मंडी।। संदिग्ध हालात में मृत पाए गए वनरक्षक होशियार की हत्या के मामले को कहीं आत्महत्या के केस में बदलने की कोशिश तो नहीं हुई है? जनता के बीच इस प्रश्न को लेकर सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है और तरह-तरह की बातें की जा रही हैं। चूंकि पुलिस ने अभी तक मामले को सुलझाने का दावा नहीं किया है इसलिए कुछ भी कहना जल्दबाजी है। मगर यह सवाल इसलिए उठने लगा है क्योंकि मीडिया में अब इस केस के बारे में जो जानकारियां सामने आई हैं, उनके हिसाब से लगता है कि मामला गड़बड़ है। इस मामले को खुदकुशी का मामला बताने के पीछे जिन कथित सबूतों का हवाला दिया जा रहा है, वे कथित सबूत ही दरअसल इशारा कर रहे हैं कि मामले को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश हुई है। यानी ऐसा लगता है कि हत्यारों ने हत्या के बाद जांच को गुमराह करने के लिए आत्महत्या का रंग देने की कोशिश की है।
सुसाइड नोट या टूर डायरी?
अमर उजाला का कहना है कि पुलिस ने गार्ड के कमरे से एक डायरी बरामद की है जिसमें उसने चार लोगों के नाम लिए हैं- लोभ सिंह, हेतराम, घनश्याम और अनिल। इसमें होशियार ने लिखा है कि चारों अवैध कटान के धंधे से जुड़े हैं और जब इन्हें रोका जाता है तो वे तंग करते हैं और धमकियां देते हैं। पुलिस ने चारों को हिरासत में ले लिया है। डायरी में वन विभाग के कर्मचारियों और अफसरों के नाम भी लिखे गए हैं। मीडिया में चर्चा है कि यह सुसाइड नोट है, मगर इस जानकारी से समझ आता है कि यह संभवत: टूर डायरी है जो फॉरेस्ट गार्डों को दी जाती है। इसमें इन्हें वन में घूमने के दौरान नोटिस की गई चीजों की जानकारी लिखनी होती है। साथ ही अखबार की रिपोर्ट में कहा गया है कि बैग में दादी के नाम संदेश मिला है। इसकी अभी पुष्टि नहीं हो पाई है।
जहर की शीशी का रहस्य क्या है?
अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने जांच के दौरान जहर की दो शीशियां भी बरामद की हैं। एक शीशी जंगल में मिले बैग में और दूसरी होशियार के क्वार्टर से मिली है। घटना स्थल के पास दो जगह उल्टी के निशान भी मिले हैं। पुलिस ने उल्टी के सैंपल्स को जांच के लिए भेज दिया है। अब कुछ अखबार लिखते हैं कि पुलिस को अब लगने लगा है कि मामला आत्महत्या का है। मगर परिजनों का कहना है कि यह तर्क आधारहीन है कि दो जगह उल्टियां मिलीं। उनका कहना है कि जब वह लापता हुआ था तो दो दिन भारी बारिश हुई थी। ऐसे में कैसे संभव है कि उल्टियां वैसी की वैसी हों। बहरहाल, कहा जा रहा है कि पुलिस इस ऐंगल को भी ध्यान में रखकर जांच कर रही है कि कहीं जहर पिलाकर मारने के बाद शव को पेड़ पर न टांगा हो।
कलाइयां नहीं काटी गईं तो वे निशान कैसे?
दिव्य हिमाचल का कहना है कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कलाइयां काटने की बात भी झूठी निकली है। अगर ऐसा है तो यह साफ दिखता है कि उसकी कलाइयों पर खून जमने के निशान हैं। कलाइयों में खून तभी जमेगा जब किसी चीज से बांधकर प्रेशर डाला गया हो। यानी यह हत्या के मामले में ही संभव हो सकता है कि होशियार की कलाइयां बांधकर उसे जबरन जहर पिलाया गया हो (अगल पिलाया गया है) और फिर उसी से खींचकर पेड़ पर टांगा गया और फिर हत्यारे रस्सियां खोलकर चले गए हों। क्योंकि आत्महत्या करने वाले शख्स के हाथों में इस तरह के चोट के निशान कैसे आ सकते हैं? नीचे तस्वीर देखें:
इन सवालों के जवाब देने होंगे पुलिस को
अगर पुलिस इसे आत्महत्या का मामला बतातीु है तो उसे कुछ मुश्किल सवालों के जवाब देने होंगे। प्रश्न यह उठता है कि मृतक की दोनों कलाइयों में ब्लड क्लॉटिंग क्यों हुई थी यानी खून के थक्के क्यों जमे थे? गौरतलब है कि ऐसी खरोंचें और खून के नील तभी आते हैं जब रस्सी से बांधकर प्रेशर डाला हो। अगर होशियार ने आत्महत्या की तो उसके हाथों में ये निशान कहां से आए? प्रश्न यह भी है कि अगर कोई सुसाइड नोट मिला है तो पहले ही दिन वह क्यों नहीं मिल गया? कोई जहर पीने के बाद पेड़ पर क्यों चढ़ेगा? और ऐसा कैसे संभव है कि वह उल्टा लटका है, शर्ट खुली हुई है और नीचे गिरी है? सिर पर चोट कैसे आ गई?
कुछ लोग डायरी में लिखे गए नामों और धमकी वाली बातों के आधार पर कह रहे हैं कि हो सकता है डिप्रेशन में आकर खुदकुशी की हो। सबसे बड़ा सवाल तो यह उठता है कि अगर वन माफिया का इतना ही प्रेशर था तो कोई जॉब छोड़ेगा या यह दुनिया? वैसे भी जिस दिन वह गायब हुआ था, उसी दिन उसने नर्सरी से लाकर महिला मंडल को पौधे भी दिए थे। अगर कोई इतने तनाव में होगा कि मुझे सुसाइड करना है तो क्या वह इस तरह के काम करने में जुटा रहता? चलो मान लिया कि उसे सुसाइड ही करना था क्यों नहीं उसने किसी ढांक से छलांग लगा दी या क्यों नहीं जहर कमरे में पी लिया या क्यों नहीं जंगल में जाकर फंदा बनाकर जान दे दी?
पहली बात तो यह है कि सुसाइड करने वाला सुसाइड नोट को छिपाता नहीं है, बल्कि सामने रखता है। इसे खुदकुशी बताने वाले लोग क्या यह कहना चाहते हैं कि पहले होशियार ने आत्महत्या करने का प्लान बनाया, नर्सली से पौधे लाकर महिला मंडल में दिए, फिर बैग उठाकर वह जंगल में गया, अपनी कलाइयों पर निशान डाले, फिर जहर पीया, उल्टियां कीं, अपना सिर फोड़ा, खरोंचें डालीं और फिर पेढ़ पर चढ़कर उल्टा लटक गया। अगर ऐसा है तो क्रिमिनल साइकॉलजी के इतिहास में यह अनोखा ही मामला है। कुछ अखबार यह लिख रहे हैं कि ‘खुदकुशी’ करने से पहले उसने दादी को फोन करके ख्याल रखने को कहा है। क्या हम-आप परिजनों से बात करने के बाद फोन रखने से पहले उन्हें ख्याल रखने के लिए नहीं कहते? टेक केयर नहीं कहते?
पुलिस की जांच गुमराह तो नहीं हो गई कहीं?
कहीं ऐसा तो नहीं कि पुलिस क्रिमिनल्स के बिछाए जाल में फंसकर गुमराह हो गई है? या कहीं ऐसा तो नहीं कि किसी दबाव में आकर गुनहगारों को बचाने की कोशिश हो रही है? वैसे तफ्तीश के लिए ऐंगल ये भी हो सकते हैं और इन बातों को ध्यान में रखकर भी अपराधियों तक पहुंचा जा सकता है-
चूंकि होशियार ने कुछ दिन पहले लकड़ी की तस्करी करती गाड़ी पकड़ी थी और इसकी शिकायत भी की थी, जाहिर है उसे खतरा था। परिजनों का भी कहना है कि इलाके में कई पेड़ ताजा कटे हैं और होशियार को धमकियां मिल रही थीं। या हो सकता है कि कोई और व्यक्ति हो जो होशियार से किसी खास वजह से खुन्नस खाकर बैठा हो और नफरत में उसने हत्या का प्लान बनाया हो।
हो सकता है कि जंगल में गए होशियार को कुछ लोगों ने घेर लिया हो और उसपर बंदूक या कोई हथियार तान दिया हो। फिर उसके हाथ बांधे हों और उसे जहर पिलाया हो या पीने को मजबूर किया हो। इस दौरान खुद को छुड़ाने की कोशिश के दौरान होशियार की कलाइयों में खून जम गया हो। या मारे जाने के बाद घसीटने के दौरान ऐसे रैशेज़ आए हों।
हो सकता है कि होशियार को मारने के बाद पेड़ पर टांगा गया हो। उसके शव को पेड़ पर फंसाने के बाद हमलावर रस्सियां खोलकर हमलावर फरार हो गए। यह भी हो सकता है कि होशियार के सिर पर किसी वजनदार चीज (संभवत: बंदूक बट्ट) से वार किया गया हो और उसे गंभीर चोट आई हो। इसी से उसकी मौत हुई हो। हो सकता है पीटने के बाद होशियार को बंदूक दिखाकर पेड़ पर चढ़ने के लिए मजबूर किया गया हो ताकि वहां से कूदवाकर मामले को खुदकुशी का रंग दिया जा सके। मगर जहर या चोट के असर के कारण वह चढ़ नहीं पाया और बीच रास्ते में उसने दम तोड़ दिया और उसका शव वहीं पर टहनियों में फंसा रह गया।
यह भी संभव है कि होशियार को कहीं पर बंधक बनाकर रखा गया हो। हो सकता है जब वह लापता चल रहा था तब वह जिंदा था और कहीं पर रस्सियों से बांधकर रखा गया हो। फिर जब मामला उठा तो उसके बाद उसे रास्ते से हटाने के लिए हत्यारों ने उसे मारा हो और इस तरह से शव को फेंक दिया हो और मामले को खुदकुशी का रंग देने की कोशिश की हो। शायद इसीलिए उल्टियों के निशान बचे हुए हैं क्योंकि बारिश तो होशियार के लापता होने के दो दिन बाद हुई थी। यानी बारिश होने के बाद होशियार को यहां लाकर मारा गया। बहरहाल, इसका खुलासा तो पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद ही हो पाएगा कि होशियार की मौत कब हुई थी।
कहीं ऐसा न हो कि होशियार सिंह के पिता की मौत (बताया जा रहा है कि उन्होंने खुदकुशी की थी) से होशियार की मौत को भी लिंक कर दिया जाए और कहा जाए कि फैमिली में डिप्रेशन की हिस्ट्री है, लिहाजा वनरक्षक ने भी प्रेशर न झेलते हुए यह कदम उठा लिया। इस मामले में पुलिस पर सबकी निगाहें टिकी हुई हैं। केस पेचीदा है और अपराधी शातिर। पुलिस को सबूत जुटाने होंगे और मामले की तह तक जाना होगा। अगर यह वाकई सुसाइड का मामला है तो पुलिस के लिए इसे सुसाइड साबित करना और भी मुश्किल होगा।