धर्मशाला के खनियारा की भूत शिला वाले भूत का डर

प्रस्तावना: इन हिमाचल की बेहद लोकप्रिय ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के चौथे सीज़न की ये तीसरी कहानी है। इन कहानियों को छापने का मकसद यह दावा करना नहीं है कि भूत-प्रेत वाकई होते हैं। हम अंधविश्वास फैलाने में यकीन नहीं रखते। हमें खुशी होती है जब हॉरर कहानियों के पीछे की संभावित वैज्ञानिक वजहों पर आप पाठक चर्चा करते हैं। वैसे हॉरर कहानियां साहित्य में अलग स्थान रखती हैं। इसलिए इन्हें मनोरंजन के लिए तौर पर ही पढ़ें। आज की कहानी हमें भेजी है मिस्टर एडी ने जो अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि आप इन कहानियों को काल्पनिक मानकर साहित्य के तौर ही पढ़ें ताकि बिना वजह डर या अंधविश्वास का प्रसार न हो।

ये तीन-चार साल पहले की बात है। हम चार-पांच लड़कों का ग्रुप सोलन जिले में स्थित अपनी यूनिवर्सिटी के हॉस्टल में बैठकर रात को भूत की कहानियां सुना रहे थे। होस्टल में अक्सर हम रात को बैठकर बातें किया करते थे तो कभी-कभार भूतों की बातें छिड़ जाया करती थीं। तो उस रात को हुआ सबने कई कहानियां सुनाई। इतने में हमेशा सीरियस रहने वाले हमारे एक दोस्त ने कहा कि उसके साथ तो कोई भूत की घटना नहीं घटी, मगर उसके घर के पास एक शिला है जिसमें भूत रहता है।

ये दोस्त धर्मशाला के पास रहता था। उसने बताया कि खनियारा में भूत शिला नाम की एक जगह है। दोस्त ने सुनाया, “माना जाता है कि भूत शिला के नाम से चर्चित बड़ी सी चट्टान के आसपास एक भूत रहा करता था जो वहां से होकर गुजरने वाले लोगों को परेशान किया करता था। एक बार किसी स्थानीय पंडित ने कोई विद्या हासिल की और मंत्र शक्ति से उस पंडित ने भूत को बड़ी सी चट्टान के साथ बांध दिया।

पंडित ने भूत से कहा कि सुबह होते ही तेरी पोल खुल जाएगी और सूरज की किरणों के सामने तेरा खात्मा हो जाएगा। जैसे ही सुबह होने लगी तो भूत घबरा गया और पंडित से कहने लगा कि मुझे छोड़ दो, बदले में तुम जो कहोगे मैं वही करूंगा। आखिर में पंडित ने वचन लिया कि बगल में ये जो पत्थरों और झाड़ियों से भरा हिस्सा है, इसे मैदानी खेत में बदल दो। भूत ने कहा कि ठीक मैं यह काम करूंगा मगर खाने के लिए गोबर और भूसा खाने के लिए दिया जाए और रोज वहां बने एक बड़े से ओखल (पत्थर को तराशकर बनाया गया गड्डा जिसे ओखली के तौर पर इस्तेमाल करते हैं) में रख दिया जाए।

पंडित भी इस बात को मान गया। फिर कहते हैं कि काफी समय तक ऐसा किया जाता रहा। मगर एक दिन उस ओखल में दीवाली के दिन किसी ने मिठाइयां रख दीं। चूंकि भूत के साथ समझौता मिठाइयों का नहीं बल्कि गोबर और भूसे का हुआ था, इसलिए भूत ने माना कि मेरे साथ हुआ वचन तोड़ा गया है इसलिए उसने फिर से उस बड़ी सी शिला पर आकर उत्पात मचाना शुरू कर दिया। मगर आखिर में ब्राह्मण ने अपनी विद्या से हमेशा के लिए उस भूत को उस शिला के साथ बांध दिया जिसे स्थानीय भाषा में किलणा (कील देना) कहा जाता है।”

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मैंने दोस्त से पूछा कि क्या वो शिला आज भी है। उसने कहा कि हां है, तुम कहो तो आज भी जा सकते हो वहां। तो हम दोस्तों की योजना बनी अगले वीकेंड पर धर्मशाला का चक्कर भी लग जाएगा और भूत शिला भी देख आएंगे। तो हम अगले वीकेंड धर्मशाला पहुंचे। हम तीन लड़के थे और तीन लड़कियां। हम सभी दोस्त एक ही बैच के थे। शाम के समय हम खनियारा स्थित उस भूत शिला की तरफ पैदल बढ़ने लगे। अंधेरा हो चला था।

लड़कियों को हमने बताया नहीं था कि हम कहां जा रहे हैं। तो खैर, हमने नजदीक पहुंचने से पहले ही उन्हें बताया कि हम दरअसल भूत शिला देखने जा रहे हैं। दो लड़कियां डरने लगीं कि हम नहीं जाएंगी जबकि हमारी एक दोस्त अंकिता ने कहा कि मुझे डर नही लगता, मैं साथ चलूंगी। डर रही दोस्तों को हमने दूर ही रुकने को कहा और बाकी लोग उस जगह को देख आए जहां के बारे में भूत शिला के पत्थर की कहानी थी। ये एक तरह से रोमांचक यात्रा थी मगर इसमें खास कुछ भी नहीं था।

कुछ देर बाद हम लौट आए और अगले दिन वापस सोलन आ गए। कॉलेज सामान्य रूप से चलने लगा। सब कुछ ठीक रहा मगर अंकिता, जो हमारे साथ भूत शिला पास से देखने गई थी, उसने कॉलेज आना बंद कर दिया। हमने कॉल करके पूछा तो बोला कि बीमार हो गई है और अपने घर रोहड़ू चली गई है। मौसम सर्दियों का था तो बीमार होना सामान्य था, ऐसे में हमने ध्यान नहीं दिया।

लगभग 15 दिन बाद अंकिता लौटी। वह कॉलेज आए, क्लास आए मगर हमसे बात न करे। हमारी दूसरी फ्रेंड्स ने बताया कि होस्टल में भी अंकिता का व्यवहार बदल गया है। हमने पूछा कि कैसे बदल गया है। तो पता चला कि वह किसी से बात नहीं करती है, चुप-चुप रहती है और आजकल पूजापाठ ज्यादा करने लग गई है। हम भी हैरान थे कि एकदम चुलबुली सी अंकिता ऐसे क्यों बदल गई है जो हमसे बात नहीं कर रही। कई बार उससे बात करने की कोशिश की मगर वह सीधे कहती- मुझे आप लोगों से कोई बात नहीं करनी। उसने फोन और मेसेज का जवाब देना भी बंद कर दिया।

अब कुछ दिनों में हमें उसके बारे में तरह-तरह के किस्से सुनाई देने लगे। उसकी होस्टलमेट बतानी लगीं कि वो अजीब-अजीब बातें करने लगी है और कहती है कि उसे भूत और आत्माएं दिखती हैं। होस्टल की लड़कियां उस दिन डर गई थीं जब अंकिता ने यह दावा किया था कि होस्टल के टॉप फ्लोर पर एक काले कपड़ों वाली महिला घूमती है जबकि ग्राउंड फ्लोर पर सफेद कपड़ों वाली महिला। इन बातों से तो कई लड़कियों ने होस्टल ही छोड़ दिया था।

फिर कुछ दिनों बाद एक नई बात सुनने को मिली। वो ये कि नए एडमिशन होने के बाद एक नई लड़की होस्टल में रहने आई। लड़कियों ने परंपरा बनाई हुई थी कि कोई नई लड़की आती थी तो डिनर के बाद सभी लड़कियों के साथ उसका इंट्रोडक्शन होता था। तो उस नई लड़की से बातचीत कर ही रही थी सभी लड़कियां। अंकिता भी वहीं बैठी थी। अचानक वह सबके सामने उस लड़की से पूछती है, “ये जो तुमने अंगूठी पहनी है, ये तुम्हारी बहन की है न?”

नई लड़की ने जवाब दिया- हां, आपको कैसे पता?

अंकिता ने कहा, “फेंक दो इस अंगूठी को, तुम्हारी बहन तुम्हारे पीछे ही खड़ी है। जहां भी तुम जाती हो, इस अंगूठी के कारण साथ ही जाती है।”

अंकिता का यह कहना था कि हर कोई नई लड़की के पीछे की तरफ देखने लगा कि उसकी बहन कहां खड़ी है। पीछे कोई भी नहीं था। इस बीच वह नई लड़की बेहोश हो गई थी। सब लड़कियों ने उसे उठाया और पानी वगैरह पिलाकर होश में लाया तो वह रोने लगी। उसने रोते-रोते बताया कि कुछ महीने पहले उसकी बहन की मौत हो गई थी।

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जैसे ही लड़कियों ने ये सुना, वे भी बहुत डर गईं। अंकिता और उस नई लड़की के बीच कभी बात नहीं हुई थी। मगर उसने इतनी बड़ी और डरावनी बात कह दी। पहले तो लड़कियां अपने स्तर पर मैनेज कर रही थीं मगर उन्होंने वॉर्डन से शिकायत कर दी कि या तो हॉस्टल में अंकिता रहेगी या फिर वो। आखिरकार मामला उठा और अंकिता के परिजनों को बुलाकर सारा किस्सा बताया गया और कहा गया कि आप अपनी बेटी को समय रहते डॉक्टरों को दिखाइए क्योंकि ये अजीब बातें करती है।

अंकिता के परिजन उसे वहां से पढ़ाई छुड़ाकर ले गए और कई महीनों तक उसके बारे में किसी को पता नहीं चला। एक दिन अचानक मुझे अननोन नबर से फोन आया। मैंने उठाया तो दूसरी तरफ से किसी लड़की की आवाज आई, “सुनो, अपनी ट्रिप कैंसल कर दो।”

मैंने पूछा कि कौन बोल रहा है? आवाज आई, “इतनी जल्दी भूल गए दोस्तों को?”

मैंने कहा- अंकिता? दूसरी तरफ से जवाब आया, “हां। मगर मैं जो कह रही हूं, उसे इग्नोर मत करना। अपनी ट्रिप कैंसल कर दो।”

मैंने कहा क्यों? मगर दूसरी तरफ से फोन कट गया। फिर मैंने कई बार कॉल बैक किया मगर कोई जवाब नहीं आया, SMS का भी कोई जवाब नहीं। वॉट्सऐप उसके नंबर पर ऐक्टिवेट नहीं था।

दरअसल मैं उसी दिन दोस्तों के साथ चूड़दार ट्रेकिंग जाने का प्रोग्राम बना रहा था और योजना थी कि हम चार लोग दो बाइकों पर जाएंगे। अब यात्रा से ठीक पहले फोन आकर टोक दिया गया तो मेरा आत्मविश्वास डोल गया। मैं अंधविश्वासी नहीं था मगर अंकिता की हिस्ट्री को देखते हुए मैं डर गया और मैंने दोस्तों को भी बहाना बनाकर रोक लिया। वो नाराज हुए मगर मैं उन्हें वजह भी नहीं बता सकता। खैर, एक दिन की बीता था कि मौसम ने करवट ले ली।

समाचार प्राप्त हुआ कि अप्रैल महीने में चूड़धार में भारी बारिश और बर्फबारी हुई। चार दिन बाद ख़बर आई कि ट्रेकिंग पर गए चार-पांच लोग लापता हो गए हैं। इससे मुझे सीधे अंकिता की बात याद आई। फिर एक हफ्ते के बाद खबर आई कि उनमें से एक की मौत हो गई जबकि बाकी बचा लिए गए।

जब मैंने ये खबर पढ़ी, अंकिता को फोन लगाया। इस बार उसने फोन उठा लिया। मैंने उससे पूछा कि क्या तुम इसी की बात कर रही थी कि वहां कुछ ग़लत हो सकता है। उसने कहा नहीं, तुम्हारी बाइक का ऐक्सिडेंट होने वाला था। मैंने कहा तुम्हें कैसे पता। उसने कहा कि मैंने अपनी आंखों से वो ऐक्सिडेंट होते देखा और तुम बुरी तरह घायल नजर आए। मैंने पूछा कि क्या तुमने कोई सपना देखा। उसने कहा नहीं, उसे विज़न्स आते हैं यानी उसे भविष्य और बीते कल की घटनाएं बीच-बीच में दिखती हैं।

मैंने कहा कि ये कैसी बातें कर रही हो तुम। उसने गहरी सांस लेकर मुझे पूरी बात बताई। उसने कहा कि जब मैं धर्मशाला में भूत शिला के पास से लौटी, मैं बीमार हो गई। मेरी तबीयत इतनी खराब हो गई थी शायद ही मैं बच पाती। डॉक्टरों को बीमारी पकड़ में नहीं आ रही थी। तो उसी समय एक दिन बिस्तर पर पड़े-पड़े मुझे ऐसा लगा कि मैं एक अंधेरे कमरे मैं कैद हूं। मैं कुछ बोलती थी तो आवाज गूंजती थी। चलती थी तो चारों तरफ पत्थर की खुरदरी दीवार हाथों से महूसस होती थी।

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मैं डर और उत्सुकता के भाव से पूरी बात सुनता जा रहा था। मैंने कहा फिर? अंकिता बताने लगी, “मैंने खूब आवाज दी कि कोई मुझे बचाए। मगर उसी अंधेरे से कमरे या गुफा कह लो, उसके कोने से किसी की गहरी सांस लेने की आवाज आ रही थी और अपनी ही गूंज सुनाई दे रही थी। डरते हुए मैंने अंधेरे कोने की तरफ मुंह करेक पूछा कि कौन है, उधर से सिर्फ बड़बड़ाने की आवाज आई।

फिर मैं हिम्मत करके उस ओर गई जहां से गहरी सांसें लेनी की आवाज आ रही थी। तभी किसी की आवाज आई जिसने मुझसे पूछा कि तुम यहां कर रही हो, तो मैंने कहा कि मुझे नहीं पता मैं यहां क्या कर रही हूं और कैसे आई। तो उसने कहा कि तुम अंदर कैसे आई? मैंने कहा कि अंदर का क्या मतलब है, ये कौन सी जगह है। आप कौन हो? तो अंधेरे से आवाज आती है- मैं तो बहुत समय से यहां पर पत्थर के अंदर कैद हूं।

अंकिता ने मुझे बताया, “अब मुझे अहसास हो रहा था कि किसी कारण मैं भी शायद उसी शिला के अंदर पहुंच गई हूं जिसके अंदर किसी समय उस भूत को बंद किया था और यहां पर मुझसे सवाल पूछ रही आवाज उसी भूत की है।  मगर मैंने उस भूत के सामने अपना डर जाहिर नहीं किया और कहा- तुम यहां कैसे पहुंचे। उसने कहा- मुझे धोखे से यहां बंद किया है किसी ने। भूखा-प्यासा बंद हूं मैं यहां।”

अंकिता ने बताया कि उस भूत ने उसे अपनी कहानी कुछ यूं सुनाई-

“मैं यहां रहता था इसी चट्टान पर। मैं लोगों से व्यापार करता था। उन्हें पकड़ता था और छोड़ने के बदले कोई चीज़ मांगता था। अगर वे उस चीज को देने का वादा कर देते तो मैं उनकी आत्मा को इस चट्टान के अंदर बांध देता था और कहता था कि अगर तय समय के अंदर वादे के हिसाब से चीज नहीं दी गई तो तुम्हारी जान चली जाएगी।

अगर मुझसे वादा पूरा होता तो मैं भी अपना वादा पूरा करता था और उनकी आत्मा को छोड़ देता था। जो अपना वादा नहीं निभाते थे, वो बीमारी और अनहोनी की चपेट में आ जाते थे। उनपर मेरा अधिकार हो जाता था और उनकी रूह को मैं इसी चट्टान के अंदर कैद करके रखता था। मगर एक शक्तिशाली आदमी ने पहले मुझे मजबूर करके मुझसे समझौता किया और उसने खुद ही वो समझौता तोड़ा। फिर जब मैं उस समझौते के टूटने के आजाद होकर फिर वही काम करने लगा तो उसने धोखे से मुझे फंसा दिया।

उसने मुझे बातचीत के लिए चट्टान से बुलाया और अपनी जान के बदले अपने परिवार के लिए संपन्नता की मांग की। मैं जैसे ही उससे समझौते के लिए शिला से नीचे उतरा, उसने नीचे अलग-अलग जगह से लाई गई मिट्टी से एक रेखा बांधी हुई थी। मैं उसमें आकर फंस गया और मजबूर हो गया। फिर पंडित ने मेरी जान बख्शने के बदलने हमेशा के लिए इस शिला में बंद हो जाने का समझौता किया। उसके बाद मैं इस शिला के अंदर कैद हूं और अपने समझौते के मुताबिक बाहर नहीं आ सकता।”

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अंकिता ने मुझस कहा, “भूत की ये बातें सुनकर मुझे लगा कि शायद मैंने भी उस दिन घूमने जाते हुए उस हिस्से पर पैर रख दिया था जहां किसी पंडित ने भूत को बांधने के लिए रेखा खींची थी, इसलिए मेरी आत्मा भी इस शिला के अंदर चली आई है। फिर मैंने भूत से कहा कि मैं यहां बाहर कैसे निकल सकती हूं। भूत ने कहा- ये चट्टान मेरी अपनी है और इसे मैंने ही तैयार किया है। मगर  इससे बाहर नहीं निकल सकता मगर तुम्हें जरूर निकाल सकता हूं। मगर मैं बिना समझौता किए कुछ नहीं कर सकता।”

मैं अंकिता की बातों को अविश्वास और आश्चर्य के मिले-जुले भावों के साथ सुन रहा था। अंकिता ने आगे बताया, “मैंने भूत से पूछा कि क्या गारंटी है तुम्हारी बातों की कि तुम मुझे निकाल दोगे। भूत ने कहा कि तुम्हारे पास कोई और चारा भी नहीं है। फिर मैंने भूत से पूछा कि तुम्हें क्या चाहिए। उसने कहा कि तुम बाहर निकलते ही गांव में दूर किसी एकांत में किसी चट्टान के पास काले बकरे की बलि देना और नहीं दे पाई तो तुम जानती ही हो क्या होगा।”

अंकिता बोली कि उसने भूत को वचन दिया और फिर अचानक उसकी नींद खुल गई। उसने बताया, “ऐसा लगा कि मैं कोई सपना देख ही थी मगर सपने की एक-एक बात सच लगी मानो सबकुछ कुछ देर पहले घटा हो। मेरे घर वालों ने किसी पुजारी को बुलाया हुआ था। मैंने पुजारी को कहा कि एक बकरा काट दो मैं ठीक हो जाऊंगी। पुजारी बोला कि बकरा देना किसको है। मैंने कहा कि जैसा मैं कहती हूं वैसे ही करो।”

“मेरे कहे अनुसार बकरा काटा गया और उसके बाद से मैं ठीक होने लगी। मैं ठीक तो हो गई मगर मुझे कुछ असामान्य चीजें दिखने लगीं। जैसे घटनाओं का पूर्वाभास और कुछ आत्माएं। पहले ज्यादा दिख रही थीं मगर अब उनका दिखना कम हो गया है।”

अंकिता की बातें सुनकर मैं डर गया था। मैंने अंकिता से पूछा कि तुम्हें क्या लगता है कि ये सब कैसे हुआ। अंकिता ने कहा, “मेरे पास शायद उस शिला के भूत के कारण कुछ शक्तियां आ गई थीं जो धीरे-धीरे जा रही हैं।” मैंने कहा कि तुम पढ़ी-लिखी हो, तुम डॉक्टरों के पास गई हो, तुम्हें नहीं लगता कि ये सब तुम्हारे दिल में बैठा एक डर है?

अंकिता बोली, “देखो, मैं साइंस स्टूडेंट हूं और जब मेरे साथ ऐसा नहीं हुआ था, मैं भी यकीन नहीं करती थी। मुझे भी शुरू में लगा कि मैंने भूत की कहानी सुनी और जब मैं बीमार हुई तो वीकनेस के कारण मेरे सबकॉन्शस माइंड में अपने आप वो कहानी हावी हो गई और मैंने खुद को काल्पनिक रूप से उसी भूत के साथ उसी शिला के अंदर कैद पाया। बीमार होने के कारण इस तरह से हलूसिनेशन होना आम है। लेकिन मैंने इससे बढ़कर चीजें देखी हैं और सच होते देखी हैं। खैर, तुम मानो या न मानो। तुम्हारे ऊपर है। मगर तुम दोस्त हो तो तुमको बता दिया। तुम पागल ही समझ लो मुझे।”

ये कहकर अंकिता ने फोन काट दिया।

इस घटना को दो-तीन साल हो चुके हैं और मैं अपने जीवन में आगे बढ़ गया हूं। अंकिता फेसबुक पर फ्रेंड है और बेंगलुरु में एक मल्टीनैशनल कंपनी में काम कर रही है। उसकी तस्वीरें देखकर लगता है कि उसका जीवन सामान्य है, हर सामान्य इंसान की तरह परिवार, ऑफिस, दोस्तों और वेकेशंस की मस्ती की तस्वीरें। अच्छा है कि वह आज ठीक है। मैं नहीं जानता कि उसे भ्रम था, हलूसिनेशन या कुछ और बात। मगर उसके साथ हुआ घटनाक्रम, उसकी ओर से दी गई चेतावनी और उसकी बताई कहानी आज भी जब याद आती है तो डर लगता है।

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DISCLAIMER: इन हिमाचल’ पिछले तीन सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से हिमाचल प्रदेश से जुड़े भूत-प्रेत के रोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। इसके लिए आप अपनी कहानियां inhimachal.in @ gmail.com पर भेज सकते हैं। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए और रोमांच होना चाहिए।यह एक बार फिर स्पष्ट कर दें कि ‘In Himachal’ न भूत-प्रेत आदि पर यकीन रखता है और न ही इन्हें बढ़ावा देता है।

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