चट्टानों पर पेंटिंग होने देने पर सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल सरकार पर लगाया था 1 करोड़ का फाइन

इन हिमाचल डेस्क।। मामला सितंबर 2002 का है। उस वक्त हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार थी। सुप्रीम कोर्ट ने 23 सितंबर 2002 को हिमाचल प्रदेश सरकार पर 1 करोड़ रुपये का भारी-भरकम जुर्माना लगाया। क्यों? क्योंकि हिमाचल प्रदेश सरकार अपने कर्तव्य का निर्वहन करने में अक्षम रही थी। और यह कर्तव्य था- कुल्लू मनाली-रोहतांग हाइवे पर संवेदनशील चट्टानों पर कंपनियों ने विज्ञापन बना दिए थे मगर सरकार ने इसपर कोई ऐक्शन नहीं लिया।

इस मामले में कोर्ट ने एक एक्सपर्ट कमिटी भी बनाई थी जिसने विडियो फिल्म के साथ कोर्ट में सबूत दिए थे। रिपोर्ट के मुताबित एमबीडी बुक्स ने 78 विज्ञापन चट्टानों पर पेंट किए थे, कोकाकोला ने 44 और पेप्सिको ने 6 विज्ञापन बनाए थे। कमिटी ने अंदाजा लगाया था कि इन विज्ञापनों को चट्टानों से हटाने का खर्च 1.75 करोड़ होगा। इससे पहले 17 सितंबर को कोर्ट ने पेप्सिको, कोका कोला और 10 अन्य कंपनियों पर भी फाइन लगाया था और 48 घंटों के अंदर रकम जमा करने को कहा था। (इस मामले में फाइनैंशल एक्सप्रेस ने Rape of the Rock नाम से सीरीज चलाई थी, जिसे आप यहां क्लिक करके पढ़ सकते हैं)

चट्टानों पर पेंट से लिखने में क्या है गलत?
रॉक पेंटिंग यानी चट्टानों पर इश्तिहार बनाना या स्लोगन आदि लिखना वन संरक्षण अधिनियम 1980 (Forest Conservation Act 1980) का सीधा उल्लंघन है। इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश में तत्कालीन बीजेपी सरकार को भारी-भरकम 1 करोड़ जुर्माना लगाया था। मगर बीजेपी ने इससे सबक नहीं लिया है। 15 साल बाद बीजेपी सरकार में आने की इच्छुक है और अभी से इलेक्शन मोड में आ गई है। इसके लिए उसके कार्यकर्ताओं ने तमाम नियमों को ताक पर रखते हुए चट्टानों पर बीजेपी का चुनाव चिह्न कमल बनाना और नारे लिखना शुरू कर दिया है। चट्टानें छोड़िए, PWD द्वारा रोड सेफ्टी के लिए बनाए गए पैराफिट और अन्य जगहों पर रिफ्लेक्शन के लिए बनाए गए सफेद निशानों पर भी स्लोगन लिखे जा रहे हैं।

चट्टानों पर चढ़कर हो रही ‘कलाकारी”

समस्या यह है कि सबसे पहले In Himachal ने जब धारटीधार (नाहन) की तस्वीरें छापी थीं तब एक शख्स ने लिखा था कि हम कार्यकर्ताओं के बजाय हमारे नेताओं से पूछिए जिनसे हमें नारे आदि लिखने का निर्देश मिला है। बावजूद इसके यह सिलसिला प्रदेश भर में जारी है। प्रदेश की राजधानी शिमला तक में कानून की धज्जियां उड़ाते हुए चट्टानों पर कमल के निशान बनाए जा रहे हैं। ध्यान रहे कि यह काम उसी बीजेपी के कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है जिसके सर्वोच्च नेता और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी महत्वाकांक्षी ‘स्वच्छ भारत’ मिशन चला रहे हैं।

चट्टानों पर नारे लिखे जा रहे हैं

हिमाचल प्रदेश सरकार बैठी है चुप
चूंकि इसी तरह के मामले में 2002 में सरकार को कोई कार्रवाई न करने की वजह से सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी का सामना करना पड़ा है, ऐसे में इस सरकार की भी जिम्मेदारी बनती है कि वह खुद आगे बढ़कर न सिर्फ बीजेपी बल्कि अन्य शिक्षण संस्थानों या कंपनियों पर कार्रवाई करे जो फिर से प्रदेश के सौंदर्य को बिगाड़ते हुए चट्टानों पर अपना प्रचार कर रही है। सरकारी संपत्ति (पैराफिट, सड़क किनारे लगे खंबे आदि) पर भी न तो कोई पोस्टर लगाया जा सकता है और न ही नारे लिखे जा सकते हैं। इस मामले में भी संबंधित धाराओं के तहत कार्रवाई हो सकती है। वरना कहीं ऐसा न हो कि फिर से सरकार के बजाय कोर्ट को कार्रवाई करनी पड़े और एक बार फिर खुद सरकार को भी यह झेलनी पड़े।

क्या नुकसान हो सकता है बीजेपी को?
पार्टियां छवि को होने वाले नुकसान की चिंता तो करती नहीं हैं, इसलिए यह सोचना बेमानी है कि पार्टी खेद प्रकट करते हुए अपने कार्यकर्ताओं को कहेगी कि इन रॉक पेंटिंग्स को हटाए। हो सकता है लगता हो कि सरकार अपनी आएगी तो डर काहे का, केंद्र में भी अपनी सरकार है। मगर ध्यान रहे कि कोर्ट को इन सब बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता। ‘इन हिमाचल’ ने इस मामले में कानून के जानकारों से बात करी तो उन्होंने कहा, ‘यदि यह मामला कोर्ट पहुंचा तो 2002 की तरह कोर्ट उसी तरह बीजेपी से जुर्माना भरने के लिए कह सकता है, जैसे पेप्सी, कोक और अन्य कंपनियों को कहा था। यह फाइन उतना ही हो सकता है जितना खर्च सब जगह की गई पेंटिंग को हटाने में आएगा।’

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