संवैधानिक मर्यादा भूल राष्ट्रपति के सामने ‘राजनीति’ कर गए अग्निहोत्री

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शिमला | राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद चार दिवसीय हिमाचल दौरे पर हैं। इस दौरान उनके संबोधन के लिए हिमाचल विधानसभा का विशेष सत्र भी आयोजित किया गया। यह हिमाचल के इतिहास में तीसरा मौका था जब राष्ट्रपति द्वारा हिमाचल विधानसभा के विशेष सत्र को संबोधित किया गया।

इससे पहले 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम व 2013 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी हिमाचल विधानसभा को संबोधित कर चुके हैं। हिमाचल अपने गठन को स्वर्णिम वर्ष के रूप में मना रहा है। इसी के उपल्क्षय पर इस विशेष सत्र का आयोजन किया गया था। इस विशेष सेशन में पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक भी शामिल हुए, लेकिन विधानसभा के इस सत्र को नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने अपने संबोधन के दौरान एक राजनीतिक मंच बना दिया।

कलाम और मुखर्जी के विशेष सत्र की बातें

इस तरह से जब भी विधानसभा के विशेष सत्र आयोजित किए जाते हैं तो उनकी एक गरिमा रहती है। यह आम विधानसभा सत्र की तरह नहीं होता। इसमें राष्ट्रपति संबंधित प्रदेश की जनता के लिए कुछ रोड मैप बताते हैं। मसलन, 2004 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. अब्दुल कलाम ने अपने संबोधन में हिमाचल को आगे बढ़ने के लिए 9 मिशन बताए थे। 2013 में प्रणब मुखर्जी ने चार ‘डी’ पर बात की थी।

डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम (बाएं) व प्रणब मुखर्जी (दाएं)

प्रणब मुखर्जी ने एक विधानसभा की भूमिका और कार्यों को तीन डी यानी डिबेट (बहस), डिसेंट (असहमति) और डिसीज़न (निर्णय) के रूप में वर्णित किया। उन्होंने चौथा ‘डी’ यानी डिसर्प्शन (व्यवधान) को बताया था और उससे बचने के लिए कहा था। ऐस विशेष सत्र में इसी तरह विधानसभा की कार्यवाही के दौरान अपने संबोधन में एक पॉलिटिकल और राजनीतिक चाल चलन पर बात होती है, लेकिन मुकेश अग्निहोत्री ने इसके उल्ट विशेष सत्र को रैली में तबदील कर दिया।

नेता विपक्ष होने पर भी संवैधानिक ढांचे की समझ कम

मुकेश अग्निहोत्री ने अपने संबोधन में पहले तो हिमाचल के गठन को लेकर बात कही, लेकिन फिर वो एकाएक हिमाचल रेजिमेंट, सेब के आयात शुल्क जैसे मुद्दों पर आ गए। राजनीति और संवैधानिक ढांचे पर सामान्य सी समझ रखने वाला नागरिक भी यह जानता है कि यह मुद्दे राष्ट्रपति के स्तर पर नहीं सुलझाए जाते और विशेष तौर पर किसी विधानसभा के स्पेशल सेशन में तो हरगीज इस पर बात नहीं होती। यह सरकारी कार्यक्रम का मंच नहीं था जहां केंद्र से कोई बड़ा मंत्री उद्घाटन करने आया हो और उस कार्यक्रम में मंत्री के संबोधन से पहले आप विपक्षी नेता के तौर पर अपना डिमांड चार्टर या मुद्दे गिनवाने लगें।

मुकेश अग्निहोत्री ( फाइल फोटो )

यह विधानसभ का विशेष सत्र था। अब सवाल यह आता है कि आखिर मुकेश अग्निहोत्री महामहिम राष्ट्रपति के लिए आयोजित हुए विशेष सत्र को भी राजनीतिक मंच क्यों बना गए। दरअसल, हिमाचल के छह बार मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस के नेताओं में वर्चस्व की एक जंग सी छिड़ी है।

बजट सत्र में ऐसी ही मर्यादाओं का लांघ गए थे मुकेश अग्निहोत्री

वीरभद्र सिंह ने अपने रहते ही मुकेश अग्निहोत्री को विपक्ष का नेता बनवाया था। हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में हिमाचल में कांग्रेस चारों खाने चित हुई। कांग्रेस हिमाचल में एक भी सीट नहीं जीत पाई। बीजेपी ने हिमाचल में देश भर में सबसे ज्यादा रिकॉर्ड मार्जिन से सीटें जीतीं। कुछ सीटों में तो जीत का अंतर ही चार लाख के पार चला गया। इसके बाद कांग्रेस विधायकों के भीतर मुकेश को हटाने के स्वर उठने लगे। काफी दौर चला और यह दौर आज भी चल ही रहा है।

बजट सत्र के दौरान राज्यपाल के अभिभाषण के बाद हुई धक्का मुक्की के दौरान (फाइल फोटो)

अब चूंकि कांग्रेसी कुनबे के सबसे बड़े नेता वीरभद्र सिंह का निधन हो चुका है तो हर नेता अपने आप को साबित करने में लगा है। इसका उदाहरण इस वर्ष बजट सत्र के दौरान कांग्रेसी विधायकों द्वारा किया गया हंगामा था, जिसमें तत्कालीन राज्यपाल के साथ दुर्व्यवहार तक हुआ।

पहले दो विशेष सत्र में नहीं हुआ था नेता विपक्ष का संबोधन

मुकेश अग्निहोत्री खुद को साबित करने के लिए और अपने आप को भावी नेता प्रोजेक्ट करने के लिए इतने उग्र हैं कि वो मंच की मर्यादा लगातार भूल रहे हैं। राष्ट्रपति के विधानसभा सत्र संबोधन का कार्यक्रम हो या कोई अन्य जगहें वो इसी तरह से व्यवहार करते आ रहे हैं।

जीएस बाली, सुक्खू, कौल सिंह, हर्षवर्धन के बीच गुटों बंटी कांग्रेस में मुकेश खुद को स्थापित करने के लिए इतने उतारू हैं कि अब उन्हें मंच की भी परवाह नहीं। जबकि एक रोचक तथ्य यह है कि ना तो 2004 में और ना ही 2013 के विशेष सत्र में राष्ट्रपति के सामने नेता विपक्ष का संबोधन हुआ था।

विशेष मौके पर मुकेश ने व्यर्थ कर दी अपनी ‘अग्नि’

इसके उल्ट इस बार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की सरकार ने राष्ट्रपति के सामने नेता विपक्ष को भी बोलने का स्थान दिया। लेकिन वीरभद्र सिंह के बाद कांग्रेस के शेष नेताओं के बीच खुद को इक्कीस साबित करने के लिए मुकेश इसे सियासी मंच समझ बैठे। यदि मुकेश अग्निहोत्री को खुद को साबित करना ही था तो अपने संबोधन में राजनीतिक चाल-चलन समेत और भी बातें थी जिन्हें कहकर वो जनता को अपना कायल बना सकते थे।