इस शख्स ने लिया हिमाचली जवानों की शहादत का ‘बदला’: जानिए कौन हैं अजीत सिंह डोभाल

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शिमला।।

देश के लिए कुर्बान हुए जवानों में से हिमाचल प्रदेश के भी सात जवान थे इनकी शहादत ने हिमाचल प्रदेश मको गर्व के साथ साथ ग़मगीन भी किया।  वतन के लिए मिटने वाले ये वीर वापिस तो नहीं आ सकते परन्तु इनकी शहादत का बदला भारतीय सेना ने ले लिया।  मणिपुर से म्यांमार बॉर्डर में घुसकर भारतीय सेना ने उन सब आतंकवादियों का खात्मा कर दिया जो मणिपुर हमले के जिम्मेदार थे।  इस गुप्त ऑपरेशन में सबसे सक्रिय भूमिका निभायी नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर अजीत सिंह डोभाल ने।  आएये जानिये कौन हैं ये अजीत सिंह डोभाल।

फोटो abplive.in से साभार

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का मुख्य कार्यकारी होता है और उसका मुख्य काम प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर सलाह देना होता है। डोवाल केंद्र सरकार में सबसे ताकतवर अफसर माने जाते हैं। वह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार बनने से पहले आईबी के चीफ रह चुके हैं। उन्होंने पंजाब से लेकर नॉर्थ ईस्ट तक आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अहम योगदान दिया है। वह पीएम नरेंद्र मोदी के करीबी भी माने जाते हैं। उन्होंने मिजोरम, पंजाब और कश्मीर में आतंकवाद से लड़ाई लड़ने में अहम भूमिका निभाई।

31 जनवरी 2005 में खूफिया ब्यूरो प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त डोवाल 1968 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वह मूलत: उत्तराखंड के पौड़ी गड़वाल से हैं। उनके पिता भारतीय सेना में थे और उन्होंने अजमेर के मिलिट्री स्कूल से पढ़ाई की है। साथ ही आगरा यूनिवर्सिटी से इकोनोमिक्स में मास्टर डिग्री ली है।ऑपरेशन की प्‍लानिंग उग्रवादियों के हमले के अगले दिन, यानी पांच जून से ही होने लगी। इसी वजह से एनएसए डोभाल ने छह जून को प्रधानमंत्री के साथ बांग्‍लादेश जाने का कार्यक्रम टाल दिया। वह बीते कुछ दिन से मणिपुर में ही थे। यहां वे इंटेलिजेंस से मिले इन्पुट्स पर नजर रख रहे थे।

13 घंटे का ऑपरेशन
फूलप्रूफ प्‍लानिंग के बाद सोमवार देर रात ही सेना के हेलिकॉप्टर्स ने पैरा कमांडोज को म्यांमार के सीमा के अंदर एयरड्रॉप किया। मंगलवार तड़के 3 बजे उनका ऑपरेशन शुरू हो गया। हालांकि, भारतीय राजदूत इसके बारे में म्यांमार के विदेश मंत्रालय में उस वक्त बता पाए, जब मंगलवार सुबह तयशुदा वक्त पर उनके दफ्तर खुले।कमांडोज ने 13 घंटे के ऑपरेशन में दोषी उग्रवादियों को ठिकाने लगा दिया। इस ऑपरेशन में इंडियन एयरफोर्स के हेलिकॉप्टर और ड्रोन्स ने स्पेशल कमांडोज की मदद की। कमांडोज म्यांमार के सात किमी अंदर तक घुस गए। इंटेलिजेंस के इन्पुट्स के आधार पर कमांडोज नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (खापलांग) के कैंपों तक चुपचाप पहुंचे। कमांडोज को इन उग्रवादियों के कैंपों तक पहुंचने के लिए सैकड़ों मीटर तक रेंग कर जाना पड़ा। तकनीकी एक्सपर्ट्स ने कन्फर्म किया कि आतंकी इन्हीं कैंपों में हैं। ड्रोन्स के जरिए उन पर कई घंटों से नजर रखी गई थी। इसके बाद, कमांडोज ने जो किया, उसकी आधिकारिक जानकारी सेना ने मंगलवार शाम प्रेस कॉन्फ्रेंस करके दी।

29 साल पहले पूर्वोत्तर में डोवाल के तजुर्बे का आर्मी को मिला फायदा
नेशनल सिक्युरिटी एडवाइजर अजीत डोभाल ने पीएम के साथ बांग्लादेश दौरा ऐन वक्त पर रद्द कर दिया था। डोभाल मणिपुर में इंटेलिजेंस इनपुट्स पर नजर रख रहे थे। डोभाल जब आईबी में थे, तब उन्हें 1986 में पूर्वोत्तर में उग्रवादियों के खिलाफ खुफिया अभियान चलाने का अनुभव है। उनका अंडरकवर ऑपरेशन इतना जबर्दस्त था कि लालडेंगा उग्रवादी समूह के 7 में से 6 कमांडरों को उन्होंने भारत के पक्ष में कर लिया था। बाकी उग्रवादियों को भी मजबूर होकर भारत के साथ शांति समझौता करना पड़ा था। 1968 की केरल बैच के आईपीएस अफसर अजीत डोभाल 6 साल पाकिस्तान में अंडरकवर एजेंट रहे हैं। वे पाकिस्तान में बोली जाने वाली उर्दू सहित कई देशों की भाषाएं जानते हैं। एनएसए बनने के बाद वे सभी खुफिया एजेंसियों के प्रमुखों से दिन में 10 बार से ज्यादा बात करते हैं।

खालिस्तानी आतंकियों पर कार्रवाई में भी डोवाल ने ही दिए थे इनपुट
ऑपरेशन ब्लूस्टार के 4 साल बाद 1988 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एक और अभियान ऑपरेशन ब्लैक थंडर को अंजाम दिया गया। मंदिर के अंदर दोबारा कुछ आतंकी छिप गए थे। डोवाल वहां रिक्शा चालक बनकर पहुंचे थे। कई दिनों तक आतंकियों ने उन पर नजर रखी और एक दिन बुला लिया। बताया जाता है कि डोवाल ने आतंकियों को भरोसा दिलाया कि वे आईएसआई एजेंट हैं और मदद के लिए आए हैं। डोवाल एक दिन स्वर्ण मंदिर के पहुंचे और आतंकियों की संख्या, उनके पास मौजूद हथियार और बाकी चीजों का मुआयना किया। उन्होंने बाद में पंजाब पुलिस को बाकायदा नक्शा बनाकर दिया। दो दिन बाद ऑपरेशन शुरू हुआ और आतंकियों को बाहर किया गया। इस ऑपरेशन में डोवाल की भूमिका के चलते उन्हें देश के दूसरे बड़े वीरता पुरस्कार कीर्ति चक्र से नवाजा गया। 1999 में इंडियन एयरलाइंस के विमान को जब अगवा कर कंधार ले जाया गया था तब यात्रियों की रिहाई की कोशिशों के पीछे डोवाल का ही दिमाग था।