बेरोजगारी भत्ते की जगह निःशुल्क आयोजित हों प्रतियोगी परीक्षाएं

राजेश वर्मा।। “बेरोजगारी” एक ऐसा नाम जो माथे पर चिंता की लकीरें उकेर देता है। प्रत्येक व्यक्ति खुद से या फिर अपने परिवार से इस शब्द को दूर करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है। बेरोजगारी का अभिप्राय है– काम करने योग्य इच्छुक व्यक्ति को कोई काम न मिलना।

 

भारत में बेरोजगारी के अनेक रूप है, बेरोजगारी में एक वर्ग तो उन लोगों का है, जो अशिक्षित या अर्द्धशिक्षित हैं और रोजी-रोटी की तलाश में भटक रहे हैं, दूसरा वर्ग उन बेरोजगारों का है जो शिक्षित हैं, जिसके पास काम तो है, पर उस काम से उसे जो कुछ प्राप्त होता है, वह उसकी आजीविका के लिए पर्याप्त नहीं है। बेरोजगारी की इस समस्या से शहर और गाँव दोनों आक्रांत है।

 

खैर समय-2 पर सरकारें चाहे केंद्रीय हो या राज्य बेरोजगारी को कम करने के लिए सदैव प्रयासरत रहती है, कम करना इसलिए कहूंगा क्योंकि बेरोजगारी को पूरी तरह से खत्म करना किसी भी देश प्रदेश के लिए संभव नहीं। यह किसी न किसी रूप में किसी न किसी क्षेत्र में सदैव विद्यमान रहती है। इसी समस्या को कुछ हद तक कम करने के लिए अल्पकालिक उपाय में से एक है “बेरोजगारी भत्ता।”

देश के कई राज्यों में बेरोजगारों की फौज को राहत के तौर पर “बेरोजगारी भत्ता” नामक एक ऐसी वित्तीय सहायता प्रदान की जा रही है जिससे कुछ हद तक बेरोजगारों का दर्द कम हो सके। इसी बेरोजगारी भत्ते की चर्चा हमारे प्रदेश में भी समय-2 पर किसी न किसी वजह से होती रही है।

 

मैं व्यक्तिगत तौर पर इस बात की तरफ नहीं जाना चाहता कि प्रदेश में बेरोजगारों को राहत के तौर पर बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान किया जाए या न किया जाए लेकिन कुछेक पहलुओं पर जरूर प्रकाश डालना चाहूंगा जो शायद बेरोजगारी भत्ते को पहला और अंतिम विकल्प नहीं मानते। यह बात सर्वविदित है कि प्रदेश एक पहाड़ी राज्य है। यहां अन्य राज्यों की तुलना निजी क्षेत्र में व स्वरोजगार के संसाधन उस अनुपात में उपलब्ध नहीं जैसे होने चाहिए वजह साफ है प्रदेश की भौगोलिक परिस्थितियां।

यदि बेरोजगारी दर या आंकड़ों पर गौर किया जाए तो प्रदेश के श्रम एवं रोजगार कार्यकाल द्वारा जारी नवीनतम आँकड़ों के अनुसार अभी तक 8 लाख के लगभग बेरोजगार प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों मे पंजीकृत हैं। इनमें से लगभग 67 हजार के लगभग स्नातकोत्तर, 1 लाख के करीब स्नातक, 6 लाख के आस पास मैट्रिक से लेकर अंडरग्रेजुएट तक, 60 हजार के करीब अंडर मैट्रिक , बेरोजगार प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में दर्ज हैं।

 

उपरोक्त आंकड़ों से एक बात साफ है कि सबसे ज्यादा आंकड़ा सेकेंडरी शिक्षा के बाद वाले बेरोजगारों का है। बेशक यह आंकड़ा 8 लाख से उपर है परंतु हकीकत में मेरा मानना यह है कि वास्तव बेरोजगारी इसका 50% है। आज प्रत्येक युवा जब तक सरकारी नौकरी हासिल नहीं कर लेता तब तक वह अपना नाम अपने क्षेत्र के रोजगार कार्यालय में दर्ज करवा कर रखता है। 8 लाख में से 50% इसलिए कहूंगा क्योंकि यह 50% निजी क्षेत्र में रोजगार प्राप्त किए हुए है। लेकिन हम बेरोजगारी के इन आंकड़ों को केवल सरकारी क्षेत्र से ही जोड़ कर देखते हैं। वहीं इस 50% का 50% वह वर्ग है जो निजी क्षेत्र में एक सम्मानजनक वेतन पर जीवनयापन कर रहा है जबकि उसका नाम अभी भी प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में दर्ज है। सरकारी नौकरी की चाहत में वह युवा वर्ग भी अपना नाम नहीं कटवा पाता जिसे सरकारी क्षेत्र से कहीं अधिक वेतन निजी क्षेत्र में मिल रहा है। कुल मिलाकर प्रदेश में बेरोजगारी भत्ते की पात्रता के लिए 3-4 लाख बेरोजगारों का आंकड़ा ही बनता है।

बात चली है बेरोजगारी भत्ते की। एक युवा अपने रोजगार को ध्यान में रखते हुए भविष्य की पढ़ाई का चुनाव करता है ताकि उसे अपनी उच्च शिक्षा या व्यवसायिक शिक्षा पूरी करने के बाद रोजगार प्राप्त हो। लेकिन यह इतना भी आसान नजर नहीं आता।

 

सवाल यह है कि आखिर जब तक रोजगार उपलब्ध न हो तब तक किया क्या जाए? क्या बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान ही अंतिम विकल्प हो सकता है। शायद देश प्रदेश का कोई भी बेरोजगार युवा बेरोजगारी भत्ता नहीं चाहेगा वह रोजगार चाहेगा। बात यदि अपने प्रदेश की करें तो किसी भी सरकार के लिए यह सचमें कदापि संभव नहीं कि 3-4 लाख लोगों को बेरोजगारी भत्ता दिया जाए। वजह है हमारे पास इतने संसाधन नहीं जिनसे हम इस मांग को पूरा कर सकें। न ही हमारे प्रदेश का युवा बेरोजगारी भत्ते की मांग करता है वह रोजगार की मांग करता है।

 

मेरी नजर में हमारे युवाओं को बेरोजगारी भत्ते की लत डालने की बजाए स्वरोजगार की तरफ ले जाना चाहिए ताकि कोई युवा व्यवसायिक शिक्षा ग्रहण कर सरकार की तरफ टकटकी लगाए न देखे वह अपना कार्य शुरू करे। इस तरह की नीतियों को बढ़ावा देना चाहिए। उन्हें बिना ब्याज दर के स्वरोजगार के लिए आसान ऋण उपलब्ध करवाया जाए। वहीं दूसरी और जो युवा उच्च शिक्षा प्राप्त हैं उन्हें केंद्रीय व राज्य के अधीन होने वाली विभिन्न पदों की भर्ती हेतु लिया जाने वाला आवेदन शुल्क खत्म किया जाए।

आज किसी भी भर्ती हेतु आवेदन करने के लिए एक बेरोजगार युवा का कम से कम 5 सौ रुपए के लगभग खर्च बैठता है। कुछेक पढ़े-लिखे युवा तो कई बार आवेदन शुल्क न होने के कारण आवेदन तक नहीं कर पाते। जब तक वह बेरोजगार है तब तक उससे बिना शुल्क लिए रोजगार संबधी अवसरों में निशुल्क बैठने का मौका तो दिया ही जा सकता है। जोकि उस बेरोजगारी भत्ते से कहीं बढकर है। एक वर्ष में कहीं 10 बार विभिन्न पदों के लिए आवेदन करना पड़े तो यही खर्च करीब 5 हजार के आसपास बैठता है। यह तो बेरोजगार वर्ग के लिए “एक तो कंगाली ऊपर से आटा गीला” वाली कहावत चरितार्थ करती है।

 

यदि युवावस्था में बेरोजगारी भत्ते की आदत डाल दी जाएगी तो हमारा युवा उसे ही अपना कर्म मानकर अपनी अंदर की योग्यता को धीरे-धीरे खत्म कर देगा। वह उसे ही अंतिम विकल्प मान लेगा और शायद यह किसी धीमे जहर से कम नहीं होगा। हमें बीमारी का जड़ से खत्म करने का उपचार चाहिए न कि बीमारी को पालने का। यह जड़ से उपचार बेरोजगारी भत्ता देकर नहीं बल्कि रोजगार उपलब्ध करवा कर, स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर ही संभव है।

(स्वतंत्र लेखक और शिक्षक राजेश वर्मा बलद्वाड़ा, मंडी के रहने वाले हैं और उनसे 7018329898 पर संपर्क किया जा सकता है।)

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