जहां से शव वाहन गुजरा, नगर निगम शिमला वो सड़क ही कर डाली ‘सैनिटाइज़’

शिमला।। कोरोना के कारण जिस समय पूरा देश एक-दूसरे के सहयोग के लिए आगे आ रहा है, उस समय हिमाचल प्रदेश में सरकारी महकमों के बीच टोपी ट्रांसफर का खेल चल रहा है। आईजीएमसी में कोरोना पीड़ित युवक की मौत के बाद जब दाहसंस्कार की बारी आई तो अजीब हाल देखने को मिला।

आईजीएमसी की टीम रात लगभग 11 बजे सरकाघाट के युवक के शव को श्मशान घाट छोड़ आई। नगर निगम शिमला भी शुरुआत में टालमटोल करता रहा। देर रात तक एसडीएम सिटी नीरज चांदला वहाँ रहीं। उन्होंने अधिकारियों को जानकारी दी तो नगर निगम के कर्मचारी पीपीई किट पहनकर वहाँ पहुँचे। इसके बाद देर रात अंतिम संस्कार हो पाया।

इस पूरे मामले को लेकर अब नगर निगम के आयुक्त ने सफाई में जो बातें कही हैं, वे हैरान करने वाली हैं। इससे ये भी पता चलता है कि कैसे महकमे अपनी जिम्मेदारी से बच रहे हैं और कोरोना को लेकर या तो उन्हें ज्ञान नहीं है या फिर पता होते हुए भी सरकारी पैसे की बर्बादी कर रहे हैं। इनमें से एक है- सड़क को ही ‘सैनिटाइज’ कर देना।

क्या किया नगर निगम ने
बुधवार को पूरे हिमाचल के मीडिया में यह मामला उछला कि नगर निगम ने युवक के अंतिम संस्कार से दूरी बना ली। इसे लेकर निगम के संयुक्त आयुक्त अजीत भारद्वाज ने एक समाचार पत्र से कहा है कि उन्होंने गाइडलाइन के अनुसार काम किया है। उन्होंने कहा, “रात नौ बजे तक जिला प्रशासन की ओर से संपर्क नहीं किया। जब एक वेबसाइट से हमें जानकारी मिली तो तैयारी की। दस बजे ही एक अधिकारी की अगुवाई में छह कर्मचारी मौके पर भेजे थे। आईजीएमसी से लेकर कनलोग तक की सड़क को सैनिटाइज किया। सुबह भी सैनिटाइजेशन की है।”

अजीत भारद्वाज ने कहा कि सड़क को आईजीएमसी से लेकर शवदाहगृह तक सैनिटाइज किया गया है। यह हैरानी की बात है कि ऐसा करने की आखिरी जरूरत क्या थी। जब शव को वाहन में ले जाया गया तो सड़क को सैनिटाइज़ क्यों किया गया? क्या नगर निगम के अधिकारियों को नहीं मालूम कि वायरस कैसे फैलता है, कैसे नहीं? जहां शव को रखा गया,जिस वाहन में ले जाया गया, उन्हें सैनिटाइज़ करना तो समझ आता है। ऐसा तो था नहीं कि शव से वायरस सड़क पर फैल रहा हो। ऐसा किस दिशानिर्देश के तहत किया गया?

आईजीएमसी से कनलोग की दूरी लगभग आठ किलोमीटर है। इतनी लंबी सड़क को ढंग से सैनिटाइज यदि करना भी हो तो कितना पानी (जिसमें ब्लीचिंग पाउडर घोला जा रहा है) लगेगा, यह आप अंदाज़ा लगा सकते हैं। और नगर निगम के लॉजिक के हिसाब से अगर सड़क में वायरस हो सकता है तो आसपास के वाहनों और घरों में भी तो हो सकता है। फिर वहाँ आपने क्या किया?

हालाँकि, यह स्पष्ट है कि यह वायरस स्वतंत्र रूप में हवा में ट्रैवल नहीं करता। व्यक्तियों के छींकने, खाँसने या उनके थूक आदि शारीरिक द्रव्यों के संपर्क में आने पर ही कोरोना संक्रमण फैलने का ख़तरा होता है। इस संबंध में सरकार ने भी कहा है कि WHO के दिशा-निर्देशों का पालन किया जाए। ये दिशा निर्देश कहते हैं कि यदि किसी की मौत कोरोना या से हुई है तो उसका पोस्टमॉर्टम करते समय फेफड़ों को सही से हैंडल करना चाहिए। साथ ही, अंतिम संस्कार के समय भी सावधानी बरतनी चाहिए और शरीर से निकले किसी भी तरल के संपर्क में नहीं आना चाहिए। ऐसा कोई दिशा निर्देश नहीं है कि सड़क को भी सैनिटाइज किया जाए क्योंकि यह बेतुका काम है। अगर शव दाहगृह 50 किलोमीटर होता तो क्या पूरी सड़क पर छिड़काव करती फिरती नगर निगम की टीम?

बहरहाल, नगर निगम के अधिकारी भारद्वाज ने अखबार को दिए इंटरव्यू में एक सवाल के जवाब में कहा कि निगम का केंद्र की गाइडलाइन के अनुसार कोई रोल नहीं है और दिल्ली में भी ऐसा हो चुका है। उन्होंने कहा कि ‘केंद्र और डब्ल्यूएचओ के दिशानिर्देशों में यह स्पष्ट है कि नगर निगम सैनिटाइजेशन करेगा और पीपीई किट मुहैया करवाएगा।’

फिर जब उनसे पूछा गया कि ऐसा था तो आपने बाद में कर्मचारी क्यों भेजे, तो उनका कहना था कि यह लड़ाई का समय नहीं, हमें मिलकर काम करना है और आगे भी मिलकर काम करेंगे। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि नगर निगम का काम पीपीई किट देना है। मगर जब उनसे पूछा गया कि शवदाहगृह के कर्मचारियों के पास किट नहीं थे तो उन्होंने कहा, “ये शवदाहगृह हमारे अधीन नहीं हैं, कमेटियों के अधीन हैं। इन्हें पीपीई किट न देने का सवाल है तो ये बात पहले बतानी चाहिए थी। हमने कर्मचारियों को ये किट मुहैया करवाई है और एक-दो दिन में सभी शवगृहों के कर्मचारियों को देंगे।”

इस घटनाक्रम से साफ़ है कि सरकार को पहले तो अपने अधिकारियों को बताना चाहिए कि कहां उन्हें क्या करना है, क्या नहीं। इससे पहले तो ये बताया जाए कि वायरस कैसे फैलता है, कैसे नहीं।

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