सुरेश चंबियाल।।
स्मार्ट सिटी में धर्मशाला का नाम आते ही भाजपा एवं कांग्रेस में तलवारे खिंच गयीं हैं। हिमाचल बीजेपी शिमला से लेकर सोलन ऊना तक धर्मशाला के विरोध में बयान देने लगी है। हालाँकि राजनैतिक नफे नुक्सान को ध्यान में रखते हुए काँगड़ा घाटी के बीजेपी नेता इस मुद्दे पर मौन धारण किये हुए हैं। कांगड़ा के बीजेपी नेताओं की फ़ौज जिसमे दिग्गज शांता कुमार से लेकर किशन कपूर, विपिन सिंह परमार , सरवीन चौधरी आदि शामिल हैं ने धर्मशाला को स्मार्ट सिटी बनाए जाने के फैसले का आधिकारिक रूप से कोई स्वागत नहीं किया है न ही मीडिया में इस बारे में ब्यान दिया है।
दूसरी तरफ गणेश दत्त भाजपा प्रवक्ता एवं युवा बीजेपी नेता चेतन बरागटा ने खुलेआम शिमला को शामिल न किये जाने पर नाराजगी जताई है। बीजेपी इस मामले को कोर्ट और राज्यपाल तक लेकर गयी है यह दर्शाता है की ऊपरी एवं नीचले हिमाचल का भेद आज भी विकास कार्यों में कितना बाधक है। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत हिमाचल में से दो सिटी शिमला धर्मशाला में से एक का चुना जाना था जिसमे धर्मशाला को चुन लिया गया बस इतनी सी बात पे तलवारे खिंच गयीं हैं। हालाँकि शिमला सिटी को केंद्र ने अन्य योजना ” अमृत ” के तहत चुना है उसमे भी शिमला को लगभग उतनी ही धनराशि अपनी सुविधाएँ एवं इंफ्रास्ट्रक्चर सुधारने के लिए मिलेंगी जितनी धर्मशाला को स्मार्ट सिटी में मिलेंगी।
जनता शिमला की भी खुश है और पुरे प्रदेश की भी खुश है की हमारा एक सेहर इस प्रोजेक्ट में शामिल हुआ है तो चलो पहले देखा तो जाए की स्मार्ट सिटी में होता क्या है क्या क्या सुविधाएँ होंगी लोगों की जिज्ञासा इसमें हैं। परन्तु राजनैतिक दलों की जिज्ञासा वोट बैंक के नफे नुक्सान और अपने आप को किसी सिटी का शुभचिंतक दिखाने में है।
धर्मशाला के पीछे तर्क दिया जा रहा है की स्थानीय मंत्रीं होने के कारण धर्मशाला को विशेष फायदा पहुँचाया गया। चलो मान भी लिया जाए की ऐसा हुआ है परन्तु क्या पहली बार प्रदेश में ऐसा हुआ है की किसी मंत्रीं ने अपने क्षेत्र के लिए विशेष प्रेम दिखाया हो क्या बीजेपी के नेताओं ने मंत्री रहते कभी ऐसा नहीं किया। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं जहाँ बीजेपी के मंत्रियों ने भी अपने क्षेत्रों को तवज्जो दी है
शांता कुमार ने मुख्यमंत्री रहते एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, वेटिनरी कालेज, और वूल सवर्धन संस्थान आदि पालमपुर में नहीं खोले थे क्या ? पटवारी ट्रेनिंग संस्थान वहीं नहीं खुला क्या जहाँ जोगिन्दरनगर से गुलाब सिंह राजस्वा मंत्रीं थे? धूमल के मुख्यमंत्री रहते सर्विस सिलेक्शन बोर्ड और टेक्नीकल यूनिवर्सिटी हमीरपुर नहीं खुली क्या। यहाँ तक कुछ वर्ष पहले जब केंद्र की सोलर सिटी योजना आई तो बीजेपी शाषित हिमाचल सरकार ने शिमला एवं हमीरपुर को इसमें शामिल करवाया। तब हमीरपुर जैसे कस्बे के विरोध में सोलन धर्मशाला मंडी का नाम क्यों नहीं जोड़ा गया। तब डाक्टर बिंदल को सोलन सिटी की ऐतिहासिकता की याद क्यों नहीं आई ?
नाहन के विधायक डाक्टर बिंदल का कहना है की धर्मशाला से मंत्री है इसलिए इस सिटी को नगर निगम का दर्जा मिला सोलन, मंडी हमीरपुर को को नगर निगम का दर्जा क्यों नहीं दिया। अब इसका जबाब क्या डाक्टर बिंदल के पास होगा की हिमाचल में जब शिक्षा क्षेत्र में निजीकरण की बात आई तो उनके मंत्रीं रहते सोलन में ही क्यों 5 -5 यूनिवर्सिटी 5 किलोमीटर के दायरे में खोल दीं गयीं। क्या उन्हें हिमाचल में अलग अलग जगह नहीं खोला जा सकता था ???
चाहे बाली का नगरोटा डिपो हो , धूमल सरकार का अत्ति हमीरपुर प्रेम हो या वीरभद्र सिंह का सचिवालय में शिमला ग्रामीण के लिए अलग सेल का निर्णय। यह एक प्रदेश के रूप में हिमाचल का बंटाधार कर रहे हैं। क्या हम फिर उन रियासतों के युग में जा रहे हैं जहाँ काँगड़ा से लेकर सांगला तक सबकी अपनी अपनी रजवाड़ा शाही थी। प्रदेश को ना देख कर हर कोई सत्ता के दम पर अपने को मजबूत करने पर तुला है।
लेखक के रूप में मैं यहाँ सुधीर शर्मा के ऊपर लगे आरोपों पर जबाब नहीं दे रहा बल्कि राजनीति और नेताओं के इस व्यव्यहार से आहत हूँ की सत्ता में रहते अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए हर सुविधा संस्थान को को वो अपने क्षेत्र में ले जाना चाहते हैं और विपक्ष में होने पर सारे हिमाचल के शुभचिंतक बन जाना चाहते हैं।
बहुत चालाकी से मूल मुद्दों और अपनी नाकामियों से जनता का ध्यान बँटाकर उसे भी अपनी इसी खिचड़ी में खींच लेने की यह राजनीति एक समग्र हिमाचल के भविष्ये के लिए बहुत घातक है। उदाहरण के लिए आजकल बस डिप्पो पर भी नया अभियान छिड़ा है जोगिन्दर नगर के विधायक गुलाब सिंह ने जोगंदेरनगर में सिग्नेचर अभियान शुरू किया है की जोगिन्दरनगर को परिवहन निगम का बस डिप्पो दिया जाए। मुझे समझ में नहीं आता की बस डिप्पो से किसी क्षेत्र के विकास कैसे जुड़ा है। जहाँ बस डिप्पो नहीं है वहां बसे नहीं चलती क्या ? और अगर ये डिप्पो इतने ही जरूरी हैं तो दो बार मंत्रीं रहते उनके समय में क्यों नहीं बन गए ?? यह एक राजनाति है जिसे भावनाओं की राजनीति कहा जाता है।
राजनीति में उलझी सेंट्रल यूनिवर्सिटी निर्माण के लिए तरस रही है , धर्मशाला क्रिकेट मैदान पर दो परिवार आमने सामने हैं। मंडी मेडिकल कालेज का भविष्ये अधर में हैं। बेरोजगारों की संख्या दिनों दिन बढ़ रही है। 70 % रोजगार के दावे हवा हैं। प्रदेश के उद्योगो पावर प्रोजेक्ट्स में बाहर के इंजीनियर को जहाँ अच्छी सैलरी
दी जाती है वहीँ प्रदेश के लोकल इंजीनियर को 10 हजार रुपये ऑफर किये जाते हैं की इसकी तो मजबूरी है यह कहाँ जाएगा। इन मामलों को उठाने वाला कोई नहीं है।
हर पांच साल में सत्ता बदल रही है हिमाचल की नीति और भविष्ये की रूपरेखा नहीं। यहाँ आरोप प्रत्यारोपण की होड़ है solution किसी के पास नहीं है। इस लेख के माध्यम से मैं माननीयों को बस यही बताना चाहता हूँ की स्मार्ट सिटी में जो होगा सो होगा जहाँ बन रही है उसे बनने दे आखिर एक बार देखें तो की स्मार्ट सिटी से किसी सिटी की तस्वीर कैसे बदलती है। बाकी चुने हुए माननीय अगर अपने अपने विधानसभा क्षेत्रों के अस्त व्यस्त कस्बों में नियमित पार्किंग इंफ्रास्ट्रक्चर , खेल मैदान पब्लिक पार्क के लिए अगर सोचना शुरू करें कोई योजना लाएं बजट पर ध्यान दें तो मुख्या सड़क के आसपास बेतरीब दिखने वाले हिमाचल के छोटे छोटे कस्बे भी स्मार्ट हो जायंगे।
हो सकता है की धर्मशाला को स्मार्ट सिटी में आने के लिए नगर निगम का दर्जा जरूरी हो तो दिया गया हालाँकि मुझे नहीं पता सच्चाई क्या है या नगर पालिका से नगर निगम बनने से जनता को कितना फायदा होता है परन्तु हिमाचली के तौर पर मैं कांगड़ा चम्बा शिमला सोलन के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण हिमाचल के लिए सवेंदनशील हूँ और यह बताना चाहता हूँ भाजपा हो या कांग्रेस सबके राज में मंत्रियों ने अपने क्षेत्रों के लिए फायदे लिए हैं कुछ नया कहीं नहीं हो रहा है।
आप सब लोग भी मुझ से सहमत होंगे की आम जनता की दिलचस्पी इसी में है की हिमाचल की तरक्की हो वो आगे बड़े कोई भी संस्थान कहीं खुले, कोई सिटी किसी प्रोजेक्ट में आये इस से सिर्फ नेता लोगों की राजनीति को फरक पड़ता है जनता को नहीं बस वो अपने साथ जनता को भी इसी रार में खींच लेना चाहते हैं।
(आप भी अपने लेख inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं)