हिमाचल में बड़े संकट की आहट, मगर इंतजाम नाकाफी

विजय शर्मा।।  बरसात की मूसलाधार बारिश से हिमाचल में नदियाँ पूरे उफान पर हैं। लगातार होती बारिश से जगह-जगह भूमि कटाव एवं मलबा गिरने से चारों तरफ यातायात आवागमन अवरोधित हो रहा है और इस सब के बीच प्रदेश की जनता में भय का माहौल बना हुआ है.

हर वर्ष भारी बारिश से बाढ़, भूमि कटाव एवं बादल फटने से हजारों करोड़ रूपए का जान-माल का नुकसान हो रहा है। पिछले कुछ वर्षों से वायुमंडल में भारी उथल-पुथल के कारण कभी अत्यधिक गर्मी पड़ती है तो कभी भारी बारिश से तबाही का मंजर देखने के मिलता है लेकिन इस सब के बावजूद ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने प्रदेश की जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानि एनडीएमए ने गत वर्ष ही प्रदेश सरकार को भूकंप के बड़े खतरे से आगाह किया था और चेतावनी दी है कि प्राकृतिक आपदाओं से हिमाचल में भारी तबाही हो सकती है। प्राधिकरण ने चेतावनी देते हुए कहा है कि राजधानी शिमला, सुंदरनगर और धर्मशाला सहित हिमाचल के निचले इलाकों मसलन कांगड़ा, हमीरपुर, मंडी आदि में भूकंप के जोरदार झटकों के साथ ही भूस्खलन हो सकता है। इसके अलावा ऊपरी हिमाचल की चोटियों पर स्थित बर्फ के पिघलने से ग्लेशियर से बनने वाली झीलें भी बड़ी आपदा की कारण बन सकती हैं।

प्रतीकात्मक तस्वीर

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने चेतावनी दी है कि कि राजधानी शिमला, सुंदर नगर और धर्मशाला पर भूकंप का बड़ा खतरा मंडरा रहा है। राज्य पर दूसरा बड़ा खतरा ग्लेशियर से पिघलने वाली झीलें हैं। एनडीएमए की मानें तो हिमाचल के उपरी इलाके में इस वक्त 11 ऐसी झीलें हैं जो कभी भी टूट सकती हैं और ये पहले से मौजूद नदियों और नालों में मिलकर भारी तबाही मचा सकती हैं।

भू वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमाचल में भूकंप हजारों सालों से आ रहा है। झीले भी हजारों सालों से बनती बिगड़ती रहती हैं। लेकिन 20 से 30 साल पहले खतरा इतना बड़ा नहीं था जितना अब है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए गत वर्ष एक मॉक ड्रिल का भी आयोजन किया गया था लेकिन सरकारी तंत्र की असली असली परीक्षा तो आपदा के समय ही होती है। वैसे भी हिमाचल को अन्य हिमालयी राज्यों के साथ विशेषकर भूकंप की दृष्टि से जोन-4 और जोन-5 में रखा गया है। कांगड़ा, हमीरपुर, मंडी, कुल्लू और चम्बा सर्वाधिक संवेदनशील इलाकों में शामिल हैं, जहां भूकम्प भारी तबाही मचा सकता है।

प्रतीकात्मक तस्वीर

राज्य आपदा प्रबंधन की एक रिपोर्ट के मुताबिक हिमाचल में अब तक 80 बार धरती भूकम्प के कारण हिली है और चार बार व्यापक स्तर पर नुकसान हुआ है। ऐसी परिस्थिति से निपटने के लिए प्रशिक्षित बल के साथ-साथ आमजन का जागरूक होना भी आवश्यक है। हालांकि सरकार यह बार-बार दावा करती है कि सरकार हर संभावित आपदा से निपटने में सक्षम है लेकिन एक या दो दिन की भारी बारिश ही सरकार के दावों की पोल खोल देती है।

इतने गंभीर खतरे और राष्ट्रीय आपदा प्राधिकरण की चेतावनी को बावजूद वर्ष 2012-13 के अनुमोदित स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान के बावजूद स्टेट डिजास्टर रिजर्व फोर्स का गठन ही नहीं हो सका है। यही नहीं पांच सालों से जिलों में क्विक रिस्पांस टीमों तक का गठन नहीं किया गया।

जब स्टेट प्लान बनाया गया था, उस दौरान यह ऐलान किया गया था कि एसडीआरएफ में पुलिस, फायर, होमगार्ड व अन्य संबंधित महकमों के अधिकारियों व कर्मचारियों को शामिल किया जाएगा। स्टेट प्लान के मुताबिक नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट फोर्स के तहत भी प्रदेशों को संबंधित दिशा-निर्देश दिए गए हैं। यही वजह है कि आवश्यक ढांचा न होने से बरसात व बर्फबारी के दौरान प्रदेश की जनता एवं हजारों पर्यटक रास्ते में फंस जाते हैं। हालांकि खतरे को भांपते हुए प्रदेश सरकार एवं उसके प्रतिनिधि बार-बार जनता को सब कुछ ठीक होने का आश्वासन देते रहते हैं और लोगों से चौकन्ना रहने के लिए कहा जाता है।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का कहना है कि हिमाचल प्रदेश में हर पचास साल में एक बार बड़ा भूकंप जरूर आता है। लेकिन इस बार 111 साल हो गए लेकिन ऐसा कोई भूकंप इस राज्य में नहीं आया। पिछला भूकंप 1905 में कांगड़ा में आया था। इस भूकंप ने अकेले कांगड़ा जिले में 20,000 लोगों की जान ले ली थी और अब हिमाचल एक बार फिर घोर संकट में है क्योंकि चेतावनी को बावजूद रिजर्व टॉस्क फोर्स एवं विशेषज्ञ समितियों का गठन नहीं किया गया है।

प्राकृतिक एवं मानवजनित आपदाओं से निपटने के लिए प्राधिकरण की गठन करते समय राष्ट्रीय एवं राज्य स्तर पर विशेष बलों के गठन को मंजूरी दी गई है और राज्यों को शुरूआत में एक बटालियन आपदा बल गठित करने का निर्देश दिया गया है लेकिन हिमाचल सहित कई राज्यों ने विशेष बलों का गठन ही नहीं किया है।

राजनैतिक नियुक्तियों के चलते राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण एवं समितियां मात्र ऐशगाह बनकर रह गई हैं। हिमाचल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उपाध्यक्ष कांग्रेस के एक पूर्व एम. एल. ए. को बनाया गया है, जो पहले भाजपा के कार्यकर्ता थे लेकिन चुनावों से ठीक पहले भाजपा से विद्रोह करके आजाद उम्मीदवार के रूप में जीतकर कांग्रेस में शामिल हुए थे और लोकसभा चुनाव में भाजपा के अनुराग ठाकुर से बुरी तरह पराजित हो गए थे, जिसके फलस्वरूप उन्हें राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बना दिया गया है जबकि प्राधिकरण के गठन की प्रक्रिया में प्राधिकरण का उपाध्यक्ष कोई चुना हुआ प्रतिनिधि हो सकता है।

इन्हीं महोदय का गत वर्ष सोशल मीडिया पर एक फोटो वायरल हुआ था, जिसमें वे मंडी जिले में आपदा की जायजा लेने गये थे और रास्ते में जूते पानी से भीग न जाएं, इसलिए एक युवक की पीठ पर बैठकर उन्होंने वह रास्ता पार किया था।

राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की सलाहकार समिति का अध्यक्ष दिल्ली निवासी किसी के. सी. चौहान को बनाया गया है और इसके अधिकतर सदस्य कांग्रेस के ही वफादार रिटायर अधिकारी या सदस्य हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि राज्य आपदा प्रबंधन कितना कारगर होगा।

हालांकि राज्य सरकार की ओर से संबंधित विभागों को मानसून पूर्व तैयारी के लिए 135 करोड़ रूपए का राशि जारी की गई है और आपदा प्रबंधन निधि तथा राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन निधि से उपायुक्तों तथा संबंधित विभागों को 63.23 करोड़ रुपए की राशि जारी की गई है। इसमें लोक निर्माण विभाग को 25 करोड़ रुपए, सिंचाई एवं जनस्वास्थ्य विभाग को पांच करोड़, विद्युत बोर्ड को दो करोड़, कृषि व बागबानी विभागों को 1.2 करोड़ रुपए की राशि सहित कुल 35 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं।

उन्होंने कहा कि उपायुक्तों को तत्काल राहत, अनुग्रह राशि, पेयजलापूर्ति तथा शहरी स्थानीय निकायों को सहायता के लिए 28.23 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। सरकार का कहना है कि आपदा प्रबंधन के लिए सभी जिला मुख्यालयों पर कंट्रोल रूम 24 घंटें खुले रखने के दिशा निर्देश दिए गए हैं और सभी जिलों के आपदा प्रबंधन प्लान भी तैयार किए गए हैं तथा उसी के हिसाब से कार्य भी किया जा रहा है।

आपदा प्रबंधन को लेकर आवश्यक उपकरण जिला मुख्यालयों तथा उपमंडल मुख्यालयों में उपलब्ध करवाए गए हैं ताकि आपदा के दौरान राहत तथा पुनर्वास के कार्य त्वरित प्रभाव से आरंभ किए जा सकें। पंचायत स्तर पर भी आपदा प्रबंधन समितियां गठित की गई हैं तथा आपदा प्रबंधन को लेकर पंचायत प्रतिनिधियों को भी प्रशिक्षण दिया गया है जबकि स्कूलों में बच्चों को आपदा प्रबंधन के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है।

(लेखक हमीरपुर जिले के हिम्मर के दरब्यार से हैं। उनके vijaysharmaht@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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