- इन हिमाचल डेस्क
कुल्लू दशहरे में प्रशासन ने इस बार भी अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरा लोक उत्सव में बालू नाग व श्रृंगा ऋषि को नहीं बुलाया गया । ऐसा इस लिए किया गया है ताकि धार्मिक उत्सव में शांति का माहौल बनाये रखा जा सके भेजे हैं।
दशहरा उत्सव में रघुनाथ की रथयात्रा में दाहिनी ओर खड़ा होने को लेकर दो-देवताओं के बीच चल रहे विवाद के चलते जहां श्रृंगा ऋषि और बालूनाग को सुरक्षा घेरे में रखा गया तो वहीं भगवान रघुनाथ के धूर में चलने की परंपरा पीज के जम्दग्रि ऋषि ने निभाई।
क्या है धुर विवाद
श्रृंगा ऋषि एवं बालू नाग बंजार घाटी के देवता हैं , समय समय पर इन दोनों को मुख्या जलेब के दौरान रघुनाथ के दायीं ओर चलने का मौका अतीत में मिलता रहा है। श्रुंगा ऋषि का तर्क है की भगवान रघुनाथ के जन्म के लिए दशरथ ने जो यज्ञ करवाया था वो उन्होंने ही किया था इसलिए रघुनाथ के दायीं ओर चलने का हक़ उन्हीं का है। वहीँ बाळुनाग का कहना है की वो शेषनाग का रूप एवं लक्ष्मण के रूप में अवतरतीत हुए थे रघुनाथ ( श्रीराम ) का अनुज होने के कारण दायीं ओर चलने का अधिकार उनका है। इस से पहले श्रृंगा ऋषि ही रगुनाथ के दायीं तरफ चलते रहे थे परन्तु उनके कुछ वर्षों तक दशहरा में नहीं आने के कारण बालूनाग दायीं तरफ चले। परन्तु 1984 के बाद से रघुनाथ के दायीं तरफ चलने को लेकर दोनों के बीच टकराव चला है। 1992 में तो बकायदा पत्थरबाजी और मारपीट इनके गुरों के बीच हुयी जिसमे भारी तादाद में लोग एवं पोलिस भी घायल हुयी।
देव जलेब का दृश्य |
कोर्ट पहुंचा था विवाद
यह विवाद प्रदेश हाईकोर्ट में पहुंच गया था, लेकिन 20 मार्च को 2012 प्रदेश हाईकोर्ट ने इस मामले की स्थिति स्पष्ट कर दी और फैसला श्रृंगा ऋषि के पक्ष में सुनाया। प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले से यह तो स्पष्ट हो गया है कि सरकारी तौर पर श्रृंगा ऋषि ही भगवान रघुनाथ की धूर में चलेंगे लेकिन बालूनाग के हारियानों को रास नहीं आया लड़ाई से बचने के लिए दोनों देवताओं को मेले में नहीं बुलाया जाता फिर भी अपने हरयनों के साथ यह दोनों देवता कुल्लू दशहरे में आते हैं परन्तु कड़ी सुरक्षा के बीच इन्हे अस्थायी शिविरों में रक्खा जाता है और जलेब में भाग लेने नहीं दिया जाता।