कुल्लू।। कुल्लू का एक पुरातन गांव जो पूरी दुनिया में मशहूर है; कुछ लोगों के बीच यहां की खूबसूरती के लिए, कुछ के लिए यहां की संस्कृति और रीति-रिवाजों के लिए तो कुछ के लिए तथाकथित ‘मलाणा क्रीम’ के लिए। चरस के कारोबार के लिए मलाणा की आलोचना भी होती है तो कुछ कहते हैं कि यहां के लोगों के पास और कोई विकल्प ही नहीं है। अगर वे चरस का कारोबार नहीं करेंगे तो उनके पास और रास्ता क्या है? लेकिन डिपेल्पमेंट थिंकर्स यानी विकास संबंधित सिद्धांतों का अध्ययन करने वाले समाजशास्त्रियों का कहना है कि जब तक यह गांव शेष हिमाचल के साथ सड़क मार्ग से नहीं जुड़ेगा, तब तक यहां विकास होना असंभव है और लोग भी पैसा कमाने के लिए पहले वाले तौर-तरीकों को आजमाते रहेंगे।
हैरानी की बात तो है ही कि इतना प्रसिद्ध होने के बावजूद आज तक यह गांव सड़क मार्ग से नहीं जुड़ पाया है। इसे सड़क से जोड़ने का काम जारी है और शुक्रवार को मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि जल्द से जल्द सड़क बनाई जाए और साथ ही एक शॉर्ट कट जीप योग्य मार्ग भी बनाया जाए ताकि बीमार लोगों को अस्पताल पहुंचाने में देरी न हो।
दरअसल, यहां के लोग सड़क का विरोध करते हैं। वे कहते हैं कि इससे उनकी संस्कृति और धार्मिक परंपराओं को आघात पहुंचेगा। लेकिन कुछ लोगों का यह मानना है कि चरस के कारोबार से जुड़े लोग ही सड़क नहीं पहुंचने देना चाहते ताकि पुलिस व प्रशासन को गांव का ईज़ी ऐक्सेस न मिल सके। अब सच्चाई क्या है, इसके दो पहलू हो सकते हैं। लेकिन यह तो तय है कि यहां के लोग सड़क मार्ग का विरोध करते हैं और इसका ही खामियाजा है कि आग आदि लगने की घटनाओं पर फायर ब्रिगेड तक यहां नहीं पहुंच सकती।
हाल ही में हुए अग्निकांड में यहां दर्जनों मकान जल गए और दर्जनों परिवार बेघर हो गए। उन्हीं को सांत्वना देने और राहत के लिए योजनाओं का एलान करने मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी पैदल यात्रा करके गांव पहुंचे। उन्होंने राहत राशि देने का एलान तो किया ही, स्थानीय लोगों से भी अपील की कि वे सड़क बनाने के काम में सहयोग करें। ऐसी ही अपील साल 2008 में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने भी की थी। उस समय भी बड़ा अग्निकांड हुआ था। जनवरी का महीना था। अहम मंदिरों समेत 120 मकान जल गए थे। 150 परिवारों के 650 लोगों के सिर से छत छिन गई थी। नए साल के पहले हफ्ते में प्रचण्ड ठंड और बर्फबारी के बीच लोगों ने आग बुझाने के लिए बर्फ तक को पिघलाने की कोशिश की थी।
राहत कार्य का जायजा लेने मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल इस गांव की ओर निकल पड़े मगर भारी बर्फबारी ने उनका रास्ता रोक लिया। ताजा बर्फबारी के बीच गांव के लिए पैदल चढ़ाई करना मुश्किल था और उन्हें गांव के केंद्र से पांच किलोमीटर पहले से ही लौटना पड़ा था। उस समय मुख्यमंत्री ने गांव के लिए तीन करोड़ रुपये की राहत का एलान किया था जिसमें से 1 करोड़ 82 लाख रुपये इमारती लकड़ी के लिए रखे गए थे जो लोगों को घर बनाने के लिए दी जानी थी।
बीच रास्ते से लौटे मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कुल्लू के डीसी को उसी समय 85 लाख रुपये का चेक सौंपा था ताकि हर प्रभावित परिवार को 65 हजार रुपये बतौर राहत दिए जा सकें। उस समय उनके साथ विधायक गोविंद ठाकुर और खीमी राम भी मौजूद थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने मलाना वासियों से अपील की थी कि वे गांव के लिए बन रहे लिंक रोड का विरोध न करें और इसमें सहयोग करें।
सोचिए, यह 2008 की बात है। अगर गांव वालों ने उनकी बात मान ली होती तो अब तक सड़क भी बन गई होती और आग लगने की ऐसी अप्रिय स्थिति में फायर ब्रिगेड पहुंचने से इतना नुकसान न हुआ होता। मगर आज 13 साल बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। गांव के बीच पहुंचने वाले पहले मुख्यमंत्री बनने वाले जयराम ठाकुर ने भी आज लोगों से यही कहा कि वे सड़क मार्ग बनाने में सहयोग करें। सड़क बनेगी तो इससे स्थानीय लोगों को ही फायदा होगा। बीमार लोगों को समय पर इलाज मिलेगा, पर्यटन को नए पंख लगेंगे और गांव की आर्थिकी और बेहतर होगी।