क्यों हिमाचल अभी वहां नहीं पहुंच पाया, जहां उसे काफी पहले पहुंच जाना चाहिए था?

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आई.एस. ठाकुर

वर्षोंपहले रोजगार के सिलसिले में पहले मुंबई जाना हुआ, फिर बेंगलुरु और बाद में लंदन होते हुए कई वर्षों से डबलिन में रह रहा हूं। आयरलैंड बेहद खूबसूरत देश है। कुछ इलाके यहां के ऐसे हैं जो सीधे हिमाचल की याद दिलाते हैं।

आयरलैंड के वॉटरफर्ड की यह तस्वीर कांगड़ा की याद दिलाती है।

मैं सोचता हूं कई बार क्यों नहीं हिमाचल ऐसा हो जाता। अपने प्रदेश में कोई बुराई नहीं है, मगर यहां से तुलना करने पर लगता है कि जिस चीज़ का हकदार हिमाचल है, वह उसे नहीं मिल पा रहा। हिमाचल प्राकृतिक सौंन्दर्य और संसाधनों से संपन्न है। यहां के लोग भी मेहनती हैं और जलवायु भी उत्तम है। फिर क्यों यह उतनी तरक्की नहीं कर पाया, जितनी तरक्की यह कर सकता था?

जड़ों से दूर यहां पराए मुल्क में बैठकर भी मैं प्रदेश की खबरों पर नजर रखता हूं। ऑनलाइन अखबार ही हैं, जिनसे पता चलता है कि जन्मभूमि में क्या हो रहा है। मैं महसूस करता हूं कि हमारा छोटा सा प्रदेश दो वजहों से अपने मुकाम तक नहीं पहुंच पा रहा। पहला- यहां के लोग संतोषी स्वभाव के हैं, दूसरा- यहां हल्की राजनीति होती है।

पहले पॉइंट पर बात करता हूं। हिमाचल के लोग संतोषी स्वभाव के होते हैं यानी वे कम में भी संतुष्ट हो जाते हैं। जो ज्यादा चाहेगा नहीं, वह ज्यादा करेगा नहीं। जो कम में संतुष्ट हो जाएगा, वह अधिक की चाह रखेगा ही नहीं। यही संतोषवादी प्रवृति हिमाचल प्रदेश के लोगों को थोड़ा सुस्त बनाती है। वे अपने दायरे से बाहर निकलकर कुछ करना नहीं चाहते। मैं भी अपने कंफर्ट ज़ोन से बाहर नहीं निकलना चाहता था। चाहत थी कि प्रदेश में ही कोई नौकरी मिल जाए तो मौज हो जाए। कई वर्षों से बाहर हूं, मगर आज भी हिमाचल को नहीं भुला पाया और न ही इस पराई जगह को अपना पाया हूं। मेरे कई दोस्त और रिश्तेदार हैं, जिनमें मैं यही भावना देखता हूं।

हिमाचलियों को चाहिए कि वे कंफर्ट जोन से बाहर निकलें, बड़ा सोचें, बड़े की चाहत रखें और रिस्क लेने की हिम्मत उठाएं। वे काबिल हैं, सक्षम हैं और मेहनती भी हैं। जिस भी क्षेत्र में जाएंगे, छा जाएंगे। प्रदेश के बाहर भी दुनिया है और मौकों की असीम संभावनाएं हैं।

दूसरी बात है- छिछले मुद्दों की राजनीति। यह तथ्य सबके सामने है कि हिमाचल की राजनीति बेहत छिछली और ओछी हो चुकी है। न कोई नीतियों की बात करता है और न ही जनता से जुड़े मुद्दों की। दो ही मुद्दे प्रदेश की राजनीति पर हावी हैं- वीरभद्र के सेब और अनुराग का स्टेडियम। बीजेपी और कांग्रेस की राजनीति इन्हीं मुद्दों पर के इर्द-गिर्द घूम रही। एक नेता धमकी देता है तो दूसरा आरोप लगा देता है। एक ऐसा कहता है तो दूसरा वैसा कह देता है। ऐसा लगता है कि धूमल और वीरभद्र की आपसी लड़ाई ही प्रदेश का मुद्दा है। मुझे एक बात समझ नहीं आती कि इन दोनों बातों का जनता के हित से क्या लेना-देना?

जनता को दोनों की लड़ाई से क्या फायदा?

अगर लेना-देना है भी तो इतना कि अगर दोनों नेताओं ने कोई गलत काम किए हैं, जनता का हक मारा है, भ्रष्टाचार किया है तो दोषी के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। मगर इन दोनों की आपसी खुन्नस और हर जगह पर एक-दूसरे पर कीचड़ उछालना दिल को कष्ट देता है। शायद इनकी रणनीति ही यही है कि फालतू में जनता को उलझाए रखो, असल मुद्दों की कोई बात ही नहीं करेगा।

ऑनलाइन खबरों से पता चलता है कि प्रदेश में शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार की स्थिति बहुत अच्छी नहीं है।  इन दिशाओं में काम होना चाहिए और इसी से प्रदेश का भला होगा। साथ ही हिमाचल प्रदेश की जनता को भी चाहिए कि इस तरह बेवकूफ बनाकर हवाई बातें करने वाले पुराने दौर के नेताओं को खारिज करें। कोई ऐसा नेता देखें, जिसके पास विज़न हो। दलगल राजनीति से ऊपर उठकर ऐसे नेताओं को समर्थन और वोट दिए जाएं, जो प्रदेश को सही दिशा दें।

(लेखक आयरलैंड में रहते हैं और ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com से संपर्क किया जा सकता है।)