परीक्षाओं का दौर खत्म हो चुका है। स्कूल या ग्रैजुएशन के बाद हिमाचल प्रदेश के बच्चे सुनहरे भविष्य के सपने लिए हायर या प्रफेशनल एजुकेशन के लिए कई संस्थानों में ऐडमिशन लेने की सोच रहे होते हैं। देखा गया है कि इन दिनों हिमाचल के युवाओं का रुझान टेक्निकल एजुकेशन या एमबीए की तरफ ज्यादा है। इसी बात को भांपते हुए प्रदेश के अंदर और बाहर के कई प्राइवेट इंस्टिट्यूट यहां के हर छोटे-बड़े कस्बे में अपने ऑफिस खोलकर बैठ जाते हैं। दिन-रात लोकल केबल नेटवर्क और अखबारों पर अपने इस्टिट्यूट के ऐड चलाते हैं। 100% जॉब दिलाने का वादा करने वाले ये इंस्टिट्यूट दिखाते हैं कि इन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। एक खास ऐंगल से खींची गई तस्वीरों के जरिए ये अपने कैंपस को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। लैब्स, लाइब्रेरी और अन्य सुविधाओं को लेकर भी वे ऐसा ही करते हैं। कई बार पोस्टर्स और पैंफलेट्स में इंटरनेट से उठाकर तस्वीरें छाप दी जाती हैं।
छात्रों को दाखिला लेने के बाद पता चलता है कि यह संस्थान तो मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दे पा रहा। ऐसे में ये जॉब के नाम पर क्या करेंगे, आप अंदाजा लगा सकते हैं। ये प्रॉस्पेक्टस में दिखाते हैं कि बड़ी बड़ी कंपनियां इनके यहां प्लेसमेंट करने आती हैं। मगर ऐसा हमेशा सच नहीं होता। वे जॉब प्लेसमेंट के झूठे आंकड़े दिखाते हैं और कई बार अपनी मेहनत से जॉब हासिल करने वाले बच्चों के फोटो भी प्रॉस्पेक्टस या ऐड्स वगैरह में दिखा देते हैं। ‘इन हिमाचल’ ने ऐसे कई संस्थानों से पढ़े स्टूडेंट्स से बात की तो मालूम हुआ कि वहां तो बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तक नहीं। यहां तक कि यूजीसी के गाइडलाइन्स और पैमाने के आधार पर फैकल्टी तक इन कॉलेजों में नहीं होती।
देखादेखी में न जाएं। सोच-समझकर कॉलेज का चुनाव करें। |
इन हिमाचल ने ऐसे कुछ कॉलेजों की वेबसाइट्स पर दिखाई गई फैकल्टी की लिस्ट से ईमेल या फोन नंबर्स के माध्यम से बात की, तो पता चला कि उनमें से ज्यादातर तो उस कॉलेज में कभी थे ही नहीं, तो कुछ को संस्थान छोड़े 2 साल से ऊपर का अर्सा बीत चुका है। मगर इनके नाम और एजुकेशनल क्वॉलिफिकेशन का हवाला देकर ये संस्थान बच्चों को अपने जाल में फंसाए जा रहे हैं। ‘इन हिमाचल’ को एक सरकारी स्कूल के अध्यापक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकारी स्कूलों के कुछ अध्यापक भी इन संस्थानों के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं। ये वे लोग हैं, जो स्कूल के बाद अपना ट्यूशन सेंटर भी चलाते हैं। वे अपने उन्हीं स्टूडेंट्स को गुमराह करके इन घटिया संस्थानों में ऐडमिशन दिलाते हैं और बदले में कमिशन के तौर पर मोटी रकम डकारते हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि शिक्षा के नाम पर यह गोरखधंधा जमकर फल-फूल रहा है।
हिमाचल के भोले-भाले लोग कई बार इनकी चिकनी चुपड़ी बातों में आकर अक्सर गलत जगह ऐडमिशन ले लेते हैं। अपने बच्चों के लिए जीवन की सारी कमाई दांव पर लगा देने वाले पैरंट्स को सिवाय धोखे और झूठ के कुछ नहीं मिल पाता। अधिकांश संस्थानों का माहौल ऐसा होता है की स्कूल में 80-90 पर्सेंट मार्क्स लाने वाले बच्चे भी वहां जाकर फेल होने लगते हैं। ऐसे संस्थानों को से डिग्री हासिल करना भी मुश्किल काम बन जाता है, प्लेसमेंट की बात तो अलग है। विद्यार्थियों पर अलग-अलग तरह के जुर्माने लगाकर ये संस्थान मालामाल हो रहे हैं। शिक्षा के नाम पर यह एक व्यवसाय हो गया है, जिसके शिकार बन रहे हैं हिमाचल के मासूम लोग।
प्लेसमेंट के दावले खोखले भी हो सकते हैं। |
किसी संस्थान में किसी कोर्स के लिए ऐडमिशन लेना जिंदगी का एक महत्वपूर्ण फैसला होता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘इन हिमाचल’ ने शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कुछ अनुभवी लोगों से बात करके कुछ ऐसे पॉइंट्स हाइलाइट करने की कोशिश की है, जो हिमाचल के बच्चों और उनके पैरंट्स के लिए मददगार साबित होंगे। अहम सवाल यह है कि आखिर किस आधार पर किसी इंस्टिट्यूट को ऐडमिशन के लिए चुना जाए।
ऐफिलिएशन
सबसे पहले तो यह देखें कि जिस यूनिवर्सिटी, इंस्टिट्यूट या कॉलेज में आप ऐडमिशन लेने जा रहे हैं, वह मान्य भी है या नहीं। यूजीसी की वेबसाइट पर जाकर आप मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटीज़ का नाम देख सकते हैं। इसके साथ ही कुछ कॉलेज और इंस्टिट्यूट कुछ यूनिवर्सिटीज़ से डिस्टेंस एजुकेशन की डिग्री देते हैं। यानी यह डिग्री ठीक उसी तरह की होगी, जैसी आप घर पर बैठकर उस यूनिवर्सिटी से हासिल कर सकते हैं। ऐसे में चुनाव कर लीजिए कि आपको ऐसे संस्थान से पढ़ाई करनी है या नहीं। रेग्युलर और डिस्टेंस एजुकेशन के कोर्स में फर्क होता है। यूं तो पढ़ाई में ज्यादा फर्क नहीं है और डिग्री भी मान्य है, लेकिन कई बार कुछ वेकंसीज़ में डिस्टेंस एजुकेशन की डिग्री को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
इंफ्रास्ट्रक्चर
इंफ्रास्ट्रक्चर का मतलब अच्छी सी दिखने वाली या बड़ी सी बिल्डिंग नहीं है। इसका मतलब है कि ऐडमिशन लेने से पहले यह सुनिशित करें कि जिस संस्थान में आप ऐडमिशन लेने जा रहे हैं, वह आपके कोर्स के हिसाब से लैब्स, इंस्ट्रूमेंट्स वर्कशॉप्स, लाइब्रेरी आदि जैसी सुविधाएं दे रहा है कि नहीं।
फैकल्टी
इंफ्रास्ट्रक्चर के बाद अगला पॉइंट है फैकल्टी। एक अच्छा अध्यापक एक संस्थान का हीरा होता है। आप सुनिशित करें कि क्या अच्छी पढ़ी-लिखी और अनुभवी फैकल्टी संस्थान में मौजूद है या नहीं। संस्थान की वेबसाइट पर जो फैकल्टी दिखाए गए हैं, क्या वाकई वे वहां पर हैं या नहीं? इसके लिए आप ईमेल या साथ में दिए नंबर्स का सहारा ले सकते हैं।
मूलभूत सुवधिाएं
हायर या प्रफेशनल एजुकेशन में सेल्फ स्टडी का बहुत बड़ा रोल है। यह चीज भी ध्यान देने योग्य है कि क्या कॉलेज की लाइब्रेरी या इंटनेट लैब्स में सारी सुविधाएं मौजूद हैं? हॉस्टल में कितने विधयर्थी रखे गए हैं, कॉलेज से कितनी दूरी पर है हॉस्टल, खेलने के लिए मैदान है या नहीं, सेमिनार हॉल कैसे हैं, सफाई ववस्था कैसी है, खाना कैसा मिलता है। इसके लिए आप किसी पुराने स्टूडेंट्स से जानकारी ले सकते हैं।
अन्य ऐक्टिविटीज़
शिक्षा का मतलब सिर्फ एग्जाम पास करके डिग्री लेना नहीं होता है। कोई भी कम्पनी सिर्फ मार्क्स शीट देखकर नौकरी नहीं देती है। बल्कि आपका पूरा व्यक्तित्व और कम्यूनिकेशन स्किल तक देखे जाते हैं। आखिरकार आपको मार्किट में जाकर गला काट प्रतियोगिता का सामना करना होता है। इसलिए संस्थान की अन्य ऐक्टिविटीज़, जैसे कि ऐनुअल फंक्शन, स्पोर्ट्स मीट, NCC ,NSS , इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग, फेस्टिवल्स आदि के बारे में भी पता करें, जो आपकी पर्सनैलिटी को निखारने में और पढ़ाई को बोझ न बनने देने में मदद करती हैं।
प्लेसमेंट
यह सब से महत्वपूर्ण पॉइंट है। पढ़ाई के बाद नौकरी पाना आपका मुख्य लक्ष्य है। किसी भी संस्थान की प्लेसमेंट बहुत से फैक्टर्स पर डिपेंड करती है। इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर , फैकल्टी, स्टूडेंट्स की परफॉर्मेंस वगैरह मैटर करती है। वर्तमान समय में आप किसी भी संस्थान का प्लेसमेंट रेकॉर्ड जानने के लिए सोशल मीडिया के द्वारा वहां के पुराने स्टूडेंट्स से पता कर सकते हैं।
लोकेशन
वैसे तो यह फैक्टर इतना महत्वपूर्ण नहीं है, फिर भी अगर आपका संस्थान किसी ऐसी जगह के आसपास होगा, जहां आप पढ़ाई के दौरान भी बहुत कुछ सीख सकते हैं, तो अच्छा रहेगा। आपकी ट्रेनिंग या प्लेसमेंट के लिए यह फैक्टर फायदेमंद भी हो सकता है। कई बार प्लेसमेंट के लिए कंपनीज़ ज्यादा दूर और रेल हवाई यातायात से कनेक्ट नहीं होने वाले संस्थान में नहीं जाती हैं। नाम न छापने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को एक पूर्व छात्र ने बताया कि अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर और समस्त सुविधाएं होने के बावजूद NIT हमीरपुर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों तक में ऐसा होता देखा गया है।
अब मुद्दा यह है कि इन सब प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए आपको क्या करना है। उसके लिए यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं:
1. आप शहर में खुले ऑफिस में जाकर ही ऐडमिशन न लें, बल्कि खुद जाकर संस्थान में यह सब देखें।
2 . सोशल मीडिया का प्रयोग करते हुए संस्थान के पुराने या वर्तमान स्टूडेंट्स से सारी इन्फर्मेशन लें।
3. कोई शंका हो तो संस्थान की फैकल्टी को भी मेल लिख मारें या फोन पर बात करें।
4 . आप किसी अनुभवी शख्स और अच्छे कॉउंसलर की मदद भी ले सकते हैं।
5. भेड़चाल में बिल्कुल न चलें। दोस्तों की देखादेखी में अक्सर बच्चे गलत चुनाव कर सकते हैं।