जानें, In Himachal शव या मृतकों की तस्वीर क्यों नहीं दिखाता

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कुछ दिन पहले जब गुड़िया प्रकरण के दौरान पीड़िता की तस्वीरें शेयर कर रहे थे, In Himachal ने एक बार भी उस बच्ची की तस्वीर शेयर नहीं की। उस दौरान हमने बताया था कि यौन अपराधों के मामले में और खासकर जब पीड़ित या आरोपी तक नाबालिग हों, उनकी तस्वीर सार्वजनिक नहीं की जा सकती और ऐसा करना अपराध भी है। इस बारे में आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं। साथ ही हम मामले से जुड़े गवाहों की भी तस्वीरें ब्लर कर देते हैं या नहीं दिखाते ताकि कहीं उन्हें किसी तरह का खतरा पैदा न हो। मगर आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि In Himachal क्यों शवों की तस्वीर प्रकाशित करने से बचता है और यदि हम इस्तेमाल करते भी हैं, तब उसे ब्लर यानी धुंधला क्यों किया जाता है।

 

दरअसल In Himachal उन आदर्श मूल्यों का अनुसरण करने की कोशिश करता है जो हर पत्रकार को करने चाहिए। खून के धब्बे, शव, हादसों के वीभत्स चित्र… ये सब सभी पाठकों के लिए अनुकूल नहीं होते। कुछ पाठक विचलित हो सकते हैं। हो सकता है कि ज्यादातर पाठक मजबूत दिल वाले हों, मगर सभी के साथ ऐसा नहीं होता। हमें यह भी पता नहीं होता कि हमारे आर्टिकल को कौन किस वक्त पढ़ रहा है। इसलिए खून या भयावह दृश्य या विचलित करने वाली तस्वीरों की जगह हम प्रतीकात्मक तस्वीरें इस्तेमाल करते हैं या फिर उन्हें धुंधला कर देते हैं।

 

शव की तस्वीर दिखाना क्यों सही नहीं?
मृत व्यक्ति अगर इस दुनिया में नहीं रहा तो इसका मतलब यह नहीं कि हम उसे कैसे भी ट्रीट करें। मृत व्यक्तियों के शव से कैसा व्यवहार करना है, यह न सिर्फ नैतिक बल्कि कानूनी रूप से भी सम्मानजनक होना चाहिए। मृत व्यक्ति की गरिमा को बनाए रखना जरूरी होता है। उसके शव से सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए, फिर वह जीवित होते हुए कैसा भी रहा हो। इसीलिए हादसे, हत्या, आत्महत्या या अन्य परिस्थितियों में मृत व्यक्ति की ऐसी तस्वीर प्रकाशित नहीं की जानी चाहिए, जो सही नहीं हो। जो एक तरह से अपमानजनक हो। यह भी सोचिए कि उस व्यक्ति की वैसी तस्वीर देखकर उसके करीबी परिजनों पर क्या बीतेगी। यही कारण हैं कि हम यथासंभव सांकेतिक तस्वीरें इस्तेमाल करते हैं। मगर अफसोस, हिमाचल प्रदेश के अधिकतर ऑनलाइन पोर्टल और यहां तक कि प्रतिष्ठित अखबार तक मृतकों की वीभत्स तस्वीरें प्रकाशित करते हैं।

 

कुछ अपवाद भी हैं
कुछ मामलों में शव की तस्वीर दिखाना जरूरी हो जाता है। उदाहरण के लिए वनरक्षक होशियार सिंह के मामले में हमने तस्वीर में खून और चेहरे वाला हिस्सा धुंधला कर दिया था, मगर पेड़ से लटके शव की तस्वीर प्रकाशित की थी। ऐसा करना इसलिए जरूरी था ताकि पाठक देख सकें कि आखिर इस मामले में क्यों सवाल उठ रहे हैं। तस्वीर से पाठक समझ सकते थे कि खुदकुशी अगर की है तो शव पेड़ पर आखिर कैसे लटक सकता है, वह भी उल्टा।

अगर यह तस्वीर न दिखाई जाती तो जनता समझ न पाती कि मामले में सवाल क्यों उठ रहे हैं।

इसी तरह से हमने पिछले दिनों हमने एक बच्ची की तस्वीर दिखाई थी, जिसे उसके पिता ने कथित तौर पर नदी में फेंक दिया था। हमें जानकारी मिली थी कि जब यह तस्वीर ली गई और बच्ची को अस्पताल पहुंचा गया, तब तक उसकी सांसें चल रही थीं। साथ ही वह तस्वीर हृदय विदारक थी। अगर पाठकों तक यह संदेश देना है कि देखिए, कितनी प्यारी बच्ची हैवानियत की शिकार हो गई, तब उस तस्वीर को हमने अगली खबर में भी लगाने का फैसला किया। यह ठीक उसी तरह की बात है, जैसे मासूम बच्चे आलियान कुर्दी का शव जो समंदर किनारे गिरा था, उसकी वैसी तस्वीर सामने न आती तो पूरी दुनिया में रिफ्यूजियों की समस्या की तरफ ध्यान नहीं जाता।

पूरी दुनिया में तस्वीरों को ऐसे ही प्रकाशित किया गया, मगर In Himachal अब भी मानता है कि इस तस्वीर में बच्चे के शव को धुंधला करना ज़रूरी है।

नियम तोड़ने की वजह होनी चाहिए
दरअसल अगर आप अपने द्वारा खुद के लिए बनाए गए नियमों को तोड़ते हैं तो ऐसा करने के लिए आपके पास संपादकीय रूप से अहम कारण होने चाहिए। ऐसा नहीं कि हर तस्वीर को अपवाद बनाकर हम तस्वीरें लगाने लगें। आगे भी हम इन्हीं मूल्यों को ध्यान में रखते हुए काम करेंगे। साथ ही ऑनलाइन या ऑफलाइन या किसी भी तरह के मीडिया साथियों से अनुरोध है कि वे भी कोशिश करें कि कम से कम वीभत्स तस्वीरें या वीडियो न डालें।