पुलिस भर्ती पेपर लीक: अच्छी कार्रवाई मगर स्थायी समाधान जरूरी

    कुमार अनुग्रह।। न कोई बड़े-बड़े धरने प्रदर्शन न कोई कोर्ट के आदेश प्रशासन ने जांच की और शासन ने तुरंत प्रभाव से हिमाचल प्रदेश पुलिस भर्ती की लिखित परीक्षा को रद्द करने के आदेश दे दिए। कारण था भर्ती परीक्षा का पेपर लीक होने का अंदेशा। 27 मार्च, 2022 को लिखित परीक्षा का आयोजन किया गया था। अब इसी महीने के अंत तक फिर से परीक्षा का आयोजन करवाने के निर्देश दिए गए हैं।

    भर्ती पेपर लीक और रद्द होने के बाद कई तरह के सवाल सरकार पर दागे जा रहे हैं जो लाजिमी भी हैं। एक ओर तो सिस्टम की नाकामी दिखती है कि कानून व्यवस्था संभालने वाले महकमे का ही पेपर लीक हो गया। दूसरी ओर सिस्टम की पारदर्शिता और कार्यकुशला भी दिखती है समय रहते मामले को पकड़ लिया गया।

    किसी मामले में स्वत: एफआईआर दर्ज होना एक तरह से राहत भी देता है। उदाहरण के तौर पर देशभर में केरल में सबसे ज्यादा क्राइम रेट है। इसका मतलब क्या यह हुआ कि केरल जिसे सबसे शिक्षित राज्य होने का दर्जा प्राप्त है वहां बहुत ज्यादा अपराध हो रहे हैं। नहीं, इसका अर्थ यह है कि वहां पर ज्यादा मामले रिपोर्ट होते हैं उन्हें दबाया नहीं जाता। ठीक उसी तरह पुलिस भर्ती पेपर लीक का पर्दाफाश होना हिमाचल में कानून व्यवस्था की संजीदगी और तत्परता को दर्शाता। वरना बेहत महत्वपूर्ण माने जाने वाले चुनावी वर्ष में कोई लीपापोती भी हो सकती थी।

    सिस्टम में सुधार जरूरी
    इस पूरे मामले को लेकर एक बात तो साफ है कि भर्तियों को लेकर बने सिस्टम को लेकर एक बार फिर से गौर करने की जरूरत है कि कैसे इसे फूल-प्रूफ किया जा सके ताकि कोई भी वयक्ति किसी अभ्यर्थी की मेहनत में सेंध न लगा सके। इस पुलिस भर्ती को लेकर ऐसा नहीं देखा गया कि बड़े पैमाने पर युवा सड़कों पर उतरकर गड़बड़ी के आरोप लगा रहे हों, जबकि 74 हज़ार से ज्यादा अभ्यर्थियों ने लिखित परीक्षा दी थी। हां कुछ छोटे समूहों ने आशंका जताई थी और उस पर जांच भी हो चुकी थी।

    पिछली विभिन्न सरकारों की बहुत सारी भर्तियों के उदाहरण हैं जिन मामलों में अभ्यर्थियों को भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ी का अंदेशा हुआ और फिर मामले को परीक्षा देने वाले अभ्यर्थियों ने ही कोर्ट पहुंचाया। हिमाचल में लोगों ने वह दिन भी देखा जब एक विवादित बाबा के यहां रेड डालने और प्रतिबंधित चीजें पकड़े जाने पर पूर्व मुख्यमंत्री ने रातों-रात थाने के पूरे स्टाफ का ट्रांसफर करवा दिया था। संयोग से यह घटना भी चुनावी वर्ष की थी।

    परीक्षार्थियों की ओर से भर्ती प्रक्रिया में सवाल उठाना सामान्य सा चलन हो चुका है। उदाहरण के दौर पर इसी सरकार में पटवारी भर्ती को लेकर भी सवाल उठाए गए थे। मामला कोर्ट भी पहुंचा। कोर्ट के आदेश पर सीबीआई से भी जांच करवाई गई, लेकिन मामले में कुछ भी नहीं निकला।

    बहुत सारी बातें हो रही हैं होती भी रहेंगी, लेकिन सरकार ने चुनावी साल होने के बावजूद इस मसले पर तुरंत बड़ा फैसला लिया। परीक्षा तो रद्द की ही गई साथ ही नई परीक्षा भी इसी महीने के अंत तक आयोजित करवाने के लिए भी कहा गया है। हां इतना जरूर है कि जिन परीक्षार्थियों ने कड़ी मेहनत से परीक्षा पास की थी उन्हें फिर से उस लिखित परीक्षा की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा। लेकिन यह भी सही है कि जब सच्चाई का पता चल चुका था तो कानून के मुताबिक जो त्वरित फैसला लेना एक अच्छी मिसाल है। बावजूद इसके ऐसी व्यवस्था हर हाल में बनाई जानी चाहिए कि बेरोजगार युवाओं की मेहनत पर पानी न फिरे। क्योंकि पेपर लीक, नकल आदि करने वाले चंद लोग होते हैं और भर्ती रद्द होने या दोबारा होने से हजारों ईमानदार युवाओं को परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

    (ये लेखक के निजी विचार हैं)

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