णय हुआ। इससे पहले मुझे पार्टी ने ज्वालामुखी सीट से भाजपा टिकट नहीं दिया था। मैंने लोगों की मांग पर निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीता। चुनाव जीतने के बाद चार मार्च को चंडीगढ़ होते हुए शिमला जा रहा था कि कालका के पास सरकारी अधिकारियों और कांग्रेस नेताओं ने मुझे रोक लिया और जबरन होलीलॉज शिमला लेकर आ गए।

धवाला ने कहा था कि रात को प्रदेश हाईकोर्ट के निकट सिली चौक का वह मंजर मैं आज तक नहीं भूला हूं जब मेरे और समर्थकों के साथ हाथापाई हुई थी। हॉली लॉज पहुंचने के बाद कांग्रेस को समर्थन देने के अलावा दूसरा विकल्प नहीं था। उस समय मेरे राजनीतिक आदर्श शांता कुमार केंद्र सरकार में मंत्री थे। उनका पत्र आया और मुझसे भाजपा को समर्थन देने की बात हुई। मैं तब भी भाजपाई था और आज तक भाजपा मेरी पार्टी है।

विधानसभा में कपड़े उतार कर दिखाए थे पीठ पर निशान

विधानसभा में रमेश धवाला ने कपड़े उतार कर पीठ पर निशान दिखाए थे। उनका आरोप था कि कांग्रेस नेताओं द्वारा उनसे मारपीट कर जबरन समर्थन लिया गया था। धवाला वीरभद्र सरकार में पांच मार्च को कैबिनेट मंत्री बने थे। उसके बाद 24 मार्च को धूमल सरकार में भी कैबिनेट मंत्री पद की शपथ ली थी।

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