युवाओं के लिए प्रेरणा है शांता कुमार का व्यक्तित्व

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  • विजय इंद्र चौहान (vijayinderchauhan@gmail.com)

मैं आठवीं कक्षा में था जब से मैंने शांता कुमार को जानना शुरू किया। यह 1992 की बात है जब शांता कुमार दूसरी बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। मुझे यह ठीक से याद नहीं कि मैं क्यों शांता कुमार के व्यक्तित्व की ओर आकर्षित हुआ, मगर शायद उस समय की उनकी सरकार की नीतियां सारे देश मे चर्चा में थीं। इस बात से मैं उनकी ओर आकर्षित हुआ। उनकी दो मुख्य बातें सबसे ज्यादा पसंद थीं- 1. व्यवस्था सुधारने के लिए कड़ा निर्णय लेना, चाहे उसका राजनीतिक परिणाम कुछ भी हो। 2.  भ्रस्टाचार के प्रति कड़ा रुख।

हमारे घर मे उन दिनों अंग्रेज़ी अख़बार द ट्रिब्यून आया करता था। अंग्रेज़ी अख़बार में स्थानीय राजनीतिक खबरें ज्यादा न होने के कारण मैं पड़ोस की दुकान में जा कर हिंदी का अख़बार पढ़ा करता था। अख़बार खंगालने का एक ही मतलब होता था कि शांता कुमार कि कोई खबर मिले और उसे बड़े ध्यान से पढ़ा जाए। समय के साथ मुझे पता चला कि हिमाचल के लोगों की कई मूलभूत समस्याओं का समाधान करने में शांता कुमार का बहुत महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पिछली बार 1977 मे जब शांता कुमार मुख्यमंत्री बने थे तो उन्होंने घर-घर तक पीने का पानी पहुंचाकर महिलाओं की सबसे बड़ी समस्या का समाधान करवाया था। इससे पहले हिमाचल में पीने के पानी की ब्यवस्था का कोई भी समर्पित सरकारी विभाग नहीं था और महिलाओं को दूर से पानी उठाकर लाना पड़ता था।
हिमाचल में पहला कृषि विश्वविद्यालय स्थापित करने का श्रेय भी शांता कुमार को जाता है। यह विश्वविद्यालय पालमपुर में है और पालमपुर के विकास में इस विश्वविद्यालय का महत्पूर्ण योगदान है। मैं पालमपुर का निवासी हूं और समझता हूं कि बिना कृषि विश्वविद्यालय के पालमपुर आज कुछ नहीं होता।
एक पुरानी तस्वीर(साभार: PIB)
दूसरी बार के मुख्यमंत्री कार्यकाल में भी उन्होंने कई योजनाएं शुरू कीं जिनमें से कई पूरी हुई और कुछ सरकार बदलने के कारण लटक गई जो आज 23 साल बाद भी पूरी नहीं हो पाईं हैं या यूं कहें कि शुरू भी नहीं हो पाईं। पालमपुर संबंधित योजनाएं जो शांता कुमार सरकार के जाने से अधर मे लटक गईं, उनमें मुख्यतः हैं- पालमपुर में AIIMS के दर्जे का अस्पताल, पालमपुर बस स्टैंड और रोप-वे इत्यादि। शांता कुमार की जिन योजनाओं को सराहा गया था, उनमें से एक थी “वन लगाओ और रोजी कमाओ”। इस योजना से जहां खाली पड़ी जमीन पर पौधे लगाकर पर्यावरण संरक्षण का काम हुआ, वहीं स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला। आज हिमाचल में जितने हरे-भरे जंगल दिखाई देते हैं, उसका श्रेय कुछ हद तक उनकी इस योजना को भी जाता है।
प्रदेश कि अर्थव्यस्था के उदारीकरण में भी शांता कुमार का योगदान उल्लेखनीय है। प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में निजी निवेश का रास्ता शांता कुमार ने ही खोला था। यातायात और बिजली उत्पादन मे निजी निवेश से न सिर्फ सरकार के राजस्व में वृद्धि हुई बल्कि रोजगार के अवसर भी पैदा हुए और लोगों को अतिरिक्त सुविधाएं भी मिलीं।
दूसरी बार के मुख्यमंत्री कार्यकाल में शांता कुमार अपनी कुछ नीतियों के कारण देश और विदेश में चर्चा में रहे। जब प्रदेश में विद्युत विभाग के कर्मचारी हड़ताल समाप्त नहीं कर रहे थे तो शांता कुमार ने “नो वर्क नो पे” नियम लागू कर दिया। जिसका मतलब था कि अगर आप काम नहीं करते हो तो आपको वेतन भी नहीं मिलेगा। हिमाचल में इस निर्णय का जितना विरोध हो सकता था हुआ, जबकि केंद्र सरकार और उच्चतम न्यायालय ने इस योजना की सराहना की। कुछ प्रदेशों और विदेशों ने इस योजना को अपने यहां लागू भी किया। मगर हिमाचल में चूंकि लगभग हर घर में एक सरकारी कर्मचारी था तो आने वाले चुनावों में शांता कुमार और सहयोगियों को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। शांता कुमार मुख्यमंत्री होते हुए भी अपनी विधायक की सीट नहीं बचा पाए। लोग विकास भी भूल गए, शांता कुमार की दूरदर्शी नीतियों को भी भूल गए और शायद याद रहा तो “नो वर्क नो पे” और दूसरा शांता कुमार ने मेरा काम नहीं किया।
यह विडंबना ही है कि जिस व्यक्ति की नीतियों को देश और विदेशों में सराहा गया, उसे अपने घर के लोग ही नहीं समझ पाए। शायद शांता कुमार की नीतियां समय से बहुत आगे की थीं। यही नीतियां दस साल बाद आतीं तो शायद लोगों को समझ में आ जातीं।
अटल बिहारी वाजपेयी की केंद्र सरकार में शांता कुमार कैबिनेट स्तर के मंत्री भी रहे और खाद्य आपूर्ति और ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालयों का कार्य देखा। केंद्रीय मंत्री रहते हुए भी शांता कुमार की कुछ योजनाएं जैसे अंतोदय अन्न योजना बहुत ही लोकप्रिय हुई। जहां हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहते हुए शांता कुमार ने प्रदेश वासिओं के पीने के पानी की समस्या का समाधान किया वहीं केंद्र में मंत्री रहते हुए सारे देश के गरीबों के लिए पेट भर भोजन का प्रावधान किया। तमाम अच्छे कामों और लोकप्रिय योजनाओं के वावजूद शांता कुमार को वाजपेयी मंत्रिमंडल से अपने आदर्शों के साथ समझौता न करने और अपनी बात जनता में कहने,  चाहे वह किसी को अच्छी लगे या बुरी, के लिए इस्तीफा देना पड़ा।
आजकल जहां लोग आगे बढ़ने के लिए कोई भी समझौता करने को तैयार हैं, शांता कुमार एक प्रेरणा हैं। शांता कुमार चाहते तो कुर्सी में बैठे रहने के लिए अपने आदर्शों के साथ समझौता कर सकते थे पर उन्होंने आगे बढ़ने के बजाय अपने आदर्शों पर बने रहने को बेहतर समझा। आज जब भी शांता कुमार का नाम आता है तो यह जरूर कहा जाता है कि शांता कुमार, जो अपनी ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। शांता कुमार आज जब अपने राजनीतिक जीवन पर नजर डालते होंगे तो उनको इस बात का अफ़सोस नहीं होता होगा कि वह कुर्सी पे इतना समय नहीं रहे जितना रह सकते थे। बल्कि उनको संतुष्टि का आभास और आनंद होता होगा कि 60 साल से ज्यादा के राजनीतिक जीवन में उनके ऊपर भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा और वह हमेशा अपने आदर्शों पर कायम रहे।
आज जब हर क्षेत्र में मूल्यों का पतन हो रहा है, शांता कुमार का जीवन युवाओं और खासकर राजनेताओं के लिए एक प्रेरणा है।

(लेखक एक मल्टिनैशनल कंपनी में कार्यरत हैं)