मंदिरों में मत्था टेकने भी सरकारी हेलिकॉप्टर से जाते थे वीरभद्र

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शिमला।। हिमाचल प्रदेश सरकार की ओर से किए गए नए करार के तहत अब अधिक सीटों वाला हेलिकॉप्टर आ रहा है जिसका किराया पांच लाख दस हजार रुपये प्रति घंटा है। यानी एक घंटे में इतना खर्च जितना एक परिवार के कई सदस्य एक साल में भी नहीं कमा पाते। जब प्रदेश की आर्थिक हालत खराब हो, हर काम कर्ज पर हो रहा हो, 60 हजार करोड़ रुपये का कर्ज हो गया हो, कोरोना काल में हालात इतने खराब हो गए हों कि सरकार को कर्मचारियों और पेंशनरों को देने वाले पैसों से कुछ हिस्सा काटना पड़ रहा हो, उसी दौरान महंगे हेलिकॉप्टर के आने की खबर से जनता में नाराजगी होना लाजिमी है।

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विपक्ष भी इस मामले पर सरकार को घेर रहा है कि यह फिजूलखर्ची है। हालांकि सरकार का कहना है कि सीटें ज्यादा हैं, हेलिकॉप्टर बड़ा है मगर दरें वही हैं, पुरानी वाली। साथ ही, यह भी स्पष्ट किया गया कि ट्राइबल इलाके के लोगों के रेस्क्यू आदि के लिए भी यह हेलिकॉप्टर मददगार होगा और ऐसे ऑपरेशनों पर होने वाले खर्च का आधा हिस्सा केंद्र सरकार चुकाएगी। यह बात सही है, लेकिन बाकी समय इस हेलिकॉप्टर को सीएम इस्तेमाल करेंगे। लेकिन क्या इस हेलिकॉप्टर का सही इस्तेमाल होगा?

गजब का दुरुपयोग
यह देखा गया है कि राजनीतिक कार्यक्रमों, जिनका सरकार और जनता के हित से कोई संबंध नहीं, उनके लिए भी सभी सीएम सरकारी हेलिकॉप्टर इस्तेमाल करते रहे हैं। वीरभद्र सिंह के ऊपर तो उनके पूर्व सहयोगी मेजर विजय सिंह मनकोटिया ने हेलिकॉप्टर पर 111 करोड़ खर्च कर देने का आरोप लगा दिया था।

वैसे भी यह बात छिपी नहीं है कि जब भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे वीरभद्र सिंह को केंद्रीय जांच एजेंसियों के सामने पेश होने के लिए दिल्ली जाना पड़ता था, तब भी वह सरकारी हेलिकॉप्टर इस्तेमाल करते थे। हालांकि नैतिकता कहती है कि उन्हें ऐसा करने का अधिकार बिल्कुल नहीं था और अगर उन्हें जाना ही था उन यात्राओं का खर्च अपने पैसे से चुकाते। लेकिन उनकी ऐसी प्रवृति नहीं रही है। अपना पैसा खर्च तो वह तब भी खर्च कर सकते थे जब डेढ़ वर्ष पहले पीडीआई में इलाज के बाद उन्हें हिमाचल आना था। मगर तब अपना हेलिकॉप्टर खर्च करने के बजाय वह जयराम ठाकुर द्वारा भेजे सरकारी हेलिकॉप्टर पर शिमला आए थे।

जब वीरभद्र सिंह मुख्यमंत्री थे, तब वह निजी यात्राएं भी सरकारी चॉपर पर करते थे। यहां तक मंदिरों में जाने के लिए भी। और साथ में परिजन भी होते थे। जैसे कि अप्रैल 2017 में वह अचानक शिमला से पत्नी प्रतिभा सिंह और बेटे विक्रमादित्य सिंह के साथ हेलिकॉप्टर में उड़े और रामपुर बुशहर पहुंच गए। क्यों? क्योंकि उन्हें अपने मंदिर में पूजा करनी थी। डेढ़ घंटे पूजा करने के बाद वह वापस चले गए। इस यात्रा पर भी लाखों खर्च हो गए और वह पैसा जनता का था।

CM Virbhadra Singh Paid Obeisance At Bhimakali Temple In Sarahan

उसी साल जून में वीरभद्र सिंह सरकारी हेलिकॉप्टर पर उत्तराखंड के बद्रीनाथ धाम पहुंचे। पत्नी प्रतिभा सिंह उनके साथ थीं। यह यात्रा निजी यात्रा थी और इसके लिए हेलिकॉप्टर का किराया निजी जेब से भरा जाना चाहिए था। मगर वह तो हुआ नहीं, तत्कालीन सीएम ने एक और एलान कर दिया। उन्होंने कहा कि हिमाचल सरकार मंदिर समिति को एक क्विंटल चंदन की लकड़ी देगी। यह एलान अपनी ओर से करते तो भी बात थी, हिमाचल सरकार क्यों चंदन की लकड़ी देगी?

himachal chief minister virbhadra singh in badrinath dham

ये तो कुछ घटनाएं हैं, वीरभद्र सिंह और प्रेम कुमार धूमल के कार्यकाल में भी इस तरह से सरकारी हेलिकॉप्टर के उन कामों में इस्तेमाल के कई उदाहरण मिल जाएंगे, जो का या तो निजी प्रकृति के थे या फिर इतने महत्वपूर्ण नहीं थे कि उनके लिए सरकारी खर्च पर हेलिकॉप्टर इस्तेमाल किया जाता।

अब वीरभद्र सिंह के पुत्र और शिमला ग्रामीण के विधायक विक्रमादित्य ने सोशल मीडिया पर जयराम सरकार के कार्यकाल में आ रहे नए चॉपर को लेकर बचाव किया है। उनका कहना है कि यह बहुत जरूरी है और पहले भी हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल जनजातीय इलाकों के लोगों की मदद में हुआ है। लेकिन सवाल ये है कि ऐसे मौके कितनी बार आए? आम लोगों के लिए तो कभी कभार ही यह चॉपर इस्तेमाल हुआ मगर मुख्य्मंत्रियों की गैरजरूरी यात्राओं पर ज्यादा इस्तेमाल हुआ।

अपनी जिम्मेदारी क्यों नहीं समझते नेता?
कई राज्यों के मुखिया हेलिकॉप्टर सेवाएं लेते हैं। दूर-दराज के इलाकों में पहुंचने के लिए कम समय लगे और सड़क मार्ग पर जनता को असुविधा न हो, इसलिए हवाई यात्राएं की जाती हैं। साथ ही, सड़क यात्राओं पर प्रोटोकॉल के तहत जो अधिकारियों आदि को मूवमेंट करना पड़ता है, उसमें भी भारी भरकम खर्च हो जाता है। तो एक तरह से इन परिस्थितियों में मुख्यमंत्रियों का हवाई यात्रा करना व्यावहारिक नजर आता है मगर अहम सवाल ये है कि क्या उनकी सभी यात्राएं अपरिहार्य होती हैं? यानी इतनी महत्वपूर्ण होती हैं कि वहां पर हेलिकॉप्टर से ही जाना पड़े?

इस सवाल का जवाब है- नहीं। होना यह चाहिए कि सीएम तभी हेलिकॉप्टर इस्तेमाल करे, जब जरूरी हो। उदाहरण के लिए दिल्ली में केंद्र के साथ किसी बैठक में जाना हो, तब इस्तेमाल किया जा सकता है। किसी जगह का दौरा इमर्जेंसी में करना पड़े, तब इस्तेमाल कर लिया। वरना बाकी समय आप प्रोग्राम ऐसे बनाइए कि आप पहले से ही वहां सड़क मार्ग पर पहुंचें।

वैसे भी सीएम को गैर जरूरी उद्घाटनों, प्रदर्शनियों में जाने के लिए हेलिकॉप्टर की क्या जरूरत? उद्घाटन और शिलान्यास प्रोग्राम भी आप जिला मुख्यालयों पर कीजिए और एक-साथ लगते जिलों में एक-साथ कार्यक्रम रखिए। हमीरपुर से बिलासपुर जाने में भी अगर हेलिकॉप्टर इस्तेमाल करना पड़े तो यह अजीब बात है क्योंकि आपके हेलिकॉप्टर के ऊपर खर्च हो रहा पैसा जनता का है और आपकी जिम्मेदारी बनती है कि उसे बचाएं। मगर ऐसा किया नहीं जाता। जब प्रदेश लगातार कर्ज में डूब रहा हो और आपकी आमदनी इतनी न हो कि आप उस कर्ज को चुका पाएं तो फिलूजखर्ची को घटाने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन अफसोस, किसी में दूरदृष्टि नहीं कि इस बारे में सोचे। इसका नुकसान आने वाले समय में हर हिमाचली को भुगतना पड़ सकता है।