मंडी: झुग्गी वालों ने मंदिर के साथ बनाई पक्की ‘मज़ार’

Image: MBM News Network

मंडी।। मंडी शहर में जहां पर सुकेती खड्ड ब्यास नदी के साथ मिलती है, वहां पर पंचवक्त्र महादेव मंदिर है। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर के पास कुछ झुग्गियां नजर आती हैं। पहली बात तो यह है कि कहीं पर अवैध ढंग से किसी को बसाया नहीं जाना चाहिए और ऊपर से नदी के किनारे तो बिल्कुल नहीं। मगर प्रशासन की लापरवाही देखिए, यहां न सिर्फ झुग्गियां बनी हैं बल्कि उनके अंदर सीमेंट-ईंट से भी निर्माण हुआ है। और तो और, अब खबर आई है कि ऐतिहासिक मंदिर की दीवार के साथ अवैध ढंग से एक मज़ार नुमा ढांचा तैयार कर दिया गया है, जिसमें बाकायदा फर्श डाला गया है और ईंटों से चबूतरा सा बनाया गया है।

एनजीटी से स्पष्ट आदेश हैं कि नदियों के किनारे किसी तरह का निर्माण नहीं होना चाहिए मगर मंडी शहर में बेतरतीब निर्माण हुआ है। झुग्गियां तक बसाई गई हैं, जहां रहने वाले लोग शौच आदि के लिए सीधा ब्यास नदी जाते हैं। ये उसी जिले के मुख्यालय के हाल हैं, जिसे खुले में शौच मुक्त घोषित किया जा चुका है और जो सम्मानित हो चुका है। यही नहीं, जहां ये झुग्गियां हैं, वह फ्लड जोन है। बरसात में जब सुकेती और ब्यास दोनों उफनती हैं और आपस में मिलती हैं, पानी का प्रवाह इतना तेज होता है कि आपस में टकराकर पीछे हटता है। ऐसे में इन झुग्गियों के बह जाने का खतरा भी है, जिससे भारी नुकसान हो सकता है।

इन तमाम बातों के बावजूद प्रशासन आंख मूंदकर सोया हुआ है। अस्थायी बस्तियों की समस्या हिमाचल प्रदेश में की व्यापक समस्या बन गई है। बाहर से आने वाले मजदूर वर्ग के लोग जगह-जगह अस्थायी झुग्गियां बनाकर रहने लगते हैं और कई हिस्से तो ऐसे हैं कि वर्षों से वे वहीं बसे हुए हैं। बाहर से आकर हिमाचल प्रदेश में आकर काम करने में कोई बुराई नहीं मगर समस्या यह है कि इन लोगों की पहचान आदि के लिए प्रॉपर व्यवस्था नहीं है। कौन आ रहा है, कौन जा रहा है, कोई हिसाब नहीं। कई बार अस्थायी झुग्गियों में रहने वालों को कुछ संदिग्ध गतिविधियों में भी लिप्त पाया गया है।

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मंडी में पंचवक्त्र महादेव मंदिर पुरातत्व विभाग की निगरानी में है। हालांकि कुछ लोग मंदिर के किनारे बसे लोगों को यहां से हटाकर पार्क बनाने की मांग कर रहे हैं मगर मुद्दा यह है कि वहां पार्क भी क्यों बने। क्या नदियों के किनारे प्राकृतिक सौंदर्य को यथावत बनाकर नहीं रखा जाना चाहिए? क्या चट्टानों को प्राकृतिक स्वरूप में नहीं छोड़ दिया जाना चाहिए? क्या नदी के किनारे पर बाहरी लोगों द्वारा आकर अतिक्रमण करने और स्थानीय लोगों द्वारा अतिक्रमण करने में फर्क है?

अक्सर देखा गया है कि प्रवासी मजदूर भले ही रोजगार कमाने के इरादे से हिमाचल आ रहे हों, वे खड्डों और नदी किनारे की सरकारी जमीन पर झुग्गियां बनाकर रहने लग जाते हैं। यहां उनकी पानी आदि की जरूरत तो पूरी होती ही है, कोई पूछने भी नहीं आता कि वे क्या कर रहे हैं क्या नहीं। उन्हें कोई टोकने वाला भी नहीं होता। इसका खामियाजा प्राकृतिक सौंदर्य और सरकारी योजनाओं को भुगतना पड़ता है।

टीकाकऱण आदि अभियान में ये यकीन नहीं रखते, बच्चों का वैक्सीनेशन नहीं करवाते और नतीजा ये रहता है कि इनके बच्चे संक्रामक बीमारियों के संवाहक बने रहते हैं। इससे पूरे सुरक्षा चक्र के टूटने का खतरा बना रहता है। बहरहाल, इस वक्त जरूरी है कि अस्थायी बस्तियों के संबंध में पॉलिसी बने, नदियों किनारे या कहीं पर भी बस गए लोगों की जांच की जाए और उन्हें हटाया जाए। और अगर जरूरी है तो सही जगह, नीति बनाकर योजनाबद्ध तरीके से उन्हें रिहाइश दी जाए।

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