आई. एस. ठाकुर।। आचार संहिता लगने में अब शायद दो हफ्ते का ही समय बचा है लेकिन आम आदमी पार्टी को छोड़कर किसी भी पार्टी ने टिकटों की घोषणा नहीं की है। ऐसी खबरें आई थीं कि कांग्रेस ने अधिकतर टिकट फाइनल कर लिए हैं और लिस्ट भी जारी होने वाली है। लेकिन किसी तरह का असंतोष न भड़के, यह सोचते हुए लिस्ट जारी नहीं की गई। माना जा रहा है कि इस लिस्ट में कई ऐसे नाम गायब हो सकते हैं, जो अपना टिकट तय मानकर चल रहे हैं। कांग्रेस सर्वे के आधार पर कुछ नए चेहरों को टिकट देने की घोषणा तो पहले ही कर चुकी है।
जब कांग्रेस ने लिस्ट जारी नहीं की तो ऐसी खबरें आईं कि वरिष्ठ नेताओं के टिकट भी होल्ड पर हैं, भले ही वो जिताऊ क्यों न हों। इन में दो नाम सोशल मीडिया पर छाए रहे। एक- पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर और दूसरे हैं- पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा। बताया जा रहा है कि दोनों के नाम कथित तौर पर होल्ड पर जाने के लिए अलग कारण हैं। सुधीर शर्मा की वजह तो यह बताई गई कि पार्टी को उन्होंने दो मौकों पर चुनाव लड़ने से मना किया था- एक तो लोकसभा चुनाव के दौरान कांगड़ा से लड़ने के लिए और फिर धर्मशाला सीट पर हुए उपचुनाव से लड़ने के लिए। वहीं कौल सिंह ठाकुर को लेकर यह तर्क दिया गया कि वह G 23 नाम से जाने जाने वाले कांग्रेस नेताओं से उस समूह में शामिल थे, जिन्होंने खत लिखकर एक तरह से गांधी परिवार के कामकाज के तरीके पर सवाल उठाए थे। चूंंकि उस समूह के ज्यादातर नेता या तो हाशिये पर हैं या पार्टी छोड़ चुके हैं, वैसे में कौल सिंह ठाकुर को लेकर भी कयास लगाए जा रहे हैं कि उनका टिकट कट सकता है।
इस बीच सवाल उठने लगा कि कौल सिंह ठाकुर नहीं तो और कौन? यह चर्चा सोशल मीडिया पर होने लगी कि कौल सिंह को अगर किसी स्थिति में टिकट नहीं मिलता है तो इस बार बामन देव ठाकुर को मौका मिल सकता है। प्रदेश के अन्य हिस्सों में रह रहे लोग भले इस नाम को न जानते हों मगर बामन देव ठाकुर दरंग और जोगिंद्र नगर में एक जाना-पहचाना चेहरा हैं और वह लंबे समय से कांग्रेस में सक्रिय हैं। अभी भी वह दरंग ब्लॉक कांग्रेस के अध्यक्ष हैं। कौल सिंह ठाकुर के करीबी और उनके हनुमान कहे जाने वाले बामन देव ठाकुर पिछले कम से कम दो चुनावों से दरंग से टिकट के दावेदार माने जाते हैं। मगर कौल सिंह ठाकुर ने दो बार अपना आखिरी चुनाव बताया और फिर मैदान में आ गए और बामन देव ठाकुर के हाथ से मौका जाता रहा।
जमीन पर पहचान
वरिष्ठ और जिताऊ होने के कारण कौल सिंह के टिकट को कभी चुनौती नहीं मिल पाई और बामन देव ठाकुर ने भी कभी खुलकर टिकट की मांग नहीं की। संभवत: बामन देव भी यही चाहते होंगे कि जब कौल सिंह राजनीति से खुद हटेंगे, तभी वह आगे आएंगे। इसलिए भी क्योंकि वह कौल सिंह ठाकुर के हनुमान कहे जाते हैं और उनके राजनीतिक सलाहकार भी हैं। ग्राउंड पर कौल सिंह का चुनाव प्रबंधन देखने का काम हमेशा से बामन देव ठाकुर के हाथ रहा है। वह चौहार घाटी के जटिल भौगोलिक क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं। ठेकेदार हैं और साथ ही एक एनजीओ के माध्यम से भी सामाजिक कार्यों में जुड़े रहे हैं। कौल सिंह ठाकुर के बाद बामन देव के अलावा दरंग कांग्रेस में और कोई ऐसा नेता नहीं माना जाता जो जनता के बीच पहचाना जाता हो।
राजनीतिक समझ के मामले में भी वह बाकी प्रतिद्वंद्वियों पर भारी पड़ते हैं। अगर आज ओल्ड पेंशन हिमाचल के चुनावों में मुख्य मुद्दा बना है तो राजनीतिक विश्लेषक इसके लिए भी बामन देव ठाकुर को श्रेय देते हैं। यह कौल सिंह ठाकुर ही थे जिन्होंने उस समय से ओल्ड पेंशन की मांग को समर्थन देना शुरू किया था, जब कांग्रेस का और कोई नेता इस पर बात नहीं करता था। कौल सिंह लगातार इस मुद्दे पर अड़े रहे और आज ने सत्ता में आने के लिए इसी को अपना प्रमुख मुद्दा बनाया है। माना जा रहा है कि कौल सिंह ठाकुर को इस मुद्दे का महत्व समझाने और आगे उठाने के लिए मनाने वाले भी बामन देव ठाकुर ही थे, जो जानते थे कि कर्मचारियों के लिए यह विषय कितना संवेदनशील है।
आज स्थिति यह है कि कांग्रेस ने की 10 गारंटियों में पहली गारंटी ओल्ड पेंशन बहाली है और भारतीय जनता पार्टी को इसकी कोई काट नहीं मिल रही। और बीजेपी के आसपास हुई घेराबंदी इतनी मजबूत है कि न तो बीजेपी के नेता खुलकर इसका विरोध कर पा रहे हैं, न ही समर्थन। एक ओर कांग्रेस लगातार इस मुद्दे पर बनी हुई है, दूसरी ओर कर्मचारी भी सोशल मीडिया से लेकर जमीन तक इस मांग पर अड़े हुए हैं। खास बात यह है कि ओल्ड पेंशन की मांग को इतना व्यापक बनाने और कर्मचारियों को लामबंद करके विधानसभा के बाहर पहुंचाने में जिन प्रदीप ठाकुर का महत्वपूर्ण योगदान है, वह बामन देव ठाकुर के बेटे हैं।
‘वोट फॉर ओपीएस’ अभियान
एनपीएस कर्मचारी महासंघ के अध्यक्ष प्रदीप ठाकुर लंबे समय से ओपीएस मांग रहे कर्मचारियों का शांतिपूर्वक ढंग से सफल नेतृत्व कर रहे हैं। कहा जा सकता है कि जुझारूपन, नेतृत्व क्षमता और धैर्य – ये सब इन्हें विरासत में मिले हैं। एक तरह से यह भी कहा जा सकता है कि आज अगर ओपीएस मुख्य चुनावी मुद्दा बना है तो इसमें पिता-पुत्र की जोड़ी का भी अहम योगदान है। अब तो प्रदीप ठाकुर के नेतृत्व में ओल्ड पेंशन के लिए संघर्षरत कर्मचारियों ने ‘वोट फॉर ओपीएस’ का अभियान भी शुरू कर दिया है। ऐसे में अगर ओपीएस की बहाली होती है तो इसका श्रेय कर्मचारियों की एकजुटता के साथ-साथ उनके नेता प्रदीप ठाकुर को तो मिलेगा ही, कौल सिंह ठाकुर और उनके जरिये इसे बड़ा मंच देने वाले बामन देव ठाकुर को भी जाएगा।
बशर्ते…
बहरहाल, यह तो स्पष्ट है अगर कांग्रेस सत्ता में वापसी के लिए गंभीर है तो वह नहीं चाहेगी कि दरंग, धर्मशाला या अन्य किसी सीट पर चुनाव लड़ने के इच्छुक अपने नेताओं के टिकट काटकर किसी और को दें। क्योंकि ऐसी स्थिति में उन नेताओं की नाराजगी उसे महंगी पड़ सकती है। ऐसे में ज्यादा संभावना इसी बात की है कि दरंग में इस बार कौल सिंह ठाकुर को ही टिकट मिलेगा। ऐसी स्थिति में बामन देव को पांच साल और इंतजार करना पड़ सकता है। बशर्ते, अगली बार भी कौल सिंह अपना आखिरी चुनाव बताकर फिर मैदान में न उतर आएं।
(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश के विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
DISCALIMER: ये लेखक के निजी विचार हैं।