मंडी।। हिमाचल प्रदेश के मंडी में 48 लोगों की जिंदगी छीनने वाले भूस्खलन को लेकर पता चल रहा है कि इस मामले में प्रशासन की भी लापरवाही रही है। भूस्खलन होने की आशंका के चलते गांव खाली हो गए थे मगर नैशनल हाइवे 154 को भगवान भरोसे छोड़ दिया गया था। यह दावा हिंदी अखबार अमर उजाला ने किया है।
कोटरोपी में पहाड़ दरकने से यात्रियों से भरी दो बसें मलबे में दब गई थीं। एक बस पहले ही भूस्खलन की चपेट में आ गई थी मगर अन्य गाड़ियों को आगाह करने और उन्हें रोकने वाला कोई नहीं था। अगर वहां पुलिस वैन ड्यूटी पर होती तो अन्य वाहनों को रोका जा सकता था।
लोगों का दावा- प्रशासन को दी थी सूचना
अखबार के मुताबिक मलबे में दबे रवां गांव के बाशिंदों का कहना है कि पिछले साल भी जिला प्रशासन को उन्होंने इस बारे में सूचित किया था। पिछले दिनों बरसात में पहाड़ियों से पत्थर गिरने पर उन्होंने कई बार जंगल में शरण ली थी। यहां तक कि वन विभाग ने भी उन्हें कई बार यहां से हटाया है।
एनएच पर ट्रैफिक रोकना संभव नहीं: प्रशासन
लोगों के दावे से साफ़ है कि प्रशासन को भी जानकारी थी यहां क्या हो सकता है। मगर यहां पर संजीदगी नहीं बरती गई। हालांकि जिला प्रशासन का तर्क है कि एनएच पर यातायात को रोका नहीं जा सकता है और यह एनएच तो सामरिक रूप से भी महत्व है। मगर क्या सगजता नहीं बरती चाहिए?
मगर ऐसा क्यों नहीं किया गया?
हिमाचल प्रदेश में जहां पर भी आशंका होती है बड़ा भूस्खलन हो सकता है, वहां पर पुलिस के जवान तैनात रहते हैं। वे नजर रखते हैं कि कहीं कोई हलचल तो नहीं हो रही। इसी आधार पर वे सीटी बजाकर दूसरी तरफ से आ रहे वाहनों को रोक देते हैं। मनाली जाने वाली राजमार्ग पर भी इन्हीं दिनों यही व्यवस्था की गई है। मगर कोटरोपी में ऐसा नहीं हुआ।
प्रशासन ने कहा- इतनी बड़ी आपदा की आशंका नहीं थी
अखबार के मुताबिक डीसी मंडी संदीप कदम ने भी माना है कि यहां पर लैंडस्लाइड की जानकारी थी, मगर इतनी बड़ी त्रासदी का अंदाजा नहीं था। एसपी अशोक कुमार का कहना है कि न तो जिला प्रशासन और न ग्रामीणों की तरफ से उन्हें भूस्खलन की आशंका की सूचना मिली थी। ऐसी सूचना होती तो रात को जरूर वहां फोर्स लगाई जाती।