इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश में चुनावी माहौल गर्मा गया है। जिस तरह के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे विक्रमादित्य सिंह इन दिनों अपने पिता के चुनाव क्षेत्र शिमला ग्रामीण में सक्रिय हैं, उससे साफ संकेत मिल रहा है कि वह इसी सीट से चुनाव लड़ेंगे। ऐसी स्थिति मे वीरभद्र के सोलन के अर्की से चुनाव लड़ने की बात चल रही है। मगर वीरभद्र ही इकलौते दिग्गज नहीं हैं जिनकी निगाह अर्की सीट पर है। बताया जा रहा है कि इस सीट पर बीजेपी के अब तक के इतिहास के सबसे कामयाब रणनीतिकार माने जाने वाले अध्यक्ष अमित शाह की भी निगाहें हैं। इस सीट के जरिए शाह ऐसा दांव चल सकते हैं, जिससे वह हिमाचल के चुनाव को पूरे देश मे चर्चा का विषय बना सकें।
इसी दिशा में अमित शाह की टीम ने काम करना शुरू कर दिया है। शाह जानते हैं कि हिमाचल मे कांग्रेस का मतलब फिलहाल वीरभद्र सिंह ही है। बीजेपी का मुकाबला वीरभद्र सिंह और उन्हीं की टीम से होगा। इसी रणनीति पर काम करते हुए शाह टीम वीरभद्र को घेरने की तैयारी में है। प्रदेश में हाल ही में हुए प्रकरणों से वीरभद्र सिंह साख ऊपरी इलाकों मे भी गिरी है, जहां उनका वर्चस्व रहा है। रामपुर को जिला बनाने की आशा लिए हुए वीरभद्र सिंह के 15 अगस्त वाले कार्यक्रम में पहुंचे लोग उन्हीं के सामने पांडाल छोड़कर घरों की तरफ निकल आए थे। वीरभद्र सिंह रामपुर और रोहड़ू से चुनाव लडते आए हैं। लेकिन जब ये दोनों सीटें रिज़र्व हुईं तो उन्हें शिमला ग्रामीण की तरफ रुख करना पड़ा। बेटे विक्रमादित्य के लिए शिमला ग्रामीण का ऑप्शन रखते हुए खुद वह चौपाल या ठियोग से चुनाव लड़ सकते थे। इसका इशारा उन्होंने अपने एक बयान में भी किया था कि वह शिमला की ही किसी सीट से चुनाव लड़ेंगे।
मगर ठियोग सीट से विद्या स्टोक्स अपने किसी खास के लिए टिकट चाह सकती हैं और ऐसा न कर पाने की स्थिति में खुद भी चुनाव लड़ सकती हैं। वहीं चौपाल सीट भी गुड़िया प्रकरण के बाद कांग्रेस के लिए उतनी सेफ नज़र नहीं आ रही। इसलिए पूरी तरह से यही समीकरण बन रहे हैं कि वीरभद्र अगला चुनाव सोलन जिले की अर्की से लड़ेंगे, जो शिमला ग्रामीण के साथ जुड़ा हुआ है। अर्की शुरू से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। ‘मध्य हिमाचल’ में वीरभद्र के राइट हैंड माने जाने वाले ठाकुर धर्मपाल अर्की से लगातार जीतते रहे थे। मगर किन्हीं कारणों से जब वीरभद्र भी उन्हें टिकट नहीं दिलवा पाए तो भाजपा की यहां किस्मत चमकी थी। अर्की कांग्रेस की फूट का फायदा उठाते हुए भाजपा से गोविंद शर्मा लगातार दो बार से जीत रहे हैं।
वीरभद्र सिंह की अर्की के साथ सोलन, शिमला और बिलासपुर जिलों पर प्रभाव डालने की रणनीति के प्रत्युत्तर में शाह टीम ने भी तगड़ी रणनीति बनाई है। सूत्रों की मानें तो केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा, जिनका राज्यसभा कार्यकाल अप्रैल 2018 में खत्म हो रहा है, और प्रदेश में सीएम के चेहरे के लिए भी जिनका नाम चल रहा है, उन्हें सीधे वीरभद्र के खिलाफ अर्की सीट से उतारा जा सकता है। इस कारण हिमाचल का चुनाव बहुत हद तक अर्की सीट पर फोकस हो जाएगा।
शाह टीम का मानना है कि अर्की की जनता ऐसी स्थिति में भारतीय जनता पार्टी का समर्थन करते हुए जेपी नड्डा को विधानसभा भेज सकती है। इस उम्मीद में कि हर पांच साल बाद प्रदेश में सरकार बदलती है और इस बार बारी बीजेपी की है। वहीं नड्डा को अगर जनता जिताएगी तो वह उस बीजेपी सरकार के मुखिया भी हो सकते हैं। साथ ही वीरभद्र सिंह को उनकी सीट पर घेरकर बीजेपी प्रदेश में उनके प्रभाव को कम करना चाहेगी और कांग्रेस के चुनाव प्रचार की रीढ़ तोड़ना चाहेगी।
हालांकि, चर्चा यह भी है कि कांगड़ा के प्रभाव को देखते हुए नड्डा धर्मशाला से भी चुनाव लड़ सकते हैं। बहरहाल, चुनाव के लिए कुछ ही हफ्तों का समय बचा है और अगर ये राजनीतिक संभावनाएं सही साबित होती हैं तो इस बार हिमाचल प्रदेश विधानसभा का चुनाव न सिर्फ रोमांचक, बल्कि अभूतपूर्व होगा।