जांच पर मीडिया ने भी उठाए सवाल, पुलिस की थ्योरी में बताए ‘लूप होल्स’

शिमला।। शिमला प्रकरण को लेकर जहां ज्यादातर अखबारों ने पुलिस द्वारा मामले का खुलासा करने की खबर को प्रमुखता दी है, वहीं कुछ अखबारों ने पुलिस की थ्योरी पर उठ रहे सवालों का भी जिक्र किया है। इस मामले में ‘अमर उजाला’ अखबार उन चुनिंदा मीडिया आउटलेट्स में शामिल है, जिन्होंने वैसे ही निर्भीक रिपोर्टिंग की है, जैसी होशियार सिंह केस में की थी। अखबार ने ‘चंद घंटों में पलट गई पुलिस की कहानी’ शीर्षक से एक विस्तृत रिपोर्ट छापी है। इसमें अखबार ने पुलिस द्वारा दी गई थ्योरी पर सवाल उठाए हैं। पेज नंबर 2 पर छपी रिपोर्ट (यहां क्लिक करके पढ़ें पूरी खबर) में नक्शा भी दिया गया है जिसमें बताया गया है कि घटनास्थल, स्कूल और घर आदि के बीच में कितनी दूरी है। इस रिपोर्ट में अखबार ने पुलिस द्वारा बताई गई थ्योरी की पड़ताल की है।

रिपोर्ट में लिखा गया है कि गुड़िया प्रकरण पर पुलिस की थ्योरी चंद घंटों में पलटती नजर आई। पहले स्थानीय निवासी आशीष चौहान उर्फ आशु की गिरफ्तारी दिखाई गई। गुरुवार सुबह पुलिस ने आधिकारिक प्रेस नोट जारी किया था, उसमें आशु की गिरफ्तारी की बात ही गई थी। मगर 2 घंटों के अंदर पांच अन्य लोगों की गिरफ्तारी की जानकारी दी गई। अमर उजाला लिखता है, ‘अब सवाल उठ रहा है कि जब पुलिस के पास जानकारी थी कि आशु मुख्य आरोपी नहीं है तो सुबह 11 बजे तक उसी ही गिरफ्तार क्यों दिखाया गया। केस में अगर 55 घंटों की तफ्तीश थी और पुलिस सही दिशा में काम कर रही थी तो सभी आरोपियों की गिरफ्तारी एकसाथ क्यों नहीं दिखाई गई? सिर्फ आशु की गिरफ्तारी का खुलासा करने की जल्दी क्या थी? क्या तब तक नेपाली थ्योरी सामने नहीं आई थी?’

आगे अखबार लिखता है- पुलिस की ओर से दिखाई गई जल्दबाजी सवालों के घेरे में है जबकि कन्फेशन के अलावा कोई और ठोस सबूत उशके हाथ नहीं लगा है। आगे एक अहम बात लिखी गई है- रसूखदार लोगों को छोड़ पुलिस नेपाली मूल के लोगों को आरोपी बनाएगी, इसकी आशंका शुरू से व्यक्त की जा रही थी। आरोपी आशीष चौहान की गिरफ्तारी की खबर मीडिया में फ्लैश होने के बाद राज्य पुलिस मानकर चल रही थी कि मामले में वह शामिल है और इसकी पीछे उसकी हिस्ट्री बताई जा रही थी। उसे नशे का आदी कहा जा रहा था।

जिन सवालों का जवाब नहीं मिला है
अमर उजाला ने 6 ऐसे सवालों का जिक्र किया है जो अनुत्तरित हैं। ये इस तरह से हैं-

1. जब चार जुलाई को गुड़िया की मौत हो गई थी तो 6 जुलाई तक खूंखार जानवरों वाले जंगल में उसकी लाश कैसे बची रही?

2. शव के साथ अगर उसके कपड़े रखे गए थे वे इससे पहले हुई बारिश के बावजूद सही सलामत कैसे थे?

3. अगर दो दिन तक लाश वहीं पड़ी रही तो उसके हाथ पैर और पूरा शरीर बिल्कुल साफ-सुथरा कैसे था?

4. दुराचार के दौरान आत्मरक्षा की कोशिश में उसके हाथ औऱ शरीर में मिट्टी क्यों नहीं लगी?

5. इस मामले में जो दो नेपाली पकड़े गए हैं, उनके डेरे से घटनास्थल सिर्फ 200 मीटर दूर है। सवाल उठता है कि उन्होंने ये हत्या की होती तो वे वहां शव क्यों फेंकते?

6. आमतौर पर जघन्य हत्या करने के बाद नेपाली भाग जाते हैं (क्योंकि नेपाल के साथ प्रत्यर्पण संधि न होने से उन्हें पकड़ना मुश्किल होता है)। लेकिन इस मामले में वे क्यों नहीं भागे?

लोग भी उठा रहे हैं सवाल
बेशक पुलिस इस मामले में आरोपियों को पकड़ने का दावा कर रही है मगर लोग इस जांच पर सवाल खड़े कर रहे हैं। अमर उजाला अखबार लिखता है कि मदद सेवा ट्रस्ट की प्रमुख तनुजा थापटा ने कुश सवाल दागे हैं और सीबीआई जांच की मांग की है। उन्होंने पुलिस पर कई सवाल उठाए हैं। जैसे कि अगल रेप जंगल में हुआ तो उसकी आवाज किसी ने सुनी क्यों नहीं। यदि नेपाली मूल के लोग शामिल थे तो वे भागे क्यों नहीं, क्या वे पुलिस के आने का इंतजार कर रहे थे? अखबार लिखता है कि आज ठियोग में न्याय की मांग को लेकर चक्का जाम होगा।

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