शिमला।। गर्मियों का आगमन हुआ ही है और जंगलों में आग लगने का सिलसिला शुरू हो गया है। हाल ही में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने वन अग्नि गाजरूकता अभियान की शुरुआत की ताकि लोगों को इस विषय में जागरूक किया जाए। पिछली सरकारें भी इस तरह के कई कार्यक्रम करती रही हैं, मगर जमीन पर उनका असर कम ही देखने को मिलता है।
दरअसल कई बार जंगलों में शरारती तत्व आग लगा देते हैं तो कई बार पास में रहने वाले लोग चारे के लालच में आग भड़का देते हैं। कई बार जंगल के साथ लगी अपनी जमीन में लगाई गई आग भी अनियंत्रित हो जाती है। वैसे प्राकृतिक कारणों की तुलना में आग इंसानों द्वारा ज्यादा लगाई जाती है।
वित्त वर्ष 2017-18 (जो अभी जारी है) में पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 50 प्रतिशत कम मामले सामने आए हैं। यह राहत की बात तो लगती है लेकिन अभी भी 10 दिन बचे हुए हैं और गर्मी बढ़ने के कारण मार्च के आखिरी हफ्तों से आग लगने की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
25 फरवरी तक रिपोर्ट की गई आग लगने की 845 घटनाओं में 5,748 हेक्टेयर वनों को नुकसान पहुंचा है और अनुमान है कि इससे लगभग नौ करोड़ रुपये की वन संपदा का नुकसान हुआ है।
वहीं 2016-17 में 1832 घटनाएं रिपोर्ट की गई थीं, जिनमें 19538 हेक्टेयर जमीन पर लगे वन चपेट में आए थे औ नुकसान हुआ था करीब साढ़े तीन करोड़ रुपये का। यानी इस साल कम घटनाओं के वाजबूद ज्यादा नुकसान हुआ है।
समस्या ये भी है कि जंगलों में आग लगने की घटनाओं की गंभीरता से जांच नहीं की जाती। यदि कोई व्यक्ति किसी की गाड़ी या घर में आग लगा दे तो गंभीरता से कार्रवाई की जाती है। जंगलों के मामले में न तो वन विभाग की तरफ से तत्परता नजर आती है न पुलिस और अन्य एजेंसियों की तरफ से। नतीजा, आग लगाने के मामले में शायद ही कोई कार्रवाई हुई हो। यही कारण है कि निरंकुश होकर लोग लगातार आग लगाते हैं।
जरूरी है कि हर नागरिक अपना फर्ज निभाए। अगर आपको पता चले कि किस व्यक्ति ने आग लगाई है और क्यों, तुरंत पुलिस को सूचना दें। साथ ही फायर डिपार्टमेंट को भी, ताकि समय रहते आग पर काबू पाया जा सके।