होशियार मामले में सीबीआई के हाथ खड़े करने पर एक पत्रकार की खरी-खरी

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इन हिमाचल डेस्क।। मंडी ज़िले के बहुचर्चित फॉरेस्ट गार्ड होशियार सिंह की मौत मामले में जांच कर रही सीबीआई न तो हत्या का केस बना पाई है और न ही उसे होशियार को आत्महत्या के लिए उकसाए जाने के सबूत मिल पाए हैं। हाई कोर्ट के आदेश पर जांच करने आई सीबीआई ने अपने हाथ खड़े करते हुए केस बन्द करने की तैयारी की है। ऐसी खबरें आई हैं कि सीबीआई की शिमला शाखा ने क्लोजर रिपोर्ट बनाने के लिए सीबीआई निदेशालय को पत्र लिख दिया है। क्लोजर रिपोर्ट बनाने की इजाजत मिली तो इसे तैयार करके कोर्ट में पेश किया जाएगा।

पूरे हिमाचल प्रदेश को द्रवित कर देने वाले इस मामले में सीबीआई की इस नाकामी पर सवाल उठने लगे हैं। होशियार मामले की ग्राउंड रिपोर्टिंग करने वाले मंडी के पत्रकार कमलेश रतन भारद्वाज ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए फेसबुक पर मनोभाव पोस्ट किए हैं। पढ़ें उन्हीं के शब्दों में-

“अपना भाई होशियार तो था ही भोला, बस नाम होशियार था इसलिए वन माफिया बलि चढ़ गया, पर तुम भी सीबीआई कहां निकली, हाथ खड़े कर तुमने जो केस बंद करने की दलील दी तो तोते की संज्ञा फिर सार्थक हो गई।”

कमलेश रतन भारद्वाज।।  आखिर कौन होशियार निकला सीबीआई या वन माफिया निर्णय आप करें! इस मामले को बेहद करीब से देखा। आपकी नजर कुछ बीते हुए पल। आज सुबह जब सीबीआई के सरेंडर को अमर उजाला के मुख्य पन्ने पर देखा तो खुद को रोक नहीं पाया।

सियासत दानों के लिए यह महज मुद्दा था जो किसी की हार तो किसी की जीत का सबब बन गया। सत्ता बदली और सरदार बदले। टोल फ्री नंबर भी जारी हो गए। पर जिस को होशियार होना था वह देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी अब सरेंडर तक पहुंच गयी।

बहुचर्चित होशियार सिंह मौत मामले में एजेंसी अब अवैध कटान के मामले तक ही सिमट गई है। अजब तो यह है की पुलिस के लिए किसी समय हत्या से आत्महत्या बनी यह गुत्थी सीबीआई भी नहीं सुलझा पायी। अखबारों के लिए महज एक खबर जो कभी मैंने भी लिखी अब तक वह न्याय की एक ललक थी , तुम्हारे सरेंडर से अब एक खबर बन कर रह गई ।

यह बात उन दिनों की है जब अमर उजाला अखबार ने इस मसले को मुख्य पन्नों पर लाकर हमारी टीम को एक मंच और लक्ष्य दे दिया था। मैं अपने मित्र चित्र सिंह के साथ जंजैहली स्थित माता शिकारी देवी मंदिर की ओर जा रहा था। अमर उजाला के शिमला स्थित राज्य कार्यालय से कॉल आई। लाइन पर संस्थान के वरिष्ठ अधिकारी और हमारे प्रेरक थे। बोले कहां जा रहे हो। मैंने उत्तर दिया महोदय साप्ताहिक अवकाश है, जंजैहली क्षेत्र में ही मां शिकारी के दर्शनों को जा रहे हैं। निर्देश मिले होशियार की डेड बॉडी उसके पैतृक गांव जरोठी में लाई जा रही है।

गरीब परिवार का बच्चा होशियार सिंह, जिसके माता-पिता भी नहीं थे, आज तक इंसाफ हासिल नहीं कर पाया।

आदेश मिलते ही योजना तुरंत बदल गई और हम kuthah मेले मैं पहुंच गए। यहां पर परम मित्र और इस कड़ी के अहम किरदार और धाकड़ पत्रकार गगन सिंह ठाकुर भी मिल गए। मेले के दो-तीन चक्कर काटकर समय गुजर गया। अब सड़क से लगभग 20 मिनट की खड़ी चढ़ाई के ऊपर फॉरेस्ट गार्ड होशियार सिंह का गांव होने की सूचना वहां पर मौजूद पुलिसकर्मियों से मिली। पता चला कि एसडी एम जंजैहली पहले ही गांव के लिए रवाना हो चुके थे। उनका नाम अभी तक मुझे याद है शायद अश्वनी कुमार।

अब मसला चढ़ाई चढ़ने का था जिसके स्कूल टाइम के बाद आदत नहीं रही थी। वहीं दूसरी ओर मित्र गगन सिंह ठाकुर भी राधास्वामी निकले। राधास्वामी होने का घाटा यह था की एक लोकल बंदा अब हमारे साथ होशियार के गांव तक नहीं पहुंचेगा। ठाकुर ने कहा कि वह वहां नहीं जा सकते हैं नियमों से बंधे हैं।

अब होशियार सिंह की डेड बॉडी को एक डंठल के सहारे उठाएं गांव के लोग सड़क से ऊपर की ओर जरोठी गांव की ओर चल दिए। गांव के भाईचारे के कंधे पर डेड बॉडी नहीं एक इंसाफ की उम्मीदों का बोझ था। हम भी उनके साथ हो गए। रास्ते में होशियार के ही कुछ मित्रों से बात हुई तो बोले जनाब जिन रास्तों पर आज वह कंधों पर जा रहा है और आपको पैदल चलने में भी तकलीफ आ रही है यही रास्ता होशियार का फॉरेस्ट गार्ड की भर्ती से पहले रनिंग ट्रेक था।

अब चुनौती यह थी की कवरेज के आदेश तो मिल गए थे लेकिन आक्रोश के सामने कैमरा खोल देना भावनाओं से खेलने से भी कम नहीं होता। इस बात को मैं और मेरा मित्र चित्र सिंह भलीभांति जानते थे। भाई चित्र सिंह जी का भी सीएम जयराम ठाकुर की तरह यह गृह विधानसभा क्षेत्र है। उनका साथ होना मेरे लिए बड़ी राहत थी। उन दिनों वह ऊना जिला में अमर उजाला के प्रसार प्रभारी के पद पर कार्यरत थे। अखबार की नौकरी ऐसी कि अब घर आना जाना भी कम ही होता था। उनकी सांस तो मेरे से पहले चढ़ गई। जैसे ही होशियार सिंह के घर में पहुंचे तो बहादुर पोते के इंतजार में बैठी दादी मां हिरदी देवी पर नजर गई। दादी मां की आंखें पथरा सी गई थी। अब आंसू भी सूख गए थे।

वन विभाग के आला अधिकारी आए सांत्वना दी और चले गए एसडीएम साहब तो पहले से ही पहुंच चुके थे। पोते के शव के आंगन में पहुंचते ही दादी मां दीवार के सहारे बैठ गई। दिल को दहला देने वाला चीखो-पुकार का वह भयावह मंजर आज भी आंखों के सामने घूमता है जब जब मुझे होशियार सिंह याद आता है। अब दिमाग जब शून्य हो चुका था तो मैं भी एक कुर्सी के सहारे एसडी एम के बगल में बैठ गया। अब ऐसे हालात में फोटो लेना और भावनाओं को बनाए रखना एक चुनौती था। एक ग्रामीण से बात कर होशियार के चाचा तक पहुंचा और उन्हें गले लगा कर सांत्वना देकर अपना परिचय भी दिया। उनसे अनुमति मिली तो फोटो लेना भी शुरू कर दिए।

मन में सोच रहा था दिमाग तो शून्य हो गया है खबर क्या लिखूंगा। तभी किसी आक्रोशित ग्रामीण ने वन विभाग के आला अधिकारियों के आंगन में पहुंचते हैं जोर से आवाज लगाई यह हमारे बेटे को नहीं माफिया ने सरकार को उल्टा लटकाया है। यही अगले दिन अमर उजाला अखबार के प्रदेश पन्ने की खबर थी, हेडिंग था बेटे को नहीं, माफिया ने सरकार को उल्टा लटकाया।

आक्रोष लगातार बढ़ रहा था। अगले दिन मंडी लौटना हुआ था। कर्मचारी संघ, स्वयंसेवी संस्थाएं सड़कों पर उतर आए। इसका अकेला कारण सिर्फ वन माफिया नहीं था। कर्मचारी संगठनों में जिसमें वन विभाग कर्मचारी संघ मुख्य था। इन संगठनों के धरने प्रदर्शन को इस लक्ष्य के साथ मुख्य पन्नों पर जगह दी जा रही थी की सरकार की नींद खुलेगी तो शायद गरीब के बेटे को इंसाफ मिल सके। फिर मामला पुलिस से होता हुआ सीबीआई रिटर्न ऑफिसर आसिफ जलाल के पास पहुंच गया। वह जांच के लिए मंडी पहुंचे 24 घंटे के भीतर ही मामला सीआईडी को सौंप दिया गया। पुलिस की जांच कई मायनों में मीडिया और लोगों को अखर रही थी। सीआईडी को जांच सौंप कर सरकार ने आक्रोष को थामने की कोशिश की।

पुलिस के बाद सीआईडी उस पेड़ पर उल्ट लटक कर कई महीनों तक खाली हाथ रही। कर्मचारी संगठनों के दबाव और मीडिया में छपी खबरों पर स्वत संज्ञान लेते हुए हाई कोर्ट ने सीबीआई को जांच के आदेश दिए। हमारे लिए व्यक्तिगत तौर पर यह किसी जीत से कम नहीं था। उम्मीद थी कि देर से ही सही अब सीबीआई तो एक गरीब के बेटे को न्याय दिला ही देगी। लेकिन आज सुबह जब अमर उजाला के मुख्य पन्ने पर इस खबर को पढ़ा तो मुंह से यही निकला लानत है।

शाम तक इस पर मंथन किया और फिर खुद पर अथवा होशियार सिंह पर तरस खाने के बजाय दिल को तसल्ली दी कि गरीब के बेटे ने वर्दी का कर्ज़ चुका दिया, लेकिन खुद को सर्वोच्च जांच एजेंसी बताने वाली सीबीआई खाली हाथ सरेंडर कर गई।

पहले हत्या फिर आत्महत्या और अब सर्वोच्च जांच एजेंसी के लिए कुछ भी नहीं महज अवैध कटान का मामला। सवाल यह अभी तक अनसुलझा है की क्या होशियार सिंह बिना किसी दबाव अथवा किसी के उकसाने के बिना ही जहर खाकर पेड़ पर उल्टा लटक गया। आत्महत्या, कत्ल या मौत आखिर यह क्या था। सीबीआई के लायक ऑफिसर क्या इन छोटे-छोटे सवालों पर विचार नहीं करते।

अब एक गाना याद आया इसमें तेरा घाटा सरकार (whatever NDA or UPA) जिसने इतनी निकम्मी जांच एजेंसी को पाल रखा है। एक बेटे का कुर्बान होने के बाद अब कुछ नहीं जाता, न्याय मिल जाता तो एक फॉरेस्ट गार्ड भी शहीद कहलाता।

(पत्रकार कमलेश रत्न भारद्वाज की फेसबुक टाइमलाइन से साभार)

आंखों में आंसू ला देगा ‘शहीद वनरक्षक होशियार सिंह का पत्र’