शिमला।। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के आधिकारिक फेसबुक पेज पर हुई एक बड़ी चूक चर्चा का विषय बन गई है। शनिवार को सीएम के पेज पर एक पोस्ट में बिजली विभाग के उन कर्मचारियों का जिक्र किया गया था जिन्होंने भारी बर्फबारी के बाद बिजली आपूर्ति बहाल की थी। इन कर्मचारियों ने तीन फुट गहरी बर्फ पर चलकर यह काम किया। मुख्यमंत्री ने इस काम के लिए कर्मचारियों की तारीफ की और यह बताया कि इन्हें प्रशस्ति पत्र से सम्मानित किया गया है। मगर समस्या यह थी कि सीएम के मुताबिक ये कर्मचारी लाहौल स्पीति के थे जबकि सरकार के सूचना एवं जन संपर्क विभाग के अनुसार, ये कर्मचारी शिमला जिले के डोडरा क्वार के थे।
सरकार का विभाग कर्मचारियों को डोडरा क्वार (शिमला) का बता रहा था जबकि सीएम के अनुसार ये लाहौल स्पीति के थे। इस विरोधाभासी जानकारी के कारण पत्रकारों में भी असमंजस बना रहा कि डोडरा क्वार के कर्मचारियों को प्रशस्ति पत्र दिया गया या फिर लाहौल स्पीति के। असमंजस की यह स्थिति रविवार सुबह टूटी जब सीएम के पेज पर पोस्ट को एडिट करके डोडरा-क्वार लिखा गया। यानी पहले गलत जानकारी पोस्ट कर दी गई थी। सीएम के पेज पर सम्बंधित पोस्ट की एडिट हिस्ट्री में जाकर इसे देखा जा सकता है।
मामूली नहीं है यह चूक
मुख्यमंत्री के आधिकारिक फेसबुक पेज पर सबकी निगाहें रहती है। मगर पिछले कुछ समय से देखने को मिल रहा है कि इसमें काफी गलतियां होती हैं। अधिकतर गलतियां भाषा और वर्तनी की होती हैं जिन्हें नजरअंदाज भी किया जा सकता है। मगर तथ्य ही गलत हों तो फिर चिंता पैदा होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि सीएम या बड़े नेता अपने सोशल मीडिया हैंडल्स पर हर पोस्ट स्वयं डालें, यह संभव नहीं होता। ऐसे में उनके सोशल मीडिया हैंडल्स को संभालने वालों पर एक बड़ी जिम्मेदारी होती है कि वे जो भी पोस्ट करें, वह तथ्यों पर आधारित हो।
जब टीम की लापरवाही से मुश्किल में फंसे थे वीरभद्र
सोशल मीडिया पर की जाने वाली गलतियां पहले भी नेताओं को मुश्किल में डालती रही हैं। एक उदाहरण तो हिमाचल प्रदेश का ही है जब दिवंगत वीरभद्र सिंह हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे। 2017 में जब कोटखाई रेप ऐंड मर्डर केस, जिसे सभी गुड़िया कांड के नाम से जानते थे, पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ था और प्रदेश के लोगों की भावनाएं भी उफान पर थीं।
दोषियों को पकड़ने की मांग को लेकर प्रदेश भर में प्रदर्शन हो रहे थे। इसी बीच वीरभद्र सिंह के फेसबुक पेज पर कुछ लोगों की तस्वीरें पोस्ट करके कहा गया कि इन दोषियों को पकड़ लिया गया है। बाद में इन तस्वीरों को हटा दिया गया। जब लोगों ने पाया कि पुलिस द्वारा पकड़े गए लोग उन लोगों से अलग हैं जिनकी तस्वीरें पोस्ट की गई थीं तो यह अवधारणा बन गई कि असल दोषियों को बचाने की कोशिश की जा रही है। तब सुखविंदर सिंह सुक्खू कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष थे। उनका कहना था कि सीएम के पेज से कुछ संदिग्धों के फोटो शेयर होने और बाद में पुलिस द्वारा अन्य आरोपियों को पकड़ने से ही जनता उग्र हुई।
तस्वीरों को पोस्ट करने और हटाने के कारण ही आज भी लोगों और गुड़िया के परिजनों तक का मानना है कि असली दोषी अभी भी खुलेआम घूम रहे हैं। नतीजा यह हुआ कि लोग सड़कों पर उतर आए और यह मामला एक बड़ा राजनीतिक विषय भी बन गया। राजनीतिक विश्लेषकों का यह भी मानना है कि सीएम के पेज पर हुई इस गतिविधि का नुकसान कांग्रेस को 2017 के चुनावों में भी झेलना पड़ा था।
तब मुख्यमंत्री के पेज पर ऐडमिन की तरफ से एक पोस्ट के जरिए सफाई दी गई थी कि तस्वीरें टेक्निकल एरर की वजह से अपलोड हुई थीं और कुछ ही सेकंडों के अंदर हटा ली गई थीं। मगर लोगों ने सवाल उठाते थे कि कौन सी अनोखी टेक्निकल एरर है कि अपने आप ही फोटो फेसबुक पर अपलोड हो गए। सीबीआई ने गुड़िया प्रकरण की जांच के दौरान उस समय वीरभद्र सिंह के सोशल मीडिया हैंडल्स को संभालने वालों से पूछताछ भी की थी।
भरोसा कायम रखने के लिए गंभीरता जरूरी
देखा जा रहा है कि प्रदेश सरकार का सूचना एवं जन सम्पर्क विभाग भी ऐसे विषयों को लेकर सचेत नहीं है। मुख्यमंत्री के नाम को कहीं सुक्खू लिखा जा रहा है तो कहीं पर सुखु। वैसे तो सोशल मीडिया पर सभी से यह अपेक्षा की जाती है कि वे कुछ भी शेयर करने से पहले शत प्रतिशत आश्वस्त हों कि वे प्रामाणिक बातें ही शेयर करें। मगर नेताओं, अधिकारियों और विभागों आदि पर तो यह जिम्मेदारी और भी ज्यादा होती है। वरना सोशल मीडिया पर बरती जाने वाली लापरवाही राजनेताओं, पार्टी, सरकार और यहां तक कि पूरे सिस्टम की साख को खत्म कर सकती है।