प्रस्तावना: हिमाचल प्रदेश के गाँव-कस्बों में पहले संयुक्त परिवार जब फ़ुरसत के समय बैठा करते थे, तब खूब किस्से-कहानियां सुनाते थे। इन क़िस्सों के बीच भूत-प्रेत की कहानियाँ भी होती थीं जिन्हें कुछ लोग अपने साथ घटी सच्ची घटनाएँ बताकर सुनाया करते थे। उनके दावों में कितनी सच्चाई होती थी, ये तो वो ही जानते होंगे। मगर रोमांचक कहानियों को पढ़ने-सुनने या देखने में मज़ा तो आता ही है। इसीलिए आज भी हॉरर फ़िल्में और वेबसिरीज़ खूब पसंद की जाती हैं। इसी बात को देखते हुए इन हिमाचल ने पाँच साल पहले हॉरर एनकाउंटर सीरीज़ शुरू की थी जो बहुत सारे पाठकों को पसंद है। इन पाठकों से आ रहे बहुत सारे संदेशों पर विचार-विमर्श करने के बाद हमने फिर इस सिरीज़ को शुरू करने का फ़ैसला किया है।
पाठक हमें लगातार कहानियाँ भेज रहे हैं मगर हमने फ़ैसला लिया है कि उनके द्वारा भेजी गई जगहों की डीटेल्स को छिपा देंगे। यानी किस गाँव में या किस इमारत में क्या हुआ, यह नहीं बताएँगे। ऐसा इसलिए ताकि किसी भी जगह को लेकर बिना वजह डर का माहौल न बने। क्योंकि इन कहानियों को छापने का मकसद यह दावा करना नहीं है कि भूत-प्रेत वाकई होते हैं। हम अंधविश्वास फैलाने में यकीन नहीं रखते। हमें खुशी होती है जब हॉरर कहानियों के पीछे की संभावित वैज्ञानिक वजहों पर आप पाठक चर्चा करते हैं। इसलिए इन्हें मनोरंजन के लिए तौर पर ही पढ़ें।
आज की कहानी हमें भेजी है राजदीप मिन्हास ने। पेश है ‘इन हिमाचल’ की बेहद लोकप्रिय ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के पाँचवें सीज़न की चौथी कहानी-
मैं छोटा था तो बहुत डरपोक था। मैं अपने परिवार में सबसे छोटा था और मुझसे बड़े कज़न वगरैह मुझे डराया करते थे। कभी जंगली जानवारों के नाम पर, कभी चुड़ैल के नाम पर तो कभी भूत–प्रेत के नाम पर। उनसे किस्से–कहानियां सुनकर मैं इतना डरने लगा था कि शाम होते ही घर के अंदर चला जाता और रात को तो बाहर निकलता भी नहीं।
सोने से पहले सू–सू जाना होता तो भी अकेले बाहर नहीं निकलता क्योंकि टॉइलट घर से थोड़ा दूर बनाया हुआ था। घर के बड़े लोग समझाते कि इतना नहीं डरना चाहिए मगर मेरे मन से डर जा ही नहीं रहा था। लगता था कि कब न जाने आसमान से कोई चीज उड़ती हुई आएगी और मुझे अपने साथ ले जाएगी। चांदनी रात में पेड़ मुझे विशाल दैत्य जैसे नजर आते। आंगन में रखी टोकरी या बोरी किसी जीव जैसी जो छिपकर बैठा है।
मेरा डर वक्त के साथ इतना गहरा होता गया कि मैं अकेले रहने से डरने लगा। एक समय ऐसा आया कि रात छोड़िए, दिन में भी मैं घर के अंदर किसी कमरे में अकेला जाने से डरने लगा। पांचवीं क्लास तक मैं अपने गांव के स्कूल में ही पढ़ा था। ये स्कूल घर से मात्र एक किलोमीटर दूर था मगर बीच में घना जंगल पड़ता था और रास्ता भी अक्सर वीरान रहता था।
इसी रास्ते में बीच में सिंबल का विशाल पेड़ था। बहुत ही बड़ा। उसके ठीक नीचे एक बड़ी सी चट्टान थी। गहरे काले रंग की और एकदम गोल। जमीन पर टिकी हुई। और आपको हैरानी होगी कि ये चट्टान पहाड़ी के रिज के टॉप पर थी। यानी ये चट्टान कहीं और से लुढ़ककर वहां नहीं आ सकती थी। हमने बस इतना सुना था कि इस चट्टान के पास नहीं जाना है।
आज से 35-36 साल पहले की बात है। मैं तीसरी क्लास में पढ़ता था। मेरा कोई क्लासमेट बता रहा था कि इस चट्टान के नीचे भूत रहता है जो रात को निकलकर सिंबल के पेड़ पर चढ़कर बैठ जाता है। उस लड़के का कहना था कि उसके दादा ने उस भूत को देखा है। लड़के ने बताया कि एक बार जब उससे दादाजी देर रात कहीं से लौट रहे थे तो उन्हें रास्ते से गुजरते हुए पत्थर के नीचे से रोशनी आती दिखाई दी।
दादाजी ये देखकर रास्ते से हटकर दूसरी ओर झाड़ियों में छिप गए और देखने लगे। उन्हें एक आकृति सी नजर आई जो देखने में इंसान जैसी थी मगर थोड़ी पतली थी। उसकी आंखें चमक रही थीं। वो आकृति निकली और तेजी से उस बहुत ऊंचे पेड़ पर चढ़ गई। ऊपर पेड़ों की झुरमुट में जाकर वो गायब हो गई। इसके बाद दादाजी धीरे–धीरे वहां से निकल गए। ये किस्सा सुनकर मैं और डरने लगा। अब उस रास्ते से जब भी गुजरता, पूरा ध्यान चट्टान और पेड़ पर रहता। सोचता कि वो क्या चीज होगी जो यहां से निकली होगी।
एक दिन स्कूल में हमारी क्लास को जल्दी छोड़ दिया गया। मगर वहीं पढ़ने वाले मेरे बड़े भाई-बहनों (कज़न) को छुट्टी नहीं हुई थी। तो उन्होंने कहा कि मैं अकेला ही घर चला जाऊं। मैं डर रहा था कि कैसे उस चट्टान वाले रास्ते से जाऊं। तो मैं स्कूल से बाहर गया और तीन घंटों तक वहीं पेड़ के नीचे बैठकर अपने भाई–बहनों को छुट्टी होने का इंतजार करने लगा।
जब उन्हें छुट्टी हुई तो वे स्कूल से बाहर आए। मैं उनके पास गया तो मुझे देख हैरान हुए कि मैं गया क्यों नहीं। मैंने बताया कि मुझे डर लग रहा था चट्टान से। इतने में मेरा सबसे बड़ा कजन हंसने लगा। उसके साथ उसके दो और दोस्त थे जो मुझे डरपोक बोलने लगे। मैं चुपचाप उनके साथ चल पड़ा।
जैसे ही हम लोग चट्टान के पास पहुंचे, अचानक मुझे लगा कि किसी ने मुझे पकड़ लिया है। मैं डर गया। मुझे वाकई पकड़ लिया था मगर किसी भूत ने नहीं, मेरे कज़न और उसके दो दोस्तों ने। उन्होंने मुझे उठाया और उस चट्टान की ओर ले जाने लगे। वे कह रहे थे– अज तेरा डर दूर करदे अहां.. (आज हम तुम्हारा डर दूर कर देंगे)। मैं चिल्ला रहा था, छटपटा रहा था मगर वे माने नहीं। उन्होंने मुझे उठाया और उस चट्टान के पास ले गए। उन्होंने मुझे चट्टान से सटा दिया। वे हंस रहे थे और मुझे बहुत डर लग रहा था। मैं रो रहा था।
इतने में अचानक मुझमें जाने कहां से ताकत आई कि मैंने अपने कज़न और उसके तीन दोस्तों से न सिर्फ खुद को छुड़ा लिया बल्कि उन्हें उछालकर दूर भी फेंक दिया। वे मुझसे उम्र में थोड़े ही बड़े थे मगर डील–डौल में मैं उनसे छोटा था। फिर भी मैंने उन्हें ज़ोर से उछाल फेंका था। डर के मारे मुझे चक्कर आने लगे मगर हिम्मत नहीं हारी। दौड़कर बैग उठाया और घर की ओर चला आया। घर पर आकर मम्मी को सारी बात बताई तो उन्होंने मेरे कज़न की खबर ली।
लेकिन उस रात को मुझे एक सपना आया। सपने में मैंने देखा कि एक पक्षी उड़कर मेरी खिड़की के बाहर मंडरा रहा है। काले रंग का पक्षी, लाल रंग की आंखें। मुझे ढंग से याद नहीं कि कौन सा पक्षी था मगर था तो पक्षी ही। इतने में मेरी नींद खुल गई। मैं मम्मी–पापा के कमरे के साथ वाले कमरे में सो रहा था। मेरा ध्यान खिड़की की ओर गया जिसमें सरिये लगे हुए थे। उस दौर में आज की तरह आधुनिक ग्रिल नहीं होती थी।
वहां मुझे पक्षी तो नहीं, मगर काले रंग का एक साया दिखा। मैं खिंद में दुबका हुआ गौर से देखने लगा कि कहीं कोई भ्रम तो नहीं हो रहा। मगर वाकई किसी का धड़ और सिर दिख रहा था। अचानक वो सिर बड़ा होने लगा। मैंने आंखें बंद कीं और खिंद में सिर घुसा लिया। अंदर मैं डर से कांप रहा था। मन कर रहा था कि मम्मी–पापा को आवाज दूं मगर उस वक्त कुछ नहीं सूझा।
डर के बीच कब नींद आ गई पता नहीं चला। मुझे याद है कि अगली सुबह सेकंड सैटरडे की छुट्टी थी। उठकर मैंने मम्मी को रात को आए सपने और खिड़की पर दिखे साये के बारे में बताया। मम्मी ने कहा कि मैंने बुरा सपना देखा है क्योंकि कल ही कज़न ने मुझे चट्टान से सटाकर डराया है। मम्मी ने मुझे भूल जाने को कहा। मगर जैसे ही उजाला हुआ, मैं घर के पिछवाड़े में गया जहां मेरे कमरे की खिड़की खुलती थी।
घर कच्चा था। मैंने देखा कि खिड़की के नीचे की दीवार में खरोंचें लगी हुई हैं। पूरी पुताई उखड़ी हुई थी। मैंने डरकर मम्मी को ये बात बताई। उन्होंने ध्यान नहीं दिया। बोला कि बिल्ली वगैरह कई बार घुस आती है घर में। लेकिन मैं जानता था कि ये खरोंचें नई हैं क्योंकि हम अक्सर घर के पिछवाड़े में उगे ब्यूहल के लचीले पेड़ पर चढ़कर उसे हिलाते थे और झूलते थे। तब तो ये खरोंचें नहीं दिखी थीं। मुझे यकीन था कि ये खरोंचें ताज़ा हैं। मैं ये सोचकर और डर गया कि बीती रात को दिखे साये ने तो ये खरोंचें नहीं लगाईं।
खैर, रात हो गई। गर्मियों के दिन थे, फिर भी मैंने खिड़की बंद रखने का फैसला किया। मन में देवताओं का ध्यान करके सो गया। रात को फिर सपना दिखा कि एक पक्षी आया और उसने ऐसा रूप धर लिया जिसका सिर और धड़ तो इंसानों जैसा था मगर हाथ और पैर की जगह पक्षियों जैसे पंजे थे। इस बार मैंने देखा कि वो पक्षी खिड़की से सरियों के बीच से आया और उसने ये रूप मेरे कमरे के अंदर आकर धरा है।
इसी वक्त मेरी नींद खुल गई। मैंने जिज्ञासा में खिड़की की ओर देखा तो वो खुली हुई थी। जैसे ही कमरे के दूसरी ओर नजर गई– वही अजीब जीव खड़ा था। गहरे काले रंग का मगर आंखें लाल चमक रही थीं और मुस्कुरा रहा था। ये दृश्य देखकर ही मैं बेहोश हो गया।
सुबह मेरी नींद खुली तो बुखार आ चुका था। मम्मी मुझे उठाने आई तो मैं पहले से जगा था और बुखार से कांप रहा था। मैंने उन्हें रात का किस्सा सुनाया तो वो चिंतित हो गईं। उन्हें लगा कि मेरे मन में डर बैठ गया है। मम्मी को जो कुछ मैंने अब तक बताया था, उन्होंने किसी और परिवार में नहीं बताया था। लेकिन उस दिन मम्मी ने मेरी दादी को बुलाया और पूरा किस्सा सुनाया। दादी ने कज़न को खूब गालियां निकालीं और कहने लगीं कि उस घटना से मैं डर गया हूं।
उन्होंने तुरंत मेरी नज़र उतारी और कहीं पुड़िया में रखी कोई भभूत चटाई। उन्होंने कहा कि मैं डरूं नहीं, कुछ नहीं होगा। ये इतवार का दिन था। सेकेंड सैटरडे और संडे की छुट्टियां ख़त्म थीं और मुझे फिर उसी रास्ते से स्कूल जाना था, जहां वो चट्टान थी। मेरी दादी ने सख्त हिदायत दी मेरे कज़न्स को कि वे मुझे न डराएं और ध्यान से लेकर स्कूल जाएं। हम सब स्कूल जाने लगे। जैसे ही चट्टान दिखने लगी, मुझे कुछ होने लगा। एक ही पल में मैंने खुद को घर में परिजनों के बीच घिरा पाया और कोई तांत्रिक मंत्र पढ़ रहा था। मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
घंटे भर की उस प्रक्रिया के बाद मैंने मम्मी से पूछा तो उन्होंने बताया कि मैं स्कूल जाते वक्त उस चट्टान के पास पहुंचा तो अजीब आवाज़ें निकालने लगा था और जाकर उस चट्टान पर चढ़कर बैठ गया था और किसी महिला की आवाज़ में तरह–तरह की गालियां निकाल रहा था अपने कज़न और गांव वालों को। उसके बाद पूरे गांव के लोग तमाशा देखने जुट गए थे। फिर बगल के गांव से ओझा को बुलाया गया था जिसने किसी तरह मुझे काबू किया तो वहां मैं चट्टान पर ही बेहोश हो गया। फिर लोग मुझे उठाकर घर लाए थे।
तांत्रिक का कहना था कि कोई बुरी आत्मा मेरे पीछे पड़ गई है। उसने दिन में कुछ मंत्र आदि पढ़े और दावा किया अब वो आत्मा मेरा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। उसका कहना था कि उसने मेरे ऊपर हावी आत्मा को वश में करके बांध दिया है और खड्ड में बहा दिया है। मैं ये पूरा किस्सा सुनकर बहुत डर गया। मैं तो भला चंगा स्कूल जा रहा था, फिर अचानक मैं घर पर था। पता ही नहीं चला कि चट्टान पर कब चढ़ा और गालियां कब दीं और कब बेहोश हुआ।
उस रात मैं मम्मी–पापा के सोया। अगले कई दिनों तक मैं उनके साथ ही सोता रहा। कुछ दिन स्कूल भी नहीं गया। फिर कई दिनों तक मम्मी मुझे स्कूल छोड़ने जाती रहीं। फिर मुझे दूर के स्कूल में दाखिला दिला दिया गया जो हाई स्कूल था। वहां मैं बड़े बच्चों के साथ जाने लगा। चीज़ें सामान्य होती गईं। फिर मैंने जिस दिन अपने कमरे में अकेले सोने का फैसला किया, उसी दिन मेरे साथ फिर अजीब घटना घटी।
मुझे सपने में वो चट्टान दिखी और उसके पास बैठी एक महिला। उसने लाल रंग के कपड़े पहने हुए थे। उसका भी सिर और धड़ आदमियों जैसा था, हाथ और पैर की जगह पंजे। वो महिला कह रही थी– हम तो तुझे अपने बच्चा समझ रहे थे, अपने पास रखना चाहते थे मगर तूने मेरे पति को ही मुझसे छीन लिया। कल तक मेरे पति को छोड़ दे वरना मैं तेरे पूरे परिवार को बर्बाद कर दूंगी।
इतने में मेरा सपना खुल गया। मैं चिल्लाया। मम्मी–पापा दोनों आए तो मैंने उन्हें पूरी बात बताई। वो चिंतित हो गए। अभी रात ही थी। दादी भी मेरी चीख सुनकर आ गई थी। मैं रोए जा रहा था। सुबह होते ही फिर उस तांत्रिक को बुलाया गया। उसने मुझसे पूछा कि मैंने क्या देखा। उसने कहा कि इस समस्या का एक ही निदान है– उस चट्टान को तोड़ दिया जाए। मगर सवाल था– तोड़े कौन? क्योंकि तांत्रिक की बात सुनकर कोई चट्टान तोड़ने में एक्सपर्ट मिस्त्री आएगा नहीं और उस समय आज की तरह जेसीबी थी नहीं।
मेरे पापा और ताऊ ने घण (बड़ा हथौड़ा) और आड्डू (पत्थर तोड़ने में इस्तेमाल होने वालीं छैनी) लिए निकल पड़े चट्टान तोड़ने। साथ में तांत्रिक था जो कुछ बड़बड़ाए जा रहा था। जब सारी कोशिश नाकाम रही तो काम रोक दिया गया। अगले दिन बगल के गांव से एक मिस्त्री को बुलाया गया जो डायनामाइट से पत्थर तोड़ने का एक्सपर्ट था और शायद स्लेट की किसी खान में काम कर चुका था।
उसने सुबह से लेकर शाम तक चट्टान में किसी तरह लंबा गहरा छेद किया, शाम को उसमें डायनामाइट रॉड डाली गई और धमाका कर दिया गया। कुछ ही पलों में वो बड़ी चट्टान टुकड़ों में बदल गई। फिर घण से उन टुकड़ों के और छोटे टुकड़े किए गए और एक ओर नीचे खाई में लुढ़का गिए गए।
ताऊ और पापा दोनों घर आ गए। रात का वक्त था। हम सब (संयुक्त परिवार के सदस्य) खाना खा रहे थे। हमारा घर गांव में अकेला था। अचानक किसी महिला के रोने की आवाज़ सुनाई देने लगी। थोड़ी ही देर में वो आवाज़ तेज़ हो गई। रसोईघर पहली मंज़िल में था। ऊपर उसकी खिड़की से मेरी ताई ने झांककर नीचे देखा तो वो डर गईं। मैं डरकर रोने लगा था और मेरे बड़े भाई–बहन (कज़न) भी रोने लगे थे। ताऊ और चाचा हमें संभाल रहे थे। इतने में दादी ने चूल्हे में जलती मोटी सी लकड़ी उठाई और खिड़की से नीचे की ओर फेंकी। इसके बाद महिला की चीखें और तेज़ हुई और ऐसा लगा कि वो चिल्लाती हुई दूर जा रही है।
इसके बाद पूरे गांव में हल्ला हो गया। रात को पूरा परिवार एकसाथ सोया। उस वक्त फोन भी नहीं होते थे। अगली सुबह पूरे गांव में चर्चा हुई कि रात को कुछ आवाज़ें सुनाई दी महिला की रोते हुए, हमारे घर की तरफ। कई दिनों तक ये पूरे इलाके में चर्चा का विषय बना रहा। अगले दिन तांत्रिक ने बताया कि वो आत्मा बदला लेने आई थी। उसने घर के आसपास कोई रेखा बांधने का काम किया औऱ कहा कि अब कुछ नहीं होगा।
पूरे गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा किया और बड़े अनुष्ठान के बाद उसी तांत्रिक से पूरे गांव के बाहर रेखा बंधवाई। फिर वह तांत्रिक आसपास के गांवों के घरों में जाकर कुछ चीज़ें बांटने लगा। ये कहकर कि घर में ये चीज़ रखी होगी तो वो आत्मा नुकसान नहीं पहुंचाएगी। लोग वो चीज़ लेने लगे और श्रद्धा के हिसाब से तांत्रिक को पैसे देने लगे।
खैर, हम कई दिनों तक साथ सोते रहे। मैं कई दिनों तक डरा रहा। मगर उस दिन के बाद कभी कोई डरावनी घटना नहीं हुई, न कोई सपना आया। छोड़ा बड़ा हुआ तो उस रास्ते से भी अकेला गुजरने लगा जहां वो चट्टान थी। उस चट्टान के बचे कुछ पत्थरों को साथ की ज़मीन वाले किसी शख्स ने तुड़वाकर आजकल अपने लिए गोशाला बनवाई है।
कुछ साल पहले पता चला कि जो तांत्रिक हमारे घर आया करता था, वो अपने चेलों के साथ मिलकर डर का माहौल बनाया करता था और लोगों से पैसे वसूला करता था। इससे आजकल मैं सोचने लगा हूं कि कहीं मेरे डर का फायदा तो नहीं उठाया उसने? मेरा मतलब है कि मैं जानता हूं कि मैंने जो महसूस किया वो उस समय सच लगता था। लेकिन कहीं न कहीं से आवाज आती है कि मेरा बाल मन डर के कारण कल्पनाएं करने लग गया था उन जीवों की। और रही उस रात को चिल्लाने वाली महिला की बात, वो उस तांत्रिक की ही कोई साथी तो नहीं थी जो हमें डराना चाहती थी। क्योंकि उस घटना के बाद पूरे इलाके में फैले डर का सबसे ज्यादा फायदा उस तांत्रिक को ही हुआ था।
मेरे बचपन के किस्से से मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि भूत-प्रेत से बच्चों को कभी न डराएं। और अगर बच्चों के मन में डर बैठ जाए तो इसे वैज्ञानिक तरीक़ों से, काउंसलिंग के ज़रिये दूर करें। मेरे समय में तंत्र मंत्र ही एक रास्ता सूझा करता था लोगों को तो उन्होंने वही किया। मगर आप तांत्रिकों के चक्कर में न पड़ें। ये वहम पैदा करते हैं और डर के एवज में ही पैसा कमाते हैं।
DISCLAIMER: इन हिमाचल’ पिछले चार सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से हिमाचल प्रदेश से जुड़े भूरोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। इसके लिए आप अपनी कहानियां inhimachal.in @ gmail.com पर भेज सकते हैं। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए और रोमांच होना चाहिए।यह एक बार फिर स्पष्ट कर दें कि ‘In Himachal’ न भूत-प्रेत आदि पर यकीन रखता है और न ही इन्हें बढ़ावा देता है।
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