जब धूमल के खास रहे बिंदल को छोड़ना पड़ा था स्वास्थ्य मंत्री का पद

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शिमला।। बीजेपी नेता राजीव बिंदल को ताजपोशी के साढ़े चार महीनों में ही पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का पद छोड़ना पड़ा है। एक वायरल ऑडियो के आधार पर स्वास्थ्य निदेशक अजय गुप्ता व पृथ्वी सिंह नाम के शख्स की गिरफ्तारी के बाद बिंदल ने ‘नैतिक मूल्यों’ का हवाला देकर इस्तीफा सौंपा था जो राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्वीकार कर लिया था।

दरअसल पृथ्वी सिंह और निदेशक के बीच 5 लाख के कथित लेनदेन का ऑडियो वायरल हो गया था। इसके बाद खबरें आई थीं कि बीजेपी के बड़े नेता ने निदेशक के सेवा विस्तार की अनुशंसा की थी। फिर एक विजिटिंग कार्ड सामने आया जिसमें पृथ्वी सिंह का नाम एपेक्स डायग्नोसिस के कर्मचारी के तौर पर था। इस कम्पनी में बिंदल की पुत्री व दामाद का स्वामित्व है।

इसके बाद गुपचुप तरीके से सवाल उठाए जाने लगे थे। इस्तीफा दे चुके बिंदल का कहना है कि कथित घोटाले से साजिश के तहत जबरन उनका नाम जोड़ा जा रहा है। उनका कहना है कि आजीवन उन्होंने नेकी और सेवाभाव से खुद को जोड़ा है और इस ‘अग्निपरीक्षा’ को भी वह पार कर लेंगे।

यह पहला मौका नहीं है जब बिंदल भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे हैं। 2012 में जब बीजेपी की सरकार थी, तब आए दिन विपक्ष विधानसभा में बिंदल को लेकर हंगामा करता था। बिंदल पर कई गंभीर आरोप लगाए जा रहे थे। उनपर मंत्री रहते हुए आय से अधिक संपत्ति बनाने और गैरकानूनी तरीकों से जमीन खरीदने का आरोप लगाया जा रहा था।

धूमल को सदन में इस्तीफा सौंपा
तब बिंदल ने उन आरोपों को निराधार बताया था और सदन में भावनात्मक भाषण देते हुए आरोपों का जवाब दिया था। यहीं नहीं, उस दिन (12 मार्च, 2012) को उन्होंने सदन में ही तत्कालीन सीएम प्रेम कुमार धूमल को इस्तीफा देने का एलान कर दिया था। मगर धूमल ने विपक्ष के आरोपों को बेबुनियाद बताते हुए बिंदल के इस्तीफे को खारिज कर दिया था।

बिंदल ने आरोप लगाने वालों पर मानहानि का दावा भी किया था। बावजूद उसके बिंदल पर आरोप लगते रहे और विपक्ष उन्हें घेरता रहा और लगातार सदन से वॉकआउट करता रहा। फिर, 26 जुलाई को उन्होंने स्वास्थ्य मंत्री का पद छोड़ा और बीजेपी महासचिव की जिम्मेदारी संभाल ली।

छोड़ना पड़ा था मंत्री पद
उस वक़्त उनका कहना था कि हाइकमान से उन्हें यह जिम्मेदारी मिली है। मगर उस समय हिंदुस्तान टाइम्स ने लिखा था कि शांता खेमा बिंदल से नाराज था और साल भर पहले बीजेपी के ही चार विधायक और दो मंत्री दिल्ली में तत्कालीन अध्यक्ष गडकरी से मिले थे और बिंदल को हटाने की मांग की थी।

वहीं, जागरण ने लिखा था कि ‘गडकरी ने दो टूक बिंदल को मंत्री पद छोड़ संगठन की जिम्मेदारी संभालने को कहा था।’

इससे पहले 2007 में भी विपक्ष ने बिंदल पर जमीन खरीद में गड़बड़ी के आरोप लगाए थे और एचटी के अनुसार, शांता खेमे ने उन्हें टिकट देने का विरोध किया था। बाद में जब बीजेपी की सरकार बनी तो बिंदल को मंत्री बनाने का भी विरोध किया गया था। हालांकि धूमल ने अपने दाहिने हाथ बिंदल को भी मंत्री बनाया था और शांता खेमे से धवाला को भी।

सोलन नगर परिषद
विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों के साथ बिंदल का रिश्ता पुराना है। हालांकि, ये आरोप ही हैं और कोर्ट में कोई मामला अभी सिद्ध नहीं हुआ है। जैसे कि बिंदल पर सोलन नगर परिषद का अध्यक्ष रहते हुए कर्मचारियों की भर्ती में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। 2012 में जब वीरभद्र सरकार बनी थी तो उसने मामले की जांच बिठाई थी और 2015 में बिंदल समेत 25 लोगों पर आरोप तय किए गए थे। तब बिंदल ने इस मामले को राजनीति से प्रेरित बताया था।

अब सबकी निगाहें ताजा मामले पर हैं कि आगे क्या होता है।

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