- विजय इंद्र चौहान
हड़तालों का कारोबार। जी हां, कारोबार। यह कारोबार देश के लग भग हर कोने में फैला हुआ है। एक समय था जब कुछ दलों के लिए हड़तालें राजनीति करने का मुख्य जरिया थी। हड़तालें कर के, अराजकता फैला के और निरन्तर व्यवस्था का विरोध कर के सत्ता में पहुँचने का प्रयास किया जाता था। अब जब देश की जनता ने इस राजनीतf को सिरे से नकार दिया है तो हड़तालें एक बिज़नस बन कर रह गई हैं।
दिल्ली में बैठे या प्रदेश मुख्यालय में बैठे हड़तालों के ठेकेदारों को भी यह पता है की किसी ज़माने में सत्ता तक पहुँचने का यह रास्ता बंद हो चूका है और इस रास्ते पर चल कर सत्ता तक नहीं पहुंचा जा सकता। अब अगर ठेकेदार समझते हैं कि यह रास्ता उनको सत्ता तक नहीं ले जा सकता तो फिर भी हड़तालें क्यों। इन ठेकेदारों को साल में दो चार देश व्यापी या प्रदेश व्यापी हड़तालें करनी पड़ती हैं ताकि इनका अस्तित्व बना रहे और जनता इनको भूल न जाए। बाकि उद्योगिक संस्थानों में यह हड़तालें सारा साल चलती रहती हैं। उद्योगों में हड़तालें करवा के उनको ब्लैकमेल किया जाता है और उनसे पैसे ऐंठे जाते हैं।
देश के किसी भी कोने में कोई भी छोटा या बड़ा व्यपार खुलता है जहाँ पर पांच सात से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया हो तो यह हड़तालों के ठेकेदार वहां सक्रिय हो जाते हैं। उधर व्यपारी अपना व्यपार स्थापित करने में जुटा होता है और उसका प्रयास रहता है की वह ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दे तो दूसरी तरफ यह हड़तालों के ठेकेदार व्यपार चलने से पहले ही वहां पर यूनियन बनाने में जुट जाते हैं। वर्कर्स की यूनियन बनाते हैं और उन्हें नई नई मांगे रखने के लिए उकसाते हैं।
कौन नहीं चाहता कि उसे जो मिल रहा है इससे उसे ज्यादा मिले। कभी यह बोलेंगे की बेतन कम है, कभी बोलेंगे की वर्कर्स को पक्का करो, और कभी बोलेंगे की इनको पेंशन मिलनी चाहिए बगैरह बगैरह। बेचारे वर्कर्स इन ठेकेदारों के झांसे में आ जाते हैं और यूनियन बना कर जैसा यह बोलते हैं वैसी मांगे करने लगते हैं। व्यपारी बेचारा अपना बिज़नस चलाने के लिए एक मांग मान लेगा तो यह ठेकेदार वर्कर्स यूनियन को दूसरी मांग रखने को बोलेंगे। इनका मुख्य मुद्दा होता है कि वहां पर हड़ताल करवाई जाए। वर्कर्स यूनियन को उकसाएंगे की हड़ताल होगी तभी उनकी सारी मांगो को माना जाएगा और हम आपके साथ हैं और आपको आपका यह हक़ दिलवा के ही रहेंगे।
वर्कर्स भी यह सोचने लगते हैं की जिसने उनको रोज़गार दिया है वह उनको धोखा दे रहा है और उनके हित्तों के सही रक्षक तो यह ठेकेदार ही हैं। वर्कर्स हड़ताल करंगे और यह ठेकेदार उन सब के हाथों में अपना झंडा थमा कर के हड़ताल का नेतृत्व करंगे। हड़ताल होगी, चलती रहेगी, व्यपार ठप हो जाएगा और व्यपारी को भारी नुक्सान होगा। यह ठेकेदार व्यपारी को धमकाएंगे की उसका काम नहीं चलने देंगे और इसे बंद करवा के ही रहेंगे। व्यपारी जिसने व्यपार स्थापित करने के लिए कई जगह से पैसा उठाया होगा वह परेशान हो कर इन ठेकेदारों से समझौता करने को तैयार हो जाएगा।
अब समझौता क्या होगा। समझौता यह होगा कि वर्कर्स यूनियन की जो मांगे हैं उनमे से किसी एक को कुछ हद तक मान लिया जाएगा या फिर यह आश्वासन दिया जाएगा कि उनको कुछ समय सीमा के अंदर मान लेंगे। उसके अलावा एक मोटी रकम यह हड़तालों के ठेकेदार व्यपारी से ऐंठेंगे और अपनी जेब में डालेंगे। हो सकता है इससे कुछ हिस्सा वर्कर्स यूनियन के एक दो लीडर्स को भी दे दें ताकि वह भी खुश रहें। फिर वर्कर्स को समझाया जायेगा की व्यापारी, कंपनी मैनेजमेंट या सरकार से उनका समझौता हो गया है और उनकी मांगे जल्दी ही मान ली जाएंगी। हड़ताल खत्म हो जाएगी और काम दोबारा शुरू हो जाएगा पर यह हमेशा के लिए नहीं होगा।
कुछ महीनो बाद फिरौती की अगली क़िस्त लेने के लिए यह ठेकेदार दोबारा हड़ताल करवाएंगे, फिर उसके बाद समझौता करेंगे और यह सिलसिला तब तक चलता रहेगा जब तक व्यापारी या तो व्यपार बंद न कर दे या फिर उसे समेट कर दूसरी जगह न चला जाए। बेचारे वर्कर्स हड़तालें करते रहेंगे और उनको कुछ मिलेगा नहीं उल्टा व्यपार बंद हो जाने से उनके रोज़गार का साधन भी खत्म हो जाएगा। आजकल के समय में कोई भी मंझा हुआ व्यपारी या बड़ी कंपनी व्यपार शुरू करती है तो अपनी इन्वेस्टमेंट और प्रोजेक्ट प्लान में एक अच्छी खासी रकम इन समस्याओं से निपटने के लिए अलग से रखती है। पर छोटे और नए व्यपारियों का क्या? आज जब देश में बेरोजगारी चरमसीमा पर है और सरकार युवाओं को प्रोत्सहित कर रही है कि वह नौकरी ढूंढने के बजाय अपना काम शुरू करें पर क्या इस माहौल में हर कोई अपना काम चला पाएगा।
सरकार बेशक स्टार्टअप इंडिया स्टैंडअप इंडिया जैसी नीतियों से और व्यपार करने के लिए आसानी से धन मुहैया करवा के युवाओं को प्रोत्साहित कर रही है पर यह व्यपार तब तक कामयाब और ज्यादा फल फूल नहीं सकते जब तक इस हड़ताल नाम की दीमक को हमारी व्यवस्था से पूरी तरह खत्म नहीं कर दिया जाए। जब तक यह हड़तालें कर के व्यपारियों को ब्लैकमेल करने का धन्दा इस देश में चलता रहेगा तब तक हमारे अपने उद्योगों का आगे बढ़ना तो मुश्किल है साथ में विदेशी निवेशक भी यहाँ निवेश करने से कतराते रहेंगे।
2 सितम्बर को देश व्यापी हड़ताल हुई और ट्रेड एसोसिएशन ने इस हड़ताल की वजह से हुए नुक्सान का अनुमान 18 हजार करोड़ रुपए लगाया है। हमारे देश का मनरेगा का कुल सालाना बजट 38 हजार 500 करोड़ है जिसमे करीब 19 करोड़ लोगों को रोजगार मिलता है। क्या हम एक दिन में 18 हजार करोड़ रुपए स्वाह कर सकते हैं? इस 18 हजार करोड़ रुपए से हम 8 करोड़ और लोगों को रोजगार दे सकते थे। इस हिसाब से देखा जाए तो एक दिन की हड़ताल ने करीब 8 करोड लोगों का रोजगार छीना है। यह हड़ताल वर्कर्स का बेतन बढ़ाने के लिए थी या उनके रोजगार के साधनों को और सीमित करने के लिए थी। इस सब पर हम सबको विचार करना पड़ेगा।
(लेखक पालमपुर से हैं और एक मल्टीनैशनल में कार्यरत हैं। उनसे vijayinderchauhan@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)