शिमला केस में एक पत्रकार ने पुलिस की थ्योरी पर खड़े किए सवाल

शिमला।। शिमला के कोटखाई में हुए रेप ऐंड मर्डर केस में गुरुवार को पुलिस ने अपराधियों को पकड़ने का दावा किया है। इस मामले में पुलिस के थ्योरी के अलावा हर न्यूज माध्मय पर अनोखी ही कहानी देखने को मिल रही है। कुछ लोग पुलिस की थ्योरी पर सवाल खड़े कर रहे हैं, कुछ पुलिस की वाहवाही कर रहे हैं, कुछ कह रहे हैं कि घटनास्थल पर रेप हुआ, कुछ कह रहे हैं कि आरोपी के घर से जुराब मिली, कुछ कह रहे है ंकि लड़की के कपड़े तक नहीं फटे थे, कुछ कह रहे हैं कि लड़की के कपड़े फाड़ दिए गए थे, कुछ कह रहे हैं कि मुख्य आरोपी को बचाने की कोशिश हो रही है, कुछ कर रहे हैं कि आरोपी गरीब हैंं, कुछ कर रहे हैं कि आरोपी रसूखदार हैं…. कुल मिलाकर अजीब हाल बना हुआ है। यह दुखद स्थिति है कि हर कोई मीडिया- चाहे वह टीवी हो, डिजिटल या फिर अखबार। इस मामले में अलग-अलग रिपोर्टिंग करता रहा है। ऐसे में जनता के बीच भ्रम की स्थिति बनी हुई है।

बहरहाल, इन सब बातों को नजरअंदाज करें तो गुरुवार को पुलिस ने कहा कि इस मामले में 29 साल के आशीष चौहान उर्फ आशू को भी गिरफ्तार किया है। लेकिन संभव है कि आशू की बलात्कार में कोई भूमिका न हो। गुरुवार शाम पुलिस महानिदेशक सोमेश गोयल व एसआईटी चीफ जहूर एच जैदी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में खुलासा किया है। बताया गया कि जब पीड़िता घर की तरफ लौट रही थी तो मुख्य आरोपी राजेंद्र ने उसे पिकअप में लिफ्ट दे दी। इस दौरान बाकी साथी भी साथ थे। कुछ दूर जाने के बाद बच्ची को जंगल में घसीट दिया गया। जहां नशे की हालत में विक्टिम से सामूहिक बलात्कार हुआ।

पुलिस का कहना है कि इसके बाद आरोपियों ने विक्टिम का सिर मिट्टी की तरफ कर मौत के घाट उतार दिया। बताया जा रहा है कि विक्टिम की एक सहेली ने उसे लिफ्ट लेते हुए भी देख लिया था। मुख्य आरोपी राजू अपनी पिकअप में एक बगीचे में स्प्रे मशीन छोड़ने जा रहा था। जिसे छोड़ने के बाद ही उसने अपने साथियों के साथ इस घटना को अंजाम दिया। चूूंकि विक्टिम पहले भी राजू से लिफ्ट ले चुकी थी, लिहाजा वह उसे पहचानती थी। संभवत: सामूहिक बलात्कार को अंजाम देने के बाद बच्ची को पहचान छिपाने के मकसद से ही मौत दे दी गई।

बहरहाल तमाम आरोपियों को अदालत में पेश किया जा रहा है। पुलिस के मुताबिक आशीष चौहान की भूमिका को लेकर जांच चल रही है। मगर एक पत्रकार नरेंद्र चौहान ने IG हिमाचल के नाम एक पोस्ट लिखी है जिसे खबर लिखे जाने तक 400 से ज्यादा लोग शेयर कर चुके हैं। इसमें पुलिस की थ्योरी पर सवाल उठाए गए हैं।

Image may contain: 1 person
पत्रकार नरेंद्र चौहान

नरेंद्र लिखते हैं- जैदी साहब आपकी प्रेस कांफ्रेस के अनुसार गुडिया का बलात्कार पांच लोगों ने उसी जगह किया जहां उस मासूम का शव मिला था। अगर यह कहानी सही है ताे प्रदेशवासियों को यह भी बताऐं कि स्कूल से उस स्पाट की दूरी कितनी है जहां से गुडिया का शव बरामद हुआ था । गुडिया ने अगर गाडी में लिफ्ट ली तो गाडी से स्थान पर पंहुचने में कितना समय लगा होगा।

आगे नरेंद्र ने लिखा है- साहब आप भी अपनी सरकारी गाडी से वहां गए और आपकी कार के पीछे पीछे मैं भी अपनी कार से स्पाट तक पंहुचा । मुझे स्कूल के पास से स्पाट तक पंहुचने में दस मीनट लगे अगर शक है तो मैं दोबारा आपके साथ चलने को तैयार हूं। चार बजे भी अगर गुडिया ने गाडी में लिफ्ट ली तो ज्यादा से ज्यादा आरोपियों के साथ उस स्थान तक पहुचनें में आधा घंटा लगा होगा। चलिए मान लेते हैं पाचं बज गए होगें। तो श्रीमान जी पांच बजे आज कल कितना उजाला होता है यह भी ख्याल करिए। चलिए उजाला था या अंधेरा अगर यह भी मायने नहीं रखता तो जनाब जरा सपाट को फिर से एक बार देख लिजिए फोटो डाल रहा हूं।


आगे नरेंद्र लिखते हैं- सड़क से महज सौ या दो फीट की दूरी पर जहां आप खोज बीन कर रहे है यहां अपराधी इतने खुले व सड़क के करीबी स्थान पर गुडिया का बलात्कार करते? शायद आपने गौर नहीं किया होगा साहब स्पाट पर जब आप छानबीन कर रहे थे तो स्पाट के पास से ही नेपाली मजदूर की आवाज स्पष्ट सुनाई दे रही थी। मतलब स्पाट के नजदीक ही अस्थायी रिहाइश हैं। चलिए आप पुलिस विभाग के तेज तरार कुशाग्र बुद्वि वाले जांच अधिकारी है इस लिए मान लेता हूं कि गुडिया के साथ ज्यादती वहीं हुई और जिस दिन गुडिया लापता हुई उसी रात को उसकी मौत हो गई जैसा कि आपके अनुसार गुडिया की पोर्स्टमाटम रिपोर्ट बताती है। तो कृपा कर यह सपष्ट करने की जहमत उठा दिजीए कि गुडिया के शव को दो दिनों में जंगली जानवरों ने क्यों नहीं नोचा।

पत्रकार ने आगे लिखा है- मंगलवार को जीन तीन लोगों को आप बडे फिल्मी अंदाज में सबसे पहले हिरासत में लेकर अज्ञात स्थान पर उडन छू हुए उसकी वजह क्या थी। क्या नेपाली मजदूरों के लिए कोई भी स्थानीय व्यक्ति पुलिस के चंगुल में फंसना चाहेगा । यही नहीं अभी ऐसे कई सवाल है जिनका ज्वाब मिलना लाजमी है आपके लिए भी और हमारे लिए भी । मसलन गुडिया की गुम हुई जुराब कहां है। गुडिया के अंत्रवस्त्र के टुकडे किसने किए इत्यादी । साहब आप दोनों से मैने और मेरे साथियों ने स्पाट पर व विश्राम गृह में भी बात करने की कोशिश की थी लेकिन बाने बात करने का आशवासन देकर हमसे दूरी बनाते हुए गाडी आगे बढा दी ।कोई बात नहीं आप बहुत बडे व जिम्मेवार अधिकारी है। मुझे व मेरे पत्रकार साथियों को इस बात का कोई मलाल नहीं कि आपने हमसे बात नहीं की। हो सकता है आप छानबीन को गोपनीय रखने का प्रयास कर रहे हों। जनाब यह लोकतंत्र है यहां ज्वाब देयी तय है आपकी भी और मेरी भी।

आखिरी हिस्से में नरेंद्र ने लिखा है- हो सकता है मेरी इस पोस्ट के खिलाफ की कानून की कोई धारा मेरे गिरेबान तक पंहुचती हो तो जरूर पंहुचे लेकिन कलम का सिपाही हूं । जब तक गुडिया के हत्या की निष्पक्ष जांच या संतोष जनक परिणाम नहीं मिल जाते मैं सवाल उठाता रहूंगा। यही मेरा काम है । उम्मीद है कि गुडिया को इंसाफ दिलाने की इस जंग में आप हर पहलू को निष्पक्षता व बिना किसी प्रभाव व दबाव में काम करते हुए दूध का दूध पानी का पानी करेंगे। आपने सवालों के ज्वाबों के साथ आपकी आगामी जांच व उनके परिणामों के इंतजार में- नरेंद्र चौहान।

इसके अलावा भी मीडिया के हिस्से में सुगबुगाहट है कि पुलिस की थ्योरी गले से नीचे नहीं उतर रही है और कहीं एक आरोपी को बचाने की कोशिश तो नहीं हो रही है। बहरहाल, ये तो पत्रकार के निजी विचार हैं। मगर अब मामला कोर्ट में तय होगा और इस मामले में DNA टेस्ट की रिपोर्ट भी अहम होगी। इसलिए इंतजार करना होगा कि पुलिस इस केस मेंं किस हद तक सही या गलत है।

SHARE