लेख: बीजेपी सरकार चाहती तो हिंसा और मौतों को टाल सकती थी

आई.एस. ठाकुर।। डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरमीत राम रहीम को सजा सुनाते ही उनके समर्थक बेकाबू हो गए और हिंसा पर उतारू हो गए। मजबूरन सुरक्षा बलों को बल प्रयोग करना पड़ा और दो दर्जन से ज्यादा की मौत हो गई, कई ज़ख्मी हो गए। यह नौबत न आती अगर अगर हरियाणा सरकार पहले ही कदम उठा लेती। पंचकूला में डेरा समर्थक अचानक नहीं आ गए, वे एक हफ्ते से वहां पर जुटना शुरू हो गए थे। मगर सबकुछ जानते हुए भी खट्टर सरकार ने कुछ नहीं किया। यहां तक कि जब कोर्ट ने कदम उठाने को कहा, तो धारा 144 लगाई जिसमें लोगों के इकट्ठा होने पर नहीं, बल्कि सिर्फ हथियार ले जाने पर रोक थी। बाद में कहा कि ये तो लिखने में गलती हो गई थी।

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इस तथाकथित गलती का नतीजा यह रहा कि कई परिवार उजड़ गए। मौत हुड़दंगियों की हो या आम लोगों की, मौत तो मौत ही है। यह चर्चा का विषय नहीं हो सकता कि कोई व्यक्ति क्या करता हुआ मारा गया। प्रश्न यह उठता है कि उसकी मौत को टाला जा सकता था या नहीं। और इसका जवाब है- हां, इन मौतों को टाला जा सकता था। अगर हरियाणा सरकार शुरू से ही पार्कों और सड़कों के किनारे जुटे लोगों को उठाकर बाहर भेजना शुरू कर देती, निषेधाज्ञा लगाकर लोगों को इकट्ठा न होने देती, तो कुछ भी होता, फैसले वाले दिन यानी शुक्रवार को इतनी जनता इकट्ठा न होती। साथ ही सरकार की तरफ से मुख्यमंत्री तो क्या, एक भी मंत्री की तरफ से ऐसा बयान नहीं आया कि डेरा सच्चा सौदा समर्थक हदों में रहें, पंचकूला न आएं वरना कड़ाई से निपटा जाएगा। आखिर बीजेपी सरकार क्यों मौत हो गई थी? इसका कारण है।

डेरा समर्थकों ने जगह-जगह आगजनी की है

दरअसल बीजेपी की सरकार हरियाणा में यूं ही नहीं बन गई, उसे डेरा सच्चा सौदा का समर्थन मिला हुआ था। डेरे के भक्त अपने गुरु के कहने पर वोट डालते आए हैं। करीबी लड़ाई में डेरे के समर्थकों के वोट कई बार निर्णायक साबित हो जाते हैं। पहले डेरा प्रमुख का समर्थन कांग्रेस को हुआ करता था। मगर इस बार हरियाणा चुनाव में बीजेपी के सारे उम्मीदवारों ने डेरा सच्चा सौदा सिरसा जाकर हाजिरी भरी थी और जीतने के बाद विधायक चुने गए बीजेपी वालों ने दोबारा वहां जाकर शुक्रिया अदा किया था।

हिमाचल के कई नेता भी राम रहीम के साथ मंच साझा कर चुके हैं।

अब यह समझा जा सकता है कि सरकार क्यों डेरे के समर्थकों के खिलाफ सख्त ऐक्शन नहीं ले पाई और क्यों उसकी बोलती बंद हो गई। मगर उसकी डेरे से करीबी का मनोवैज्ञानिक असर सीधे तौर पर प्रशासन पर भी पड़ा। अधिकारियों और पुलिसकर्मियों को पता है कि जिस सरकार के मंत्री और विधायक बाबा के आगे मत्था टेकते हैं, उसके चेलों को कुछ करना खतरे से खाली नहीं है। सरकारी मुलाजिम क्यों सरकार के बदों से पंगा ले?

यही वजहें रहीं कि न तो प्रशासन ने अपने से कुछ किया और न ही सरकार ने। अब आप यह भी समझ गए होंगे कि धारा 144 में लोगों के इकट्ठा होने के बजाय सिर्फ हथियार ले जाने पर क्यों रोक लगाई गई। यह क्लैरिकल मिस्टेक नहीं बल्कि चालाकी नजर आती है। इसके लिए हाई कोर्ट ने खट्टर सरकार को फटकार भी लगाई है और कहा है कि यह तो डेरे और सरकार की सांठगांठ नजर आ रही है।

(तस्वीर में राम रहीम के बगल में हाथ बांधकर खड़े शख्स नाहन के विधाय राजीव बिंदल हैं)

चलो मान लिया कि सरकार सख्त कदम नहीं लेना चाहती थी तो कम से कम अपने संबंधों का फायदा उठाकर ही डेरे से कहती कि अपने समर्थकों को वहां आने से रोको। हो सकता है कि सरकार ने ऐसा किया भी हो मगर जिसके आगे मंत्री घुटने टेकते हों, उस सरकार की बाबा कहां सुनेगा।

डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के साथ हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज
डेरा सच्चा सौदा प्रमुख के साथ हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज

यह वोटों की राजनीति देश को बर्बाद करके रख देगी। हरियाणा सरकार ने पहले बाबा रामपाल के समर्थकों को नाराज न करना चाहा, फिर आरक्षण आंदोलन के चक्कर में जाटों को नाराज नहीं करना चाहा और फिर राम रहीम के समर्थकों को नाराज नहीं करना चाहा। इसका नतीजा यह हुआ कि हिंसा को टाला नहीं जा सका और कई लोगों की जानें यूं ही चली गईं। जो पार्टी परिवर्तन और बेहतर भविष्य और ‘पार्टी विद डिफरेंस’ का नारा लेकर चलती है, उसकी हकीकत बहुत स्याह नजर आती है। बाकी राज्यों में भी हालात ऐसे ही हैं, पार्टी कोई भी हो। न जाने अब ऐसा उपद्रव कहां और किस रूप में देखने को मिलेगा।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में एक कंपनी में कार्यरत हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

(DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं)

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