धर्मशाला: अनुभवहीन ही नहीं बल्कि विवादित भी रही है बेलारूस की कंपनी SkyWay

धर्मशाला।। हिमाचल प्रदेश ने बेलारूस की एक कंपनी के साथ धर्मशाला में स्काइवे ट्रांसपोर्ट फैसिलिटी शुरू करने के लिए एक अग्रीमेंट साइन किया है। SkyWay टेक्नॉलजी कॉर्पोरेशन के साथ इसके लिए MoU साइन हुआ है। SkyWay बेलारूस की ट्रांसपोर्ट और इन्फ्रास्ट्रचरल डिवेलपमेंट कंपनी है। हिमाचल प्रदेश के शहरी विकास मंत्री सुधीर शर्मा ने कहा कि धर्मशाला पहला ऐसा शहर होगा जिसमें यह ट्रांसपोर्ट फैसिलिटी उचित रेट पर उपलब्ध होगा। उन्होंने कहा कि 1 किलोमीटर स्काइवे ट्रैक डिवेलप करने में 38 करोड़ रुपये का खर्च आएगा। उन्होंने बताया कि इससे न सिर्फ पर्यटकों को लाभ होगा बल्कि स्थानीय लोग इसके जरिए सामान भी ढो सकेंगे। SkyWay नाम की जिस कंपनी के साथ MoU साइन हुआ है, उसके बारे में In Himachal ने रिसर्च किया तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। यूरोप में इस कंपनी के फंड जुटाने के तरीके पर सवाल उठ चुके हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस कंपनी ने अभी तक पूरी दुनिया में कहीं पर भी वैसा स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट सिस्टम स्थापित नहीं किया है, जैसा वह धर्मशाला में स्थापित करने जा रही है। अभी तक उसका कॉन्सेप्ट सिर्फ कॉन्सेप्ट है और धरातल पर टेस्टिंग फील्ड से बाहर नहीं निकला है। यानी धर्मशाला में वह पहली बार ऐसा सिस्टम कमर्शल स्केल पर लगा रही होगी।

90 के दशक में रूस से अलग हुए बेलारूस की कंपनी SkyWay विभिन्न देशों में कंपनियां बनाकर अपने इस कॉन्सेप्ट को बेचने की कोशिश कर रही है, मगर वहां सफलता मिलती नहीं दिख रही। इस कंपनी ने बेलारूस की राजधानी मिंस्क में अपना एक “टेक्नोपार्क” बनाया है जहां पर वह अपने कॉन्सेप्ट की टेस्टिंग करती है और जो लोग उसके प्रॉजेक्ट में रुचि लेते हैं, उन्हें यहां पर डेमो दिया जाता है। अभी भारत में दो जगह इस कंपनी को अपना आइडिया बेचने में कामयाबी मिली है- झारखंड और हिमाचल प्रदेश। झारखंड में तो इस कंपनी और एक अन्य कंपनी के साथ वहां की सरकार ने सिर्फ ‘लेटर ऑफ इंटेंट’ साइन किया है मगर हिमाचल में ‘MoU’ साइन कर लिया गया है। लेटर ऑफ इंटेंट में किसी तरह की बाध्यता नहीं होती जबकि MoU आपको बाध्य बनाता है। चिंता की बात यह है कि कल को इस कंपनी का प्रॉजेक्ट फेल भी हो सकता है, उसके लिए जिम्मेदार क्या वे लोग नहीं होंगे जिन्होंने बिना रिसर्च के यह MoU साइन किया। इंटरनेट पर विभिन्न पोर्टल्स पर सबसे बड़ा सवाल इस कंपनी के फंड जुटाने के तरीकों पर उठाया गया है। यूरोपीय देशों में इसे लेकर कई विवाद रहे। हमने विभिन्न स्रोतों से जानकारियां जुटाईं जिनमें से कुछ इंटरनैशनल न्यूज पोर्टल हैं तो कुछ जानकारियां हमें इस कंपनी की वेबसाइट से ही मिलीं। इस आर्टिकल में In Himachal ने अपनी तरफ से कुछ भी दावा नहीं किया है। इस जानकारी के आधार पर वे सवाल जरूर खड़े किए गए हैं जो आम नागरिकों के जहन में आते हैं। सभी बातों के लिए उनका सोर्स साथ में दिया गया है जहां जाकर आप  (स्रोत )  पर क्लिक करके जानकारी वेरिफाई कर सकते हैं।

पैसा कहां से लाती है SkyWay?
प्रश्न उठता है कि पूरी दुनिया में जब किसी ने भी कमर्शल लेवल पर SkyWay की सेवाएं नहीं लीं तो उसके पास Techno Park में प्रोटोटाइप (शुरुआती मॉडल) तैयार करने का पैसा कहां से आया? इस सवाल का जवाब यह है कि कंपनी अफिलिएट मार्केटिंग से क्राउडफंडिंग से पैसे जुटाती है। 2014 की शुरुआत से उसने पैसे जुटाना शुरू किया है। 2014 में यूरोप के देश लिथुएनिया के बैंक ऑफ लिथुएनिया ने इन्वेस्टर्स को चेताया था- ‘अज्ञात लोग लिथुएनिया के निवासियों को ‘नेक्स्ट जेनरेशन स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट’ में इन्वेस्ट करने के लिए अपनी प्राइेवेट लिमिटेड कंपनी यूरोएज़ियन रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड के ऑनलाइन शेयर खरीदने के लिए आमंत्रित किया है। इसके लिए इस कंपनी ने संबंधित अथॉरिटी से अप्रूवल नहीं लिया है (स्रोत) ।’  उसी साल SkyWay के मालिक यूनित्स्की ने लिथुएनिया में Rail Skyway System Ltd. के नाम से कंपनी रजिस्टर कर ली।

लिथुएनिया में लगे थे फर्जीवाड़े के आरोप
लिथुएनिया के कई प्रतिष्ठित एनालिस्ट्स जिनमें स्वेडबैंक के इकॉनमिस्ट Nerijus Mačiulis भी शामिल थे, ने आशंका जताई थी कि यूनित्स्की (स्काइवे के मालिक) की कमर्शल स्कीमें स्कैम भरी हो सकती हैं क्योंकि इन्वेस्टर्स को लंदन स्थित कुछ तगड़ी कंपनियों का हवाला दिया जा रहा था (स्रोत)। ये कंपनियां थीं- यूरोएज़ियन रेल स्काइवे सिस्टम्स, अमेरिकन रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड, अफ्रीकन रेल स्काइवे सिस्टम लिमिटेड, ऑस्ट्रेलियन ऐंड ओशनिक रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड और लिथुएनिया में नई खोली गई रेल स्काइवे सिस्टम्स लिमिटेड (इन हिमाचल ने पाया कि इनमें कुछ कंपनियां अब डिसॉल्व की जा चुकी हैं)। इन सभी कंपनियों ने अपना कैपिटल 235.1 बिलियन ब्रिटिश पाउंड बताया था। कंपनियों के मालिक यूनित्स्की की इन कंपनियों में 10 पर्सेंट हिस्सेदारी थी। इस हिसाब से तो कंपनी के मालिक यूनित्स्की को फोर्ब्स के 10 सबसे अमीर लोगों की सूची में आ जाना चाहिए था यानी बिल गेट्स जैसे अरबपतियों की श्रेणी में। मगर फोर्ब्स की सूची में उनका कहीं पर भी नाम नहीं (स्रोत)

लिथुएनियन बैंक के सुपरविजन डिपार्टमेंट ने ऐलान किया था कि यूनित्स्की की कंपनी जो बिजनस बता रही है, उसमें फाइनैंशल पिरामिड के कोई संकेत नहीं है। यही नहीं, सुपरविजन डिपार्टमेंट ने लिथुएनिया के प्रॉसिक्यूटर जनरल के ऑफिस में गैरकानूनी व्यावसायिक गतिविधि और फ्रॉड के शक में शिकायत दी थी। लिथुएनिया में तो इस कंपनी पर यह आरोप भी लगे थे कि रूस के नागरिक की यह कंपनी, जिसकी फंडिंग साफ नहीं है, हमारे यहां NATO के बेस के पास टेस्टिंग फसिलिटी बनाना चाहती है तो यह नैशनल सिक्यॉरिटी के लिए खतरा है (स्रोत)। भारी विरोध के बाद कंपनी को लिथुएनिया से हटकर बेलारूस की राजधानी मिंस्क में यह टेस्टिंग फसिलिटी बनानी पड़ी जिसे उसने टेक्नो पार्क का नाम दिया है।

पूरी दुनिया में कहीं नहीं है फंक्शनिंग कमर्शल SkyWay
सबसे पहली बात तो यह है कि SkyWay दरअसल बेलारूस के एक इंजिनियर और इन्वेंटर एनातोली यूनित्सकी (Anatoly Yunitskiy) की कंपनी है। एनातोली 1980 के दशक से अपने इस स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट सिस्टम की बात कर रहे हैं मगर पूरी दुनिया में कहीं भी इसके लिए अब तक रुचि पैदा नहीं हुई। इसके बाद एनातोली की कंपनी SkyWay ने कई नामों से कंपनियां खड़ी कीं। SkyWay जिस ट्रांसपोर्ट सिस्टम की बात कर रहा है, वह दुनिया में कहीं पर भी ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा। सिर्फ बेलारूस की राजधानी मिंस्क में स्काइवे ने खुद अपना एक टेक्नो पार्क बनाया है, जहां पर उसने अपने प्रॉजेक्ट के प्रोटोटाइप (शुरुआती मॉडल) लगाना शुरू किया है ताकि ग्राहकों को डेमो दिया जा सके(स्रोत) ध्यान रहे कि यह पार्क बनकर पूरा नहीं हुआ है और इसपर काम चल रहा है। कंपनी का खुद कहना है कि 2018 तक यह पूरा होगा। इसके अलावा दुनिया भर में कहीं पर भी आपको फंक्शिनिंग स्काइवे नहीं मिलेगा। 2016 में रूस की ट्रांसपोर्ट मिनिस्ट्री की एक्सपर्ट काउंसिल ने माना की SkyWay स्ट्रिंग टेक्नॉलजी इनोवेटिव है और अधिक जानकारी जुटाई जानी चाहिए। मगर इस बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है कि सरकार ने स्काईवे से कुछ खरीदा है या कॉन्ट्रैक्ट किया है या नहीं।

दरअसल अभी तक टेस्टिंग के फेज में ही है स्ट्रिंग रेल
पहला स्ट्रिंग रेल टेस्ट ट्रैक 2001 में रूस के कस्बे ऑजियरी (Ozyory) में बनाया गया था। इस टेस्ट ट्रैक की लंबाई सिर्फ 150 मीटर थी। फंडिंग न मिलने की वजह से इन्वेंटर इस टेस्ट ट्रैक के लिए रेलकार नहीं बना बना पाए थे। इसलिए उन्होंने ट्रैक पर दौड़ाने के लिए मॉडिफाइड ट्रक इस्तेमाल किया था जिसमें सड़क वाले पहियों को हटाकर लोहे वाले पहिए लगाए गए थे। बाद में इस प्रॉजेक्ट को यूएन हैबिटैट से फंडिंग मिली। प्रक्रिया से ही साफ हो चुका होगा कि यह जुगाड़ से किया गया एक्सपेरिमेंट था।

रूस वाली टेस्टिंग फसिलिटी

साल 2008 में खाबरोव्स्क (Khabarovsk) में पायलट रूट बनाने की योजना बनाई गई। मगर मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ रेलवे इंजिनियरिंग के स्पेशलिस्ट्स ने प्रॉजेक्ट का नेगेटिव असेसमेंट दिया और कहा कि इसे जमीन पर नहीं उतारा जा सकता (स्रोत)। 2013 में न्यू साउथ वेल्स में रिसर्च करके पैसेंजर रेल के तौर पर स्ट्रिंग ट्रांसपोर्ट सिस्टम की व्यावहारिकता पर और शोध किया गया।

6 महीने पहले ही तैयार हुए हैं रेलकार
पूर्वी यूरोप के बेलारूस में मिंस्क के मारियाना होर्का (Maryina Horka) में प्रोटोटाइप ईकोटेक्नोपार्क सेटअप किया जा रहा है जिसमें टेस्ट ट्रैक हैं जहां कंपनी अपनी टेक्नॉलजी को शोकेस करती है। इस प्रॉजेक्ट को 2018 तक पूरा करने का टारगेट रखा गया है। कंपनी ने रेलवे एग्जिबिशन इनोट्रांस 2016 में अर्बन रेलकार (जिसमें लोग बैठेंगे) U4-210 और पर्सनल लाइट रेलकार U4-621 के सैंपल शोकेस किए थे। 2016 के आखिर तक कंपनी ने U4-621 के ट्रायल शुरू कर दिए थे। यानी कंपनी ने कुछ ही महीने पहले रेलकार बनाकर दिखाए और वह भी पहली बार टेस्टिंग के लिए (स्रोत)। इसमें भी रोज बड़ी संख्या में लोग ट्रैवल नहीं करते, इसलिए यह सिर्फ कॉन्सेप्चुअल बात है कि यह सिस्टम ऐक्सिडेंट प्रूफ है।

यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि जब 1 किलोमीटर के ट्रैक के लिए 38 करोड़ रुपये खर्च होने वाले हों, उसके लिए ऐसी कंपनी को क्यों पकड़ा जा रहा है कि जिसे प्रैक्टिकल अनुभव नहीं है। ठीक है कि नई कंपनियों को मौका दिया जाना चाहिए क्योंकि कहीं न कहीं से तो शुरुआत होनी चाहिए। मगर दुनिया जब यूरोप में ही इसे ट्रांसपोर्ट के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा तो हिमाचल प्रदेश ने आधे-अधूरे प्रॉजेक्ट को क्यों लागू करने का फैसला किया? इस प्रॉजेक्ट की फाइनैंशल फिजिबिलिटी क्या है? इस प्रॉजेक्ट के लिए MoU साइन करने से पहले कौन-कौन विभागों के इंजिनियर्स ने सहमति दी थी? किस आधार पर दावा किया जा रहा है कि 100 साल तक यह टिकेगी? ‘इन हिमाचल’ का मानना है कि जनता के टैक्स के पैसे को यूं ही किसी कंपनी के एक्सपेरिमेंट के लिए तो नहीं बहाया जा सकता, इसलिए कोई भी कदम उठाने से पहले रिसर्च करना जरूरी है। एक नागरिक के तौर पर चिंता करना जरूरी है कि सरकार ने MoU साइन करने से पहले कंपनी के बारे में उचित रिसर्च किया था या नहीं। जब इंटरनेट पर ही इतनी सारी जानकारी जुटाने में हम कामयाब हुए तो प्रदेश सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि आधिकारिक सूत्रों से कंपनी और उसकी योग्यता के बारे में रिसर्च करवाया जाए।

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