लजीज ही नहीं, सेहत के लिए भी फायदेमंद हैं ‘आक्खे’ या ‘येलो हिमालयन रास्पबेरी’

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प्रतीक बचलस।। हिमाचल प्रदेश प्राचीन काल से ही जड़ी बूटियों से समृद्ध रहा है।  यहां कई जड़ी-बूटियां तथा बड़े ही दुर्लभ प्रकार के फल भी पाए जाते हैं। आज हम सब एक ऐसे ही फल के बारे में जानेंगे। आक्खे (Yellow Himalayan Raspberry) हिमाचल में पाई जाने वाली एक बेरी है। यह मुख्यत: उत्तराखंड, हिमाचल, पंजाब, नेपाल,असम तथा कश्मीर में पाए जाते हैं। इसका बोटैनिकल नाम Rubus ellipticus है। इसके पौधे 700 – 2000 मी. तक कि ऊँचाई वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसके पौधों में फूल मुख्यत: फरबरी के अंत और मार्च की शुरुआत तक आते हैं। मार्च और अप्रैल से लेकर मई तक इसमें फल लगते रहते हैं जो देखने में लजीज होती हैं। ध्यान रहे, इसकी टहनियां कंटीली होती हैं।

आक्खे सेहत के लिए भी अच्छे हैं। शोध में इसमें कई गुणकारी चीजे जैसे कि विटामिन सी , फ़ास्फ़रोस, कैल्शियम, मैग्नीशियम व आयरन पाए गए हैं। इन सब से हम ये पता लगा सकते है कि ये एक बहुत अच्छा ऐंटीऑक्सिडेंट हो सकता है क्योंकि ऐंटीऑक्सिडेंट मुख्यता विटामिन ए(A),सी (C), ई(E) व क (K) में पाए जाते हैं व इसमे विटामिन सी(C) पाया गया है। ऐंटीऑक्सिडेंट हमारे शरीर मे मौजूद फ्री रेडिकल्स को खत्म करता है। ये फ्री रेडिकल्स हमारे शरीर के लिए बहुत हानिकारक होते है। इनसे कई तरह की बीमारियां होने का खतरा होता है। इनमे से कैंसर मुख्य बीमारी है।य दि हम ऐंटीऑक्सिडेंट्स का पर्याप्त मात्रा में सेवन करते हैं तो हम स्वस्थ रहेंगे। इसके अलावा विटामिन सी ऐंन्टी एजिंग यानी कि बुढ़ापा आने से रोकने में सहायक है। विटामिन सी शरीर की त्वचा को बूढ़ा करने वाले फैक्टर को कम करता है और त्वचा जवान रहती है। इस सब से हमे ये पता चलता है कि ये कितना गुणकारी है।

आक्खे

यदि सरकार का ध्यान इसकी खेती की तरफ जाए तो शायद किसानों को कुछ लाभ हो सकता है।सरकार ने फलों की खेती पर ठीक ध्यान दिया है, उन्होंने 1985 में डॉक्टर वाई .एस .परमार विश्वविद्यालय बागवानी व वानिकी शिक्षा संस्थान की स्थापना की है व वहाँ कई शोध हो रहे हैं जो प्रदेश की अर्थव्यवस्था में अपना योगदान दे रहे है। परंतु इस फल को अनदेखा किया जा रहा है। इसे महज एक घास-फूस और कंटीली झाड़ी समझकर नजरअंदाज किया जा रहा है। प्रदेश सरकार हमेशा से ही फलों उगाने के लिए बागवानों को प्रेरित करती रही है। अभी सरकार सेब की बागवानी या अन्य फलों की बागवानी को प्रोत्साहित कर रही है। ऐसा नहीं है कि सरकार गलत कर रही है। ऐसे प्रयासों की सराहना होनी चाहिए मगर सरकार को आक्खों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए। इसपर रिसर्च भी करना चाहिए ताकि पुष्टि हो जाए कि यह फायदेमंद है या नहीं।

आक्खों की खेती का एक फायदा यह भी है कि इसपर ज्यादा खर्च नहीं उठाना पड़ेगा। इसे कहीं भी लगाया जा सकता है। खाद की भई जरूरत नहीं होती क्योकि कहीं भी उग सकता है। इससे किसानों को फायदा होगा। इनका जूस, शेक और आइसक्रीम बनाकर आर्थिक लाभ लिया जा सकता है।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के ऊना से हैं और नैशनल ऐग्री फूड बायोटेक्नॉलजी रिसर्च इंस्टिट्यूट में सेवाएं दे चुके हैं। उनसे prateekdcoolest120@gmail com पर संपर्क किया जा सकता है।)