40 साल पहले हमीरपुर की वो शाम जब बुजुर्ग ने अजनबी से माँगी लिफ्ट

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डॉ. आशीष नड्डा।। ये बात है 1978-79 के हिमाचल की। उस समय सड़क परिवहन में सार्वजनिक यातायात के साधन इतने विकसित नहीं हुए थे। ज़िला हमीरपुर की बड़सर तहसील में एक गाँव है- बरोटी, जो समताना उखली इलाक़े के पास है। आजकल वो गाँव शायद बिझड़ तहसील में होगा।

एक गाँव का एक बुज़ुर्ग और उनका एक नौजवान बेटा नीचे पहाड़ी उतरकर बिलासपुर-हमीरपुर रोड पर पैदल भोटा की तरफ़ चल रहे थे। शाम का समय था, लोग पशुओं को घरों की ओर हांक रहे थे। मैड़ गाँव का पुल पार करने पर एकदम घना जंगल शुरू होता था। दोनों व्यक्ति डूबते सूरज की अंतिम किरणों का फ़ायदा लेने के चक्कर में तेज़-तेज़ चल रहे थे।

सड़कों पर उस ज़माने में इक्का-दुक्का वाहन ही गुज़रा करते थे। टियाले-दा-घट मंदिर के पास उन्हें बिलासपुर की तरफ़ से आता एक वाहन दिखा। हेडलाइट ही चमक रही थी, गाड़ी क्या थी पता नहीं चल रहा था। दोनों ने कंधे पर रखा साफ़ा हाथ में पकड़ा और लिफ़्ट लेने के लिए हाथ बढ़ाकर लहरा दिया।

गाड़ी और इन लोगों को पीछे छोड़कर चंद कदमों की दूरी पर रुक गई। अंदर बैठे व्यक्ति से इन्होंने कहा कि हमें भोटा तक जाना है। गाड़ी वाले ने दोनों को बिठा लिया। कार में सफ़ारी सूट पहनकर बैठे भद्रपुरुष ने पूछा- क्या आप भोटा की तरफ़ के है, घर जा रहे हैं?

इस पर बुज़ुर्ग ने बताया वो बरोटी गाँव के हैं और उनका बड़ा बेटा भोटा डिस्पेंसरी में एडमिट है। बुजुर्ग ने बताया कि वो छोटे बेटे के साथ रात का खाना लेकर वहाँ रुकने जा रहे हैं। बस, इतनी सी बात हुई। बाक़ी सफ़र में गाड़ी के अंदर ख़ामोशी पसरी रही। गाड़ी में पीछे भद्रपुरुष के साथ दोनों पिता-पुत्र बैठे थे और आगे ड्राइवर के साथ वाली सीट पर कोई और आदमी पहले से बैठा हुआ था।

जब गाड़ी भोटा चौक पर पहुँची तो नौजवान ने ड्राइवर से कहा कि आप यहीं हमें उतार दीजिए। ड्राइवर गाड़ी रोकने ही वाला था कि उनके साथ पिछली सीट पर बैठे भद्रपुरुष ने कहा कि हॉस्पिटल तो थोड़ा दूर ऊना की तरफ़ वाले रोड पर है। ड्राइवर इशारा भाम्प गया और गाड़ी हॉस्पिटल रोड की तरफ़ मुड़ गई।

गाड़ी जब परिसर के अंदर दोनों व्यक्तियों को छोड़ने पहुँची तो अँधेरा हो चुका था। बुज़ुर्ग और नौजवान ने गाड़ी से उतरकर अंदर बैठे लोगों का हाथ जोड़कर धन्यवाद किया। इतने में फ़्रंट सीट पर बैठे शख़्स ने पूछा- “क्या आपने पिछली सीट पर बैठे महोदय को पहचाना?”

बुज़ुर्ग और नौजवान ने जब चेहरे पर अनभिज्ञता के भाव लाए तो प्रश्न पूछने वाले ने ही जबाब दिया, “ये आपके और हम सब के प्रदेश हिमाचल के मुख्यमंत्री श्री शांता कुमार हैं।“ इसी के साथ गाड़ी अपने रास्ते निकल गई।

ये वाक़या मुझे इन बुजुर्ग के पोते और अस्पताल में एडमिट रहे शख़्स के बेटे डॉक्टर नीरज जसवाल ने बताया। आज न नीरज जी के दादा इस संसार में हैं न पिताजी। नीरज भी दिल्ली में अपना हेल्थ सेंटर चलाते हैं। लॉकडाउन के दौरान इन दिनों वो भी घर पर हैं। इसी दौरान घर पर हुई चर्चा में अपने चाचाजी से उन्हें यह वाक़या सुनने को मिला जो उस शाम अपने पिताजी के साथ गाड़ी में बैठे थे।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से हैं और लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। यह वाक़या उनकी फ़ेसबुक टाइमलाइन से साभार लिया गया है। इसे कोविड लॉकडाउन के दौर में पहली बार प्रकाशित किया गया था।)

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