महेंद्र शर्मा।। गुरुवार को हिमाचल प्रदेश कांग्रेस कमिटी की प्रदेश कार्यकारिणी की मीटिंग दिन भर चर्चा में रही। सबसे ज्यादा बात इस बात को लेकर भी हुई कि किस तरह से मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अपनी कैबिनेट के सीनियर मिनिस्टर और नगरोटा बगवां के विधायक जी.एस. बाली के अभिवादन का जवाब नहीं दिया। इससे ये अटकलें तेज हो गई हैं कि कांग्रेस संगठन के अंदर सबकुछ ठीक नहीं हैं। साथ ही यह भी साफ हुआ कि वीरभद्र और बाली के बीच तल्खी और बढ़ गई है।
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हुआ यह कि बैठक में भाग लेने के लिए सीएम वीरभद्र सिंह सबसे पहले पहुंच गए थे। इसके बाद जैसे ही जी.एस. बाली सभागार में पहुंचे तो उन्होंने मुख्यमंत्री को नमस्ते की लेकिन उन्होंने इसका कोई जबाव नहीं दिया। बाली भी आगे बढ़े और अपनी सीट पर बैठ गए।
क्या है दो बड़े नेताओं में तनातनी की वजह?
वीरभद्र कैबिनेट के सबसे ज्यादा ऐक्टिव नजर आने वाले परिवहन, तकनीकी शिक्षा और खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री जी.एस. बाली के मुख्यमंत्री के साथ पुराने मतभेद रहे हैं। वह कई मुद्दों पर कैबिनेट मीटिंग में अपनी बात मुख्यमंत्री के रुख के उलट रखते रहे हैं। कैबिनेट के कई फैसलों के खिलाफ वह असहमति पत्र भी भेज चुके हैं। यही नहीं, कई बार वह सार्वजनिक मंचों से भी वह अपनी ही सरकार की कार्यप्रणाली के प्रति असंतोष जाहिर कर चुके हैं। इसमें हाल ही में शिमला में हुआ गुड़िया प्रकरण भी था जिसमें उन्होंने सबसे पहले सीबीआई जांच करवाने के लिए मुख्यमंत्री को ख़त लिखा था।
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बेरोजगारी भत्ते को लेकर सीएम पर बनाया था दबाव
इससे पहले बेरोज़गारी से लेकर भी वह अपनी सरकार की नीतियों पर असंतोष जाहिर करते रहे हैं। साथ ही उन्होंने कांग्रेस घोषणापत्र में किए गए बेरोजगारी भत्ते को देने का ऐलान करने के लिए भी मुख्यमंत्री पर दबाव बनाया। बाली का कहना था कि इस भत्ते से बेरोजगार युवाओं को प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी करने के लिए पत्र-पत्रिकाएं लगवाने और फॉर्म भरने में सुविधा होगी। पहले मुख्यमंत्री ने यह भत्ता देने से इनकार किया मगर बाली ने पार्टी आलाकमान से दखल दिलवाया और आखिरकार मुख्यमंत्री वीरभद्र को बेरोजगारी भत्ता देने का ऐलान करना पड़ा।
मुख्यमंत्री को देते रहे हैं सीधी चुनौती
वीरभद्र के बाद हिमाचल प्रदेश कांग्रेस में विद्या स्टोक्स, कौल सिंह ठाकुर और जी.एस. बाली का नाम आता है। चूंकि विद्या स्टोक्स भी बुजुर्ग हो चुकी हैं, ऐसे में वरिष्ठता और कद के आधार पर कौल सिंह और बाली प्रदेश में शीर्ष पद के लिए दावेदारी जताते रहे हैं। इन दिनों कौल सिंह तो मुख्यमंत्री के नेतृत्व पर पूरी आस्था जता रहे हैं मगर जी.एस. बाली पहले की ही तरह अलग रुख पर कायम हैं। मीडिया के सवालों के जवाब में कहते हैं कि मुख्यमंत्री पद का फैसला पार्टी आलाकमान करेगा। साथ ही खुद के बीजेपी में शामिल होने की बातों का भी वह सीधे-सीधे जवाब नहीं देते।
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मनकोटिया और सुक्खू से करीबी
चर्चा है कि वीरभद्र को बाली का सुक्खू के करीब होना पसंद नहीं है। गौरतलब है कि प्रदेशाध्यक्ष सुक्खू भी खुलकर मुख्यमंत्री पर निशाना साधते रहे हैं और मुख्यमंत्री भी उनपर हमले करते हैं। जहां मुख्यमंत्री वीरभद्र की कैबिनेट के ज्यादातर मंत्री उन्हीं के पक्ष में बोलते हैं, जी.एस. बाली सुक्खू के करीब खड़े नजर आते हैं। यही नहीं, पिछले दिनों जब मेजर मनकोटिया ने मुख्यमंत्री पर आरोपों की झड़ी लगाई तो उसके अगले ही दिन शिमला के मॉल रोड पर जी.एस. बाली और मनकोटिया साथ नजर आए। बाली ने जहां इसे शिष्टाचार भेंट बताया, मुख्यमंत्री ने इस मुलाकात पर भी टिप्पणियां कीं।
बाली की युवाओं में बढ़ती पैठ
हिमाचल प्रदेश में राजनीति के जानकार बताते हैं कि जी.एस. बाली पिछले कुछ समय में पार्टी में अपनी अलग पहचान बनाने में कामयाब हुए हैं। अगर हिमाचल कांग्रेस में वीरभद्र के छत्र से अलग कोई नेता नजर आता है तो वह बाली हैं। दरअसल जी.एस. बाली हिमाचल प्रदेश में सोशल मीडिया के जरिए संवाद करने वाले और लोगों की समस्याएं सुनने वाले पहले नेता हैं।
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समस्याओं का निपटारा होता है या नहीं, बात यह है लोगों को खुशी होती है कि कम से कम कोई तो है जो सीधे उनकी बातें सुन रहा है। मुख्यमंत्री ने भी सोशल मीडिया का इस्तेमाल शुरू किया मगर देरी से। साथ ही उनके पेज से शिमला केस में हुए ब्लंडर और उसके बाद मुख्यमंत्री के यह कहने कि मेरे पेज को कोई और लोग देखते हैं, लोगों का भरोसा उठ गया है।
बाली की काट नहीं ढूंढ पाए हैं वीरभद्र
बात यह भी है कि जहां ज्यादातर विधायक, सीपीएस और मंत्री अक्सर मुख्यमंत्री की हां में हां मिलाते हैं, जी.एस. बाली अलग ही रवैया अपनाते हैं। कूटनीति में माहिर रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र ने रणनीतिक तौर पर लगभग हर सीट पर कांग्रेस के कई नेताओं की पैरलल टीमें बनाई हुई हैं ताकि अगर कोई विधायक या नेता उनसे बाहर जाने की कोशिश करे दूसरे नेता को ऊपर उठाकर वह पर कतर सकें। मगर नगरोटा बगवां उन चुनिंदा सीटों में है जहां पर वीरभद्र कांग्रेस के किसी और नेता को बाली के पैरलल नहीं ला सके हैं।
ऐसे में इन सब बातों पर नजर डालें तो समझना मुश्किल नहीं है कि आखिर क्यों मुख्यमंत्री ने अपने ही मंत्री के अभिवादन का जवाब नहीं दिया। वैसे भी मुख्यमंत्री इन दिनों उम्रदराज होने की वजह से कमजोर याद्दाश्त, गुस्सा होने, रिऐक्ट करने और चिढ़ने के आरोपों से घिरे हुए हैं। ऐसे आरोप लगाने वालों में विपक्ष ही नहीं, बल्कि उनकी ही पार्टी के संगठन के लोग भी शामिल हैं।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के सोलन से हैं और स्वतंत्र लेखन करते हैं)
Disclaimer: ये लेखक के निजी विचार हैं, इनके लिए लेखक स्वयं जिम्मेदार हैं