कुल्लू।। पार्वती प्रॉजेक्ट के लिए मची तबाही देखकर देवता ने अपने पुजारी के जरिए भारी आवाज़ में कहा, ‘यह तबाही अब मुझसे देखी नहीं जाती। बदले हुए मंजर से मैं कमजोर होता जा रहा हूं, मैं बस एक खिलौना बनकर रह जाऊंगा।’ विश्व पर्यावरण दिवस पर बात हिमाचल के उन ऐक्टिविस्ट्स की जो पर्यावरण को लेकर बेहद सजग हैं। ये ऐक्टिविस्ट हैं- देवता या द्यो। हिमाचल के ये देवता हैं वाकई कोई दैवी शक्तियां हैं या नहीं, इस बहस में पड़े बगैर बात अलग पहलू की।
देव पंरपरा हिमाचल की सिर्फ सांस्कृतिक विरासत नहीं है। यह हमारे प्रदेश के लोगों की ईमानदारी, कम में ही संतुष्ट होने की भावना और सादगी का आधार है। अपने देवताओं के प्रति हमारी जो इज्जत और लगाव है, वह ही हमें गलत राह पर जाने से बचाता रहा है। उसी की वजह से हमारी पारिवारिक और सामाजिक जड़ें इतनी गहरी हैं। इसीलिए हम आज भी समाज में एक-दूसरे की मदद करने को तैयार रहते हैं।
हमारे ये देवता हमारे सुख-दुख के साथी ही नहीं हैं, हमारे पथ-प्रदर्शक यानी गाइड भी हैं। वे हमें अक्सर बताते हैं कि क्या करना है, क्या नहीं। देवताओं के बच्चे हम इंसान ही नहीं हैं, तमाम जीव-जंतु, पेड़-पौधे वगैरह भी उनके उतने ही दुलारे हैं, जितने कि हम। इसीलिए हमारा ख्याल रखने के साथ-साथ ये देवता प्रकृति और पर्यावरण के लिए भी समान रूप से चिंतित रहते हैं।
हिमाचल के असंख्य देवी-देवताओं के नाम पर बहुत सारे जंगल हैं। और इन जंगलों में कोई भी पेड़ नहीं काट सकता, किसी तरह का नुकसान या गलत काम नहीं कर सकता। माफिया इन जंगलों से पेड़ काटना तो दूर, टहनी काटने से भी कांपते हैं। उन्हें दैवी प्रकोप का डर ऐसा करने से रोकता है। मगर देवता हमें इजाजत देते हैं कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना किस तरह से अपने जरूरत की चीज़ें हासिल कर सकते हैं। सरकार तो नियम बनाकर भूल जाती है कि क्या करना है क्या नहीं, मगर वह लोगों की समस्याओं को नहीं जानती। मगर ये देवता जानते हैं।
पार्वती प्रॉजेक्ट का काम चल रहा था, तो तमाम देवताओं ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि इससे बहुत नुकसान होगा। प्रकृति के साथ खिलवाड़ है ये। मगर एक तरफ तो सरकार ने प्राकृतिक पर्यावरण को बचाने के नाम पर लोगों के जंगल में जाने पर रोक लगा दी थी, पशुओं को ले जाने पर रोक लगा दी, मगर दूसरी तरफ भारी ब्लास्टिंग की गई, असंख्य पेड़ काटे गए, पहाड़ों का सीन जख्मी किया गया और आखिरकार नदी की धारा रोक दी गई।
सवाल ये है कि दोहरे मापदंड क्यों? विकास जरूरी है, मगर यह भी तो समझिए कि जो लोग सदियों से अपनी जरूरतें जंगलों से पूरी करते आए हैं, जो लोग जानते हैं कि प्रकृति को नुकसान पहुंचाए बिना कैसे रहना है, उनपर ही बंदिशें क्यों लगाई जा रही हैं। एक विडियो है यूट्यूब पर। आधे घंटे की पुरानी डॉक्युमेंट्री है दरअसल, जिसका टाइटल है- देवता ऐक्टिविस्ट। यानी देवता, जो पर्यावरण को बचाने के लिए ऐस्टिविस्ट की भूमिका निभा रहे हैं।
इस डॉक्युमेंट्री को देखिए और जानिए कि देव परंपरा का क्या महत्व है। और आखिर में आपकी आंखें भर आएंगे, जब देवता अपने गुर (पुजारी) के जरिए कहता है- यह तबाही अब मुझसे देखी नहीं जाती। बदले हुए मंजर से मैं कमजोर होता जा रहा हूं, मैं बस एक खिलौना बनकर रह जाऊंगा।’ आप स्वतंत्र हैं देव परंपरा की वास्तविकता पर सवाल उठाने के लिए।
मगर पुजारी का पर्यावरण जैसे विषय पर बात करते हुए देवता को कमजोर बताना दिखाता है कि कम से कम वे चिंतित तो हैं पर्यावरण के लिए। पूरा विडियो देखिए, पसंद आएगा। फिर भी अगर देवता के बोलने वाला हिस्सा देखना है, तो 26 मिनट 38 सेकंड पर जाकर विडियो देखिए या यहां क्लिक कीजिए।
इस तरह की जानकारियां पाते रहने के लिए यहां पर क्लिक करके In Himachal को फेसबुक पर Like कीजिए