सिर्फ पंचायत चुनावों में ही क्यों दिखती है स्वयंभू समाजसेवकों की फ़ौज : आशीष नड्डा

  • आशीष नड्डा 
पंचायत चुनाव में प्रत्याशियों की अपील पढ़कर लगता है,  समाजसेवकों की एक नयी ब्रीड गावं गावं में पैदा हो गयी है।
समाज सेवा और गावं के लिए कुछ करने की बात चली तो मुझे अपने बचपन स्कूल समय का दौर याद आया। जब हमारे गावं के एक बुजुर्ग ( स्वर्गीय श्री जगदीश राम ) जिन्हे सब मनाली वाले चच्चा दादा आदि के नाम से जानते थे क्योंकि मनाली  उनका कार्य- क्षेत्र रहा वहां के मुख्या बाजार में जिनका घर बार है।
उन्होंने कुछ ऐसा किया जो मुझे आजतक याद है।  एक दिन वो गावं आये अपना  फावड़ा और खुदाई का सामान उठाया और गावं के एक  पैदल रास्ते को पक्का करने के लिए चल पड़े।
खड्ड ( नदी) से निकालकर पत्थर लाते और उन्हें रास्ते में लगाते दिसंबर की ठण्ड। दिन की खिली धूम और हम सब बच्चों को स्कूल की  7  दिन की छुट्टियां। चाचा को यह करते देख अगले दिन सारी बाल सेना ( हम सब बच्चे) उनके साथ हो लिए और  उनके  नेर्तित्व  करने लगे।  हम लोग खड्ड से अच्छे अच्छे छांट कर लाते कोई खुदाई करता कोई कुछ करता और वो हमारे लाए हुए पत्थरों को  तरीके से रास्ते में सेट करते।
लंच करने सब घर आते फिर दुबारा जाते। देखते ही देखते इस कार्य में पूरा गावं जुट गया और रविवार की छुट्टी के दिन कर्मचारी लोग भी  इस कार्य में जुट जाते।
किसी घर से सबके लिए स्वेच्छा से चाय आ जाती। हम बच्चों को भी छुट्टियों  में एक काम मिल गया। देखते ही देखते श्रम दान और उनकी जिमेवारी लेने के कारण रास्ता पक्का हो गया। इस तरह हम सब लोगों ने मिलकर गावं के कई रास्तों का निर्माण कर दिया।
गावं के महिलामण्डल के भवन जिसकी बरसों पहले नीवं पड़ी थी परन्तु कोई कार्य बजट और जिम्मेदारी लेने वाले के अभाव में नहीं हो पा रहा था।  उसके आसपास ईंटों का ढेर था,  नीवं पर झड़िया उग आई थी। जंगल बन गया था।   लोग उधर जाने से डरने लगे थे। एक दिन चाचा के नेर्तित्व  में बाल सेना ने बीड़ा उठाया घर से सामान लाकर सब झाड़ियों को काटकर , जगह को साफ़ किया ईंटों को करीने से सजाया। और कुछ सरकारी बजट एवं श्रमदान से महिला मंडल का निर्माण कर दिया जो आज गावं में तीन कमरों का दो मंजिला सामुदायिक भवन हैं।
15 वर्ष पहले तैयार किया गया महिला मंडल का भवन ( जिसका लेखक ने ज़िक्र किया है)
हमें ख़ुशी है उस दौर में हमारे लिए यह कार्य करना भी खेल कूद का हिस्सा थे। हैरानी है की जो पक्के रास्ते पंचायत ने बनवाए वो 3 वर्ष बाद उखड गए पर मनाली वाले चाचा के नेर्तित्व में हम लोगों के बनाये हुए रास्ते 15 साल बाद भी अडिग हैं।
आज समाज सेवकों को एक बाढ़ चुनाव में आई है,  जिनका मानना है जीत कर आने के बाद वो दुनिया बदल देंगे। परन्तु इतिहास गवाह है जीतने वाले से तो उम्मीद कम ही है खैर परन्तु हार के साथ बाकियों का समाजसेवा का भूत भी उत्तर जाता है।
समाज सेवा के लिए क्या पंचयात चुनाव जीत कर आना ही क्राइटेरिया है। इस से पहले चुनाव में लड़ने वाले लोगों की जीवन में क्या भूमिका रही इस क्षेत्र में वो भी देखना जरुरी है। विकास के नये आयाम स्थापित करने से लेकर। पंचायत को आदर्श बनाने के ढकोसलों से लेकर जनसेवा आदि इत्यादि कर देंगे टाइप शब्दों ने दिमाग खराब कर दिया है। ये शब्द  ऐसे लोगों द्वारा  भी प्रयोग किये जा रहे हैं जिन्होंने समाजसेवा के नाम पर कहीं ईंट तक नहीं उठायी हो। जो ग्राम पंचयात के मासिक कोरम में कभी नहीं पहुंचे हों। अब कहते हैं ये कर देंगे वो कर देंगे।
मनुवादी पीढ़ी से तो मुझे कोई आशा नहीं पर सोशल मीडिया पर विदेश नीति से लेकर , देश के हर घटनाक्रम पर एक्सपर्ट की तरह त्वरित टीपणी करने वाली युवा हिमाचली फ़ौज से मैं कम से कम यह आशा करता हूँ की उनका वोट जाती पाती क्षेत्रवाद भाई भतीजा वाद से हटकर होगा।  हालाँकि हिमाचल प्रदेश का पंचायत चुनाव इसी में काफी हद तक जकड़ा हुआ है।
आशीष नड्डा

लेखक आई आई टी दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं और प्रादेशिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं इनसे aashishnadda@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है। 
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