शिमला।। कोटखाई में हुई दिल दहलाने वाली घटना की विक्टिम ‘गुड़िया’ के परिजनों ने रविवार को गायत्री पाठ रखा था। इस दौरान इंग्लिश अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने गुड़िया के माता-पिता और बहन से बात की। माता-पिता की बातें सुनकर दिल पिघल जाता है। आगे पढ़ें, क्या कहती है अखबार की रिपोर्ट (मूल रिपोर्ट पर जाने के लिए यहां पर क्लिक करें):
60 साल के वह शख्स सिर झुकाए और हाथों को बांधे हलाइला गांव में उस जगह से मुश्किल से 100 मीटर दूर खड़े थे, जहां उनकी बेटी का शव बरामद हुआ था। इस मुद्रा में वह उन लोगों के प्रति कृतज्ञता जता रहे थे जो बेटी की आत्मा की शांति के लिए किए गए गायत्री पाठ में आए थे। उनकी 16 साल की बेटी हलाइला के जंगल में 6 जुलाई को मृत पाई गई थी। वह स्कूल से घर आते हुए रास्ते से 2 दिन पहले गायब हो गई थी।
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में रेप और दम घुटने से मौत की पुष्टि हुई है और पता चला है कि उसके शरीर और चेहरे पर गहरी चोटें थीं। लड़की की मौत से प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हुआ कि मामले की जांच को सीबीआई को सौंपा जाए। मृतका और उसका भाई महासू में पढ़ते थे और उन्हें पांच किलोमीटर की दूरी तय करके अपने गांव से यहां देवदार के घने जंगलों के बीच कच्ची सड़क से होकर आना पड़ता था। पिता का कहना है, उस दिन स्कूल में टूर्नमेंट था और बेटा स्कूल में ही रुक गया मगर बेटी ने घर आने का फैसला किया।
‘मेरा बेटा और बेटी आमतौर पर इकट्ठे घर आते थे। उनके साथ कुछ और बच्चे भी होते थे। मेरी बेटी किसी इवेंट में नहीं थी उस दिन तो वह अकेली आ गई। मैंने हमेशा उसे जंगली जानवरों से आगाह किया कि ध्यान रखना। खासकर रीछ के बारे में। मगर वह कहती- पापा, मुझे कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा। काश! मैंने उसे चेताया होता कि आदमी तो दैत्यों से भी बुरे होते हैं।’ यह कहते हुए वह फूट-फूटकर रोने लगते हैं।
13 जुलाई को पुलिस शराल गांव के 29 साल के एक शख्स की गिरफ्तारी का ऐलान करती है, जो कि एक अग्रणी बागवान का बेटा है। बाद में उसी दिन एसआईटी 6 लोगों की गिरफ्तारी की पुष्टि करती है, जिसमें वही 29 साल का शख्स, मुख्य संदिग्ध जो मंडी से आकर यहीं रहता है और सेब के एक बागीचे में मैनेजर व ड्राइवर का काम करता है, शामिल थे। पुलिस का कहना है कि 4 जुलाई को जब विक्टिम स्कूल से लौट रही थी, तब यह वारदात हुई। उसके घर से 4 किलोमीटर दूर हलाइला में कथित तौर पर मुख्य संदिग्ध ने उसे अपनी गाड़ी में लिफ्ट दी। चार अन्य आरोपी- एक 42 का शख्स, दूसरा 38 का, जो गढ़वाल से हैं और एक अन्य जो 29 साल और 19 का है, नेपाल से हैं। ये चारों इसी गाड़ी में बैठे हुए थे। ये चारों लोग मुख्य आरोपी के साथ सेब के एक बागीचे में काम करते थे।
लड़की के पिता के पास गांव में जमीन का छोटा सा टुकड़ा है। वह अन्य लोगों के सेब के बागीचों में भी काम करते है। स्थानीय लोगों का कहना है कि कम कमाई होने के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई में कसर नहीं छोड़ी। इसी साल विक्टिम, जिसे लोगों ने ‘गुड़िया’ नाम दिया है, और उसका भाई अपने घर से करीब 6 किलोमीटर दूर के स्कूल में शिफ्ट हुए थे। ठियोग के डीएसपी मनोज जोशी बताते हैं, ‘जिस गांव से विक्टिम थी, उस गांव में 10वीं क्लास में 9 बच्चे थे और सभी फेल हो गए थे। इसलिए वह इस साल महासू स्कूल आ गई थी। वह और उसका छोटा भाई दोनों दसवीं में थे।’
विक्टिम की बड़ी बहन, जिनकी शादी हो गई है और पास के ही गांव में रहती हैं, बताती हैं, ‘हमने कभी नहीं सुना था कि इस इलाके में महिलाओं को कोई दिक्कत हुई हो। इसलिए हमें कभी नहीं लगा कि वह सुरक्षित नहीं है। उस रास्ते से तो कई बच्चे स्कूल जाते हैं।’
विक्टिम की मां आंखों के आंसुओं को पोंछते हुए कहती हैं, ‘क्या किसी को हमारी बच्ची की चीखें नहीं सुनीई दीं? क्या लोग इस इलाके से नहीं जा रहे थे? मेरी बच्ची के यहां से जाने के बाद कई बच्चे यहीं से गए, यहां तक कि एक टीचर भी यहां से गया। क्या किसी ने कुछ नहीं देखा-सुना? मुझे पक्के तौर पर लगता है कि मेरी बेटी का अपहरण हुआ है, उसे कहीं ले जाया गया, उसे दवा खिलाई गई, उसके साथ रेप किया गया और उसके शव को यहां फेंक दिया गया।’
पुलिस का कहना है कि लड़की की वर्दी और अन्य चीजें शव के पास मिलीं। जहां पर शव मिला, उसके पास ही मुख्य सड़क है और दूसरी तरफ से मुख्य आरोपी के घर को कच्चा रास्ता जाता है, जहां वह अपनी विधवा मां के साथ 30 साल से रह रहा है।
मुख्य आरोपी की मां कहती है, ‘मैं पक्के तौर पर कह सकती हूं कि मेरा बेटा निर्दोष है। अगर वह ऐसे शर्मनाक काम में शामिल होता तो मैं आपको कहती कि उसकी खाल उधेड़ दो, फांसी पर लटका दो। मगर मैं जानती हूं कि उसे फंसाया गया है। उसने कभी किसी से झगड़ा नहीं किया। मैं कल्पना भी नहीं कर सकती वह ऐसा काम कर सकता है।’ 62 साल की इस बुजुर्ग महिला का कहना है, ‘उसने रात को खाना खाया, मुझे सुलाया और अपने कमरे में सोने चला गया। अगली सुबह वह मुझे कैंसर हॉस्पिटल में चेकअप के लिए ले गया। वहां से हम दवाइयां भी लाए थे।’ यह कहते हुए वह दवाइयों के पत्ते दिखाती हैं और बोलती हैं, ”मैं अनपढ़ हूं, मुझे तो पता नहीं कि कौन सी दवा कब लेनी है। वह मेरे लिए सबकुछ है। कुछ साल पहले पति की मौत हो गई थी तो मैंने अकेले ही उसे पाला है। मेरा दिल बैठा जा रहा है। मेरे से सब सहन नहीं होता।’
कोटखाई और शिमला में प्रदर्शनों के बीच लोग पुलिस की थ्योरी पर सवाल उठा रहे हैं और वे एसआईटी की जांच से भी संतुष्ठ नहीं। वे सवाल उठाते हैं कि मुख्य आरोपी ने अपने घर के पास ही शव को क्यों फेंका और प्रवासी मजदूर यहीं क्यों रुके रहे। इस बीच मुख्यमंत्री का कहना है, ‘हमने मामले की जांच सीबीआई को देने का फैसला किया है क्योंकि अपराध गंभीर है और जनता में रोष है। प्रदर्शन कर रहे लोगों के पास ऐसा करने की अब कोई वजह नहीं है। मुझे इसमें राजनीति नजर आ रही है और इससे कड़ाई से निपटा जाएगा।’
जिस जगह पर प्रार्थना की गई, वहां पर लोगों ने 18 जुलाई को प्रदर्शऩ करने का फैसला किया ताकि सीबीआई की जल्द जांच की मांग की जाए। बच्ची के स्कूल से अन्य बच्चे शोक प्रकट करने आए तो पिता फिर फूट-फूटकर रोने लगे और बोले, ‘भगवान और मां गंगा मुझे मेरी बच्ची को न्यया दिलाने की शक्ति दे। मैं हर एक दोषी को फांसी पर लटकते देखना चाहता हूं। मगर मैं पुलिस से अपील करता हूं कि प्लीज किसी बेगुनाह को न फंसाए।’