पहले क्वॉरन्टीन सेंटर में तड़पता रहा युवक, फिर IGMC में जमीन पर छोड़ दी लाश

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शिमला।। कैमरे के सामने मास्क, सैनिटाइजर, फेसशील्ड बांटने और पत्रकारों के सामने कोरोना वॉरियर्स को सम्मानित करने जैसे स्टंट करने वाले नेता अब तक हिमाचल प्रदेश को कोरोना संकट से लड़ने के लिए तैयार नहीं कर पाए हैं। अब तक लिए गए उटपटांग फैसलों और कई बार यूटर्न लिए जाने के बाद यह स्पष्ट होता दिख रहा है कि प्रदेश राम भरोसे ही है। आलम यह है कि सरकार इलाज करना और आपात हालात से निपटना तो दूर की बात है, अपने कर्मचारियों को ही कोरोना को लेकर जागरूक नहीं कर पाई।

कोरोना का डर कर्मचारियों और सरकारी अमले पर इतना हावी है कि मरीजों के साथ, उनके शवों के साथ और यहां तक कि क्वॉरन्टीन किए गए लोगों के साथ भी भेदभाव हो रहा है। इसी अज्ञानता या यूँ कहें कि जागरूकता में कमी के कारण एक युवक की मौत हो गई और जिम्मेदारी लेने वाला कोई नहीं। जो युवक मरा है, वह कोरोना पॉज़िटिव नहीं था। यानी कोरोना से उसकी मौत नहीं हुई लेकिन सिस्टम की लापरवाही ने उसे लील लिया।

हुआ ये कि क्वॉरन्टीन सेंटर में एक युवक को चोट लग गई तो उसके साथ रखे गए शख़्स ने वहाँ तैनात कर्मचारियों से गुहार लगाई। इस शख़्स ने बताया कि पहले तो कोई उसकी बात सुनने को तैयार नहीं हुआ। फिर एक डॉक्टर आया तो दूर से ही ‘मिर्गी का दौरा पड़ा है’ बोलकर चला गया। फिर हालत गंभीर हुई और ऐंबुलेंस बुलाई तो कोई उठाकर ऐंबुलेंस तक ले जाने को तैयार नहीं हुआ। इस दौरान वीडियो बनाने की कोशिश की गई तो कैमरा बंद करने के लिए कहा गया।

इतना ही नहीं, इस घायल युवक को आईजीएमसी रेफर किया गया और कथित तौर पर उसकी रास्ते में मौत हो गई। ऐंबुलेंस वालों ने शव को अस्पताल में ज़मीन पर उतारा और वहाँ से चले गए। कई घंटों तक शव वहीं पड़ा रहा, किसी ने छुआ तक नहीं। अब आईजीएमसी का कहना है कि उन्हें सूचना दिए बग़ैर इसे रेफर किया गया था। आईजीएमसी ने तो यहाँ तक कह दिया कि इस व्यक्ति की मौत हो चुकी थी और शव को ही रेफर कर दिया गया था।

मरने वाला यह व्यक्ति कोई भी हो सकता था। ये आप हो सकते थे, आपका परिजन हो सकता था। आगे भी ऐसा किसी के साथ हो सकता है। सोचिए, इस शख़्स को अगर समय पर मदद मुहैया करवाई जाती तो पहले तो उसकी जान बचाई जा सकती थी। और अगर जान चली भी गई थी तो शव को यूँ ही खुले में छोड़ना कहां तक सही है? और अब होगी लीपापोती। हो सकता है इस ख़बर को कवर करने वाले मीडिया संस्थानों और मृतक के साथ रखे गए युवक के ख़िलाफ़ सरकार कार्रवाई कर दे।

जानें, क्या है मामला

कई घंटों तक ज़मीन पर पड़ा रहा शव
सोमवार सुबह लोग आईजीएमसी परिसर में एक बॉडी बैग में पड़ा शव देख डर गए। यह शव पाँच घंटों से भी ज़्यादा समय से यहाँ पर रखा हुआ था और बग़ल में पड़ी थी सलाइन की बॉटल। बाद में पता चला कि यह शव बिलासपुर से आईजीएमसी रेफर किए गए एक युवक का था जिसे क्वॉरन्टीन सेंटर में रखा गया था और घायल हो गया था। रास्ते में मौत हो जाने पर एंबुलेंस ने शव को परिसर में उतारा था और वापस चली गई थी। फिर सुबह नौ बजे के क़रीब सफ़ाई कर्मचारियों ने इसे शवगृह में रखा।

यह उसी शिमला में हुआ, जहां पर सरकाघाट के कोरोना पॉज़िटिव युवक के शव को जलाने के लिए कोई तैयार नहीं था और महिला एसडीएम को रात को श्मशान घाट में ंरुकना पड़ा था। ऐसी ख़बरें भी थीं शव को आनन-फ़ानन में डीज़ल से जलाया गया। एक हफ़्ता भी नहीं हुआ था कि फिर उसी शहर में, एक और शव का अपमान हो गया।

लेकिन इससे पहले इस युवक के साथ जो हुआ, वह जानकर आप दुख भी होगा और ग़ुस्सा भी आएगा। अगर समय पर प्रशासन हरकत में आता और कर्मचारियों को ढंग से जागरूक किया होता तो इस युवक की जान बचाई जा सकती थी। मरने वाले शख़्स का नाम था हंसराज। उम्र थी- महज़ 26 साल।

क्वॉरनटीन सेंटर में क्या हुआ था
बिलासपुर के बल्हचुराणी के रहने वाले हंसराज सात मई को मध्य प्रदेश के कोरोना रेड ज़ोन से स्वारघाट पहुँचे थे। उन्हें यहाँ पर फ़ॉरेस्ट विभाग के रेस्ट हाउस में इंस्टीट्यूशनल क्वॉरन्टीन किया गया था। एक ऑडियो वायरल हुआ है जो हंसराज के साथ क्वॉरन्टीन किए गए युवक और पत्रकार कमलेश रतन भारद्वाज के बीच बातचीत का है। इसमें युवक बताता है कि कैसे रविवार दिन में एक बजे बाथरूम में गिरने से हंसराज को चोट लगी और वो मदद के लिए पुकारते रहे मगर कोई नहीं आया जबकि अस्पताल बग़ल में ही था।

हेड इंजरी के कारण हंसराज को उल्टी भी हुई थी। एक डॉक्टर कुछ देर बाद आया भी तो हाथ लगाए बिना दूर से कहा- इन्हें मिर्गी का दौरा पड़ गया। फिर डॉक्टर चला गया। (पत्रकार कमलेश की मृतक के परिजनों से बात हुई तो उन्होंने बताया कि हंसराज को कभी मिर्गी का दौरा नहीं पड़ा।)

युवक को बाद में पता चला कि हंसराज के सिर से खून निकल रहा था। युवक ने फिर चिल्लाकर नीचे खड़े पुलिसकर्मियों को बताया कि इसके सिर पर चोट आई है। युवक ने बताया कि उनसे कहा गया- आप उठाकर ले आओ, तब हम इसे ले जाएँगे। युवक का दावा है कि फिर जैसे तैसे घसीटते हुए इसे ये लोग ले गए।

सोशल मीडिया पर वायरल ऑडियो सुनें, आपको पता चल जाएगा कि क्या हाल हैं सेंटरों के। सात मिनट का यह ऑडियो रूह कंपा देने वाला है। आख़िर में इस शख़्स का गला रुंध जाता है। उसे मलाल है कि अगर सही समय पर अस्पताल ले जाया गया होता तो हंसराज की जान बच सकती थी।

युवक को चोट लगी थी दिन में एक डेढ़ बजे और शाम साढ़े पाँच से छह बजे उसे ऐंबुलेंस से ले जाया गया। बाद में बिलासपुर अस्पताल से उसे शिमला रेफर कर दिया गया।

शव को ही रेफर करने का आरोप
बिलासपुर सीएमओ डॉक्टर परविंदर ने मीडिया को बताया है कि युवक को मिर्गी का दौरा पड़ने के कारण सिर पर चोट लगी थी। और उसे जिला अस्पताल बिलासपुर से आईजीएमसी रेफर किया गया था। लेकिन ईटीवी भारत की एक ख़बर के मुताबिक़, आईजीएमसी के एमएस डॉ. जनक राज ने दावा किया है कि बिलासपुर से जीवित व्यक्ति को नहीं, शव को रेफर किया गया था।

डॉ. जनक राज के हवाले से लिखा गया है, “जब भी कोई संदिग्ध मरीज किसी क्षेत्र से भी रेफर किया जाता है तो सूचना दी जाती है मगर बिलासपुर से कोई सूचना नहीं दी गई और न ही एंबुलेंस चालक ने सीएमओ को इस बारे में बताया।” डॉक्टर जनक राज ने कहा कि एंबुलेंस चालक बिना बताए शव को उतारकर चला गया था। उन्होंने यह भी कहा कि पहले कर्मचारी शव को उठाने में हिचक रहे थे मगर बाद में इसे शवगृह में रखा था।

यह भी बताया गया कि शव से सैंपल लेकर चेक किया गया तो कोरोना के लिए रिपोर्ट नेगेटिव आई है। अगर यही टेस्ट जीते जी हो जाता तो न तो हंसराज उस मनहूस क्वॉरन्टीन सेंटर में रखा जाता, न नकारा सिस्टम के कारण उसकी जान जाती। आज हंसराज इस दुनिया में नहीं है। मगर उसकी मौत स्वाभाविक नहीं। घरवाले दुआ कर रहे होंगे कि काश, वो न ही आता बाहर से। ऐसा भी क्या लौटना हुआ कि कोई कभी अपने घर न आ सके।

खुली क्वॉरन्टीन सेंटरों की पोल

सरकार का कहना है कि बाहर से आने वाले लोगों को इंस्टीट्यूशनल क्वॉरन्टीन किया जाएगा यानी घर भेजने के बजाय किसी जगह पर सका जाएगा। ठीक वैसे, जैसे बिलासपुर के हंसराज को रखा गया था। मगर यह घटना दिखाती है कि क्वॉरन्टीन सेंटरों के हाल क्या हैं। हिमाचल प्रदेश में मेडिकल स्टाफ़ भी कितना डरा है। या तो उसके पास उपकरण नहीं हैं उन्हें अपने ज्ञान पर भरोसा नहीं है। यही कारण है कि हंसराज को डॉक्टर ने ढंग से चेक करने की ज़हमत नहीं उठाई। अगर तभी चेक कर लिया जाता तो शायद समय पर इलाज शुरू हो पाता।

साथ ही, क्वॉरन्टीन सेंटर के कर्मचारियों और पुलिसकर्मियों का रवैया भी सही नहीं था। उन्हें तुरंत हरकत में आना चाहिए था। वे टालमटोल करते गए और हंसराज की हालत गंभीर होती गई। अगर वे अपना काम सही से कर रहे होते तो वे हंसराज के साथ रह रहे शख़्स को वीडियो बनाने से न रोकते।

फिर बिलासपुर से बाद में हंसराज को शिमला रेफर किया गया। मान लेते हैं कि रास्ते में ही हंसराज की मौत हुई, तो फिर अस्पताल को बताए बिना यूँ शव को ज़मीन पर छोड़कर चले जाना कितना उचित है? या तो आईजीएमसी में किसी ने शव को रिसीवर नहीं किया और अब स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी एक-दूसरे को दोष दे रहे हैं।

अभी भी समय है, कर्मचारियों को फिर से जागरूक करें और लापरवाही करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों पर सख़्त कार्रवाई करके उदाहरण पेश करें। वरना यह घटना बता रही है कि आने वाले दौर में अगर हालात ख़राब हुए और कोरोना के मरीज़ थोड़े से भी बढ़े, तो क्या हाल होने वाले हैं।

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