ब्रह्मांड के रहस्यों से रूबरू करवाने वाला ब्रह्मांड में विलीन

आशीष नड्डा॥ जीवन में जरा बीमारी या किसी भी तरह की समस्या ग्रसित होकर जब आम लोग जिजीविषा के प्रति निरूत्साहित हो जाते हैं। वहीँ लम्बी और असाध्य बीमारी से जूझता हुआ वो शख्श एक महान वैज्ञानिक बनकर मानव सभ्यता की प्रगति में व्हील चेयर पर बैठकर गर्दन को एक तरफ झुकाये हुए नई दिशा देता रहा । जंहा अपनी असफलताओं के लिए हम लोग अपनी बीमारियों समस्याओं को जिम्मेदार ठहराते हैं वहीँ अपनी सफलता का राज बताते हुए वो शख्श एक बार कहता है

“उनकी बीमारी ने उन्हें वैज्ञानिक बनाने में सबसे बड़ी भूमिका अदा की है। बीमारी से पहले वे अपनी पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं देते थे लेकिन बीमारी के दौरान उन्हें लगने लगा कि वे लंबे समय तक जिंदा नहीं रहेंगे तो उन्होंने अपना सारा ध्याना रिसर्च पर लगा दिया, भौतिकी पर किए गए मेरे अध्ययन ने यह साबित कर दिखाया कि दुनिया में कोई भी विकलांग नहीं है।” ”

वो शख्श जिसने जिंदगी को अलग अंदाज में अपने काम के लिए समर्पित किया , विज्ञान से लेकर हर फील्ड से सबंधित लोग जिन्हे जानते रहे हैं वो महान वैज्ञानिक स्टीफन विलियम हाकिंग आज इस संसार को अलविदा कह गए।

” किसी इंटरव्यू में एक बार उन्होंने कहा था की ” मैं पिछले 49 सालों से अपनी मृत्यु का अनुमान लगा रहा हूँ , मुझे मौत से डर नहीं लगता , बल्कि मुझे चिंता यह है मरने से पहले मुझे बहुत सारे काम करने है ”

स्टीफन विलियम हाकिंग का जन्म इंग्लैंड के शिक्षा हब के रूप में विख्यात शहर : ऑक्सफ़ोर्ड में 8 फरवरी 1942 को माता इसाबेल और पिता फ्रेंक हाकिंग के घर पर हुआ था। संयोग की बात यह है आगे चलकर महान खगोल वैज्ञानिक बने स्टीफन हाकिंग और अपने जमाने के महान खगोलशास्त्री रहे गैलीलियो गलीली की जन्मतिथि एक ही थी।

स्टीफन बाद में जितने महान ब्रह्मांड विज्ञानी बने , उनका स्कूली जीवन शुरू में उतना उत्कृष्ट नहीं था | स्टीफन स्कूली समय में अपनी कक्षा में औसत से कम अंक पाने वाले छात्र थे, किन्तु उन्हें बोर्ड गेम खेलना अच्छा लगता था | उन्हें गणित में बहुत दिलचस्पी थी, यहाँ तक कि उन्होंने गणितीय समीकरणों को हल करने के लिए कुछ लोगों की मदद से पुराने इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के हिस्सों से अपना ही एक कंप्यूटर बना दिया था | उस दौर में गणित पढ़ने वालों के पास मास्टर बनने के अलावा कोई ख़ास नौकरी नहीं होती थी इसलिए उनके पिता फ्रेंक चाहते थे स्टीफन विज्ञान (मेडिकल ) पढ़े औरउनकी तरह ही एक डॉक्टर बने । स्टीफन ने पिता की बात मानी और गणित के साथ साथ फिजिक्स और केम्सिट्री पर भी बराबर ध्यान देना शुरू कर दिया।

सनातक के लिए स्टीफन ने ऑक्सफ़ोर्ड कालेज में एडमिसन ले लिया। पढ़ाई में एक औसत छात्र हाकिंग को किताबों को पढ़कर नोट्स बनाने की आदत थी किताबों से नोट्स बनाने के दौरान हाकिंग किताबों की गलतिया भी निकालते और उन्हें पब्लिशर को भेजते थे। स्नातक के फाइनल ईयर में उन्होंने cosmology ( बर्ह्माण्ड विज्ञान से सबंधित सब्जेक्ट ) को अपना मुख्य विषय चुना। इसी दौरान उन्होंने तय किया की वो अब PHD भी करेंगे और प्रतिष्ठीत कैमब्रिज विश्विद्यालय में उन्हीने इसके लिए अप्प्लीय कर दिया। 1962 में उन्हें कैम्ब्रिज में एडमिशन मिल गया।

उनकी उम्र उस समय मात्र 21 वर्ष की थी। यह वर्ष कैम्ब्रिज में एडमिशन की ख़ुशी के साथ साथ उनके जीवन में एक और तूफ़ान लेकर भी आया ”

स्टीफन एक बार घर आये तो सीढ़ियों से गिर गए , और बेहोश हो गए। शुरू में यह नार्मल लगा , की कमजोरी की वजह से हुआ। परन्तु बाद में यह बार बार होने लगा। आखिर डॉक्टर उस वीभत्स नतीजे पर पहुंचे जिसने स्टीफन और उनके परिवार को हिलाकर रख दिया। ” डाक्टरों के अनुसार स्टीफन एक अनजान और कभी न ठीक होने वाली बीमारी से ग्रस्त हैं जिसका नाम है न्यूरॉन मोर्टार डीसीस । इस बीमारी में शारीर के सारे अंग धीरे धीरे काम करना बंद कर देते है परन्तु मस्तिष्क एकदम सही रहता है ।और अंत में श्वास नली भी बंद हो जाने से मरीज घुट घुट के मर जाता है।
डॉक्टरों ने यंहा तक कह दिया की हॉकिंग बस 2 साल के मेहमान है। लेकिन हाकिंग ने अपनी इच्छा शक्ति पर पूरी पकड़ बना ली और उन्होंने कहा की मैं 2 नहीं 20 नहीं पूरे 40 सालो तक जियूँगा। उस समय उन्हें हौसला देने के लिए उनकी हाँ में हाँ मिला दी गयी परन्तु 2012 में अपने 70 वे जन्मदिन पर भी जब कहा उन्होंने कहा “मैं और जीना चाहता हूँ” तो उनकी जिजीविषा से संसार फिर रूबरू हुआ।

हालाँकि धीरे-धीरे हाकिंग की शारीरिक क्षमता में गिरावट आना शुरू हो गयी| उन्होंने बैसाखी का इस्तेमाल शुरू कर दिया और नियमित रूप से व्याख्यान देना बंद कर दिया। उनके शरीर के अंग धीरे धीरे काम करना बंद हो गये और उनका शरीर एक जिन्दा लाश समान बन गया | लेकिन हाकिंग ने विकलांगता को अपने ऊपर हावी नहीं होने । उन्होंने अपने शोध कार्य और सामान्य जिंदगी को रूकने नहीं दिया।

जैसे जैसे उन्होंने लिखने की क्षमता खोई, उन्होंने प्रतिपूरक दृश्य तरीकों का विकास किया यहाँ तक कि वह समीकरणों को ज्योमेट्री के संदर्भ में देखने लगे। बीमारी बढ़ने पर उन्हें व्हील चेयर की जरूरत हुई , उन्हें वो भी दे दी गयी और उनकी ये चेयर तकनिकी रूप से काफी सुसज्जित थी। अंत में मस्तिषक को छोड़कर उनके अंगों ने काम करना बंद कर दिया फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और अपनी स्पेशल व्हील चेयर से अपने गाल की मांसपेशी के जरिए, अपने चश्मे पर लगे सेंसर को कम्प्यूटर से जोड़कर ही बातचीत करते थे

ब्रह्मांड के स्थापित बिग बैंग थ्योरी जैसे नियमों को हाकिंग ने चुनौती दी। उन्होंने ब्लैक होल का कांसेप्ट दुनिया को दिया, उन्होंने हॉकिंग रेडिएशन का विचार भी दुनिया को दिया । और उनकी लिखी गयी किताब “A BRIEF HISTORY OF TIME “ ने दुनिया भर के विज्ञान जगत में तहलका मचा दिया।
एक बार उनसे पूछा गया , हॉकिंग को अपनी कौन सी उपलब्धि पर सबसे ज्यादा गर्व है?
हॉकिंग जवाब देते हैं ”मुझे सबसे ज्यादा खुशी इस बात की है कि मैंने ब्रह्माण्ड को समझने में अपनी भूमिका निभाई। इसके रहस्य लोगों के लिए खोले और इस पर किए गए शोध में अपना योगदान दे पाया। मुझे गर्व होता है जब लोगों की भीड़ मेरे काम को जानना चाहती है।”

स्टीफन हाकिंग विचारों से नास्तिक थे इस कारण उनकी दुनिया में किरकिरी भी बहुत हुयी परन्तु वो अपने विचारों पर अडिग थे , हॉकिंग का IQ 160 आंका गया है जो किसी जीनियस से भी कहीं ज्यादा था । 2007 में उन्होंने अंतरिक्ष की सैर भी की।

हाकिंग कहते थे ” हमेशा सितारों की ओर देखो न कि अपने पैरों की ओर” बेशक आज हाकिंग हमारे बीच नहीं हैं लेकिन
स्टीफन विलियम हाकिंग विज्ञान जगत और मानव सभ्यता में योगदान देने वाला यह नाम एक सितारे की तरह हमेशा अंतरिक्ष में चमकता रहेगा

लेखक IIT दिल्ली से एनर्जी पोलसियी में पी एच डी हैं और वर्तमान में वर्ल्ड बैंक ग्रुप में कंसल्टैंट के पद पर कार्यरत हैं

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