आशीष नड्डा।। 21वीं सदी के इस दौर में जब संचार-क्रान्ति के साधनों ने समग्र विश्व को एक ‘ग्लोबल विलेज’ में परिवर्तित कर दिया हो एवं इंटरनेट द्वारा ज्ञान का समूचा संसार क्षण भर में एक क्लिक पर सामने उपलब्ध हो, ऐसे में यह बात बड़ी रोमांचित करती है कि एक व्यक्ति दुर्लभ ग्रन्थों की खोज में हजारों मील दूर पहाड़ों और नदियों के बीच भटका और उन ग्रन्थों को खच्चरों पर लादकर अपने देश ले आया। भले आपको यकीन न हो, मगर भारतीय मनीषा के अग्रणी विचारक, साम्यवादी चिन्तक, सामाजिक क्रान्ति के अग्रदूत, सार्वदेशिक दृष्टि एवं घुमक्कड़ी प्रवृत्ति के महान पुरुष राहुल सांकृत्यायन ऐसे ही थे।
राहुल सांकृत्यायन के जीवन का मूलमंत्र ही घुमक्कड़ी यानी गतिशीलता रही है। घुमक्कड़ी उनके लिए वृत्ति नहीं वरन् धर्म था राहुल सांकृत्यायन को महापंडित की उपाधि दी जाती है। हिंदी साहित्य के पितामह राहुल ने बाद में बौद्ध धर्म को अपना लिया था परन्तु सोच से वो नास्तिक थे। मांस के बहुत बड़े शौकीन थे दिन में तीन बार भी खाने को मिल जाए तो पीछे न हटें। राहुल सांकृत्यायन उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में जन्मे केदारनाथ पांडे नाम के इस महान साहित्यकार का हिमाचल प्रदेश से गहरा नाता रहा है। सम्पूर्ण विश्व को सैर सपाटे से देखने वाले इस यायावर लेखक ने हिमाचल प्रदेश की धरती पर भी आजादी से पूर्व और बाद में कदम रखे। हिमाचल प्रदेश का शायद ही ऐसा कोई कोना जिला तहसील रही हो जहाँ इतिहास को तलाशते हुए राहुल सांकृत्यायन न गुजरे हों।
पहाड़ के रहस्यों देव परम्पराओं के बारे में जांनने की ललक ऐसी कि डायबिटीज़ मरीज होने के बावजूद इन्सुलिन साथ में रखकर यह घुमक्कड़ महापंडित पैदल ही हिमालय को नाप गया। कोठी की देवी की शादी करवाने की कोशिश भी राहुल जैसा व्यक्तित्व ही कर सकता है। वरना किन्नौर की सबसे ग़ुस्सैल देवी से भला कौन पंगा ले? सांकृत्यायन के लेखन की खासियत यह रही की इन्होने कभी भी जजमेंटल लेखन नहीं किया। अपने लेखन और वृतांतों संस्मरणों में सांकृत्यायन कभी किसी रिजल्ट या कन्क्लूज़न पर नहीं आये उन्होंने जो देखा पाया उसे कलम से कागज़ पर समेटते चले गए। हिंदी के इस साहित्यकार को आप पढ़ेंगे तो पाएंगे इनके लॉजिक साइंस के रिसर्चर की तरह स्ट्रॉन्ग और फैक्टफुल हुआ करते थे। व्यक्ति का चेहरा मोहरा देखकर सांकृत्यायन बता सकते थे की किस रेस का है। दूसरी बार राहुल हिमाचल तब आये जब देश को आजाद हुए मुश्किल से एक वर्ष बीता था। उस यात्रा में राहुल शिमला से होते हुए किन्नौर, स्पीति और तिब्बत के बॉर्डर तक गए थे। हिमाचल प्रदेश उस समय टुकड़ों में बंटा हुआ आधा अधूरा राज्य था। शिमला सिटी पंजाब में थी तो कुल्लू और कांगड़ा भी पंजाब का पार्ट था। श्री NC मेहता उस समय हिमाचल प्रदेश के प्रशासक थे जो केंद्र द्वारा नियुक्त किये गए थे। मेहता जी को जैसे ही पता चला की राहुल सांकृत्यायन हिमाचल आ रहे हैं उन्होंने इस यायावर लेखक के लिए पूरी यात्रा के दौरान जंगलात और PWD के बंगलों में रहने का जुगाड़ करवा दिया।
सांकृत्यायन आज के हिमाचल प्रदेश की कल्पना 1948 में ही कर चुके थे , थानेदार कोटगढ़ से आगे सांकृत्यायन पैदल और घोड़े पर किन्नौर के लिए जब निकले तो उन्होंने किन्नौर की विकास गाथा और संभावनाओं को कागज़ में पिरोना शुरू कर दिया। सांकृत्यायन की किताब का यह अंश उस समय की कहानी को ब्यान करता है रामपुर पहुँच कर संकृत्यायन वहां की राजमाता यानी आज के मुख्यमंत्रीं वीरभद्र सिंह की माँ से भी मिले थे। उस समय शिमला किन्नौर कैसे थे सांकृत्यायन के लिखे यह शब्द असल में बया करते हैं “1948 तक शिमला से आगे वैसे तो थानेधार तक मोटर योग्य रोड़ बन गया था छोटी गाडी पहुँचने का जुगाड़ हो चूका था पर बरसात और बर्फबारी के समय जीप नहीं आ पाती थी वहीँ बड़ी कैलाश ट्रांसपोर्ट की बस दिन में दो बार सिर्फ ठीयोग तक आ पाती थी। ठियोग से शिमला का किराया डेढ़ आने रखा गया था वहीँ आलू की बोरी छत पर चार आने में जाती थी। सवारी बस में आलू की बोरी अंदर भरना वैसे तो अवैध था परंतु मनमर्जी से उस्ताद लोग सवारी को वहीं छोड़कर आलू बोरियां अपने फायदे के लिए ज्यादा ले जाते थे।
सत्यानन्द स्टोक्स के लिए स्वर्ग में भी यह खुशी की बात थी की थानेधार तक मोटर योग्य सड़क पहुंचने से कोटगढ़ बेल्ट से सेब सही समय पर मार्केट में आने लगा था इससे पहले घोड़ो से शिमला या ठियोग तक पहुंचाया जाता था। लेकिन अभी भी किन्नौर उस दौर में इन सब चीजों से अछूता था। आजादी का एक वर्ष बीत जाने पर भी किन्नौर के लोग यह नहीं समझ पाए थे की रजवाड़ा शाही जा चुकी है और प्रजातंत्र आ गया है। किन्नौर के लोग अभी भी बुशहर के स्वर्गीय राजा पदम् सिंह के पुत्र युवराज वीरभद्र सिंह के कामरु और रामपुर में राज्याभिषेक होने की राह देख रहे थे। रामपुर के बुद्धिजीवी लोगों को जब पता चला की महपंडित राहुल सांकृत्यायन उनके शहर में हैं तो बाकायदा एक सम्मान सभा का आयोजन स्कूल में कर दिया गया। मिठाई बांटी गयी छात्रों से स्वागत करवाया गया और राहुल जी से रिक्वेस्ट की गयी की दो शब्द कहें। राहुल सांकृत्यायन को संबोधन देने के लिए आमंत्रित किया जाता है। असमंजस में पड़ा ये घुमंतू फक्कड़ सोचता है मैं क्या बात कहूँ । आगे राहुल लिखते हैं मैंने सोचा चलो अपने स्वप्न के हिमाचल की जो कल्पना जो मेरी है वही सुना देता हूँ। और उन्होंने अपना स्वप्न कुछ इन्ही शब्दो में सुनाया-
‘हिमाचल प्रदेश में गांव-गांव में स्कूल खुलेंगे। कोई अनपढ़ नहीं होगा। सारा पहाड़ मेवो (फलों) से ढक जाएगा और प्रदेश मालामाल होगा। घर-घर बिजली जलेगी, पर्वत स्थली इधर से उधर से मोटरों के भोम्पू से गूंजेंगी।”
1948 में भविष्य के हिमाचल की यह कल्पना राहुल करते हैं। उनके शब्दों से आप अंदाजा लगा सकते हैं वो कितने बड़े वो बड़े दूरदर्शी थे। आज हिमाचल प्रदेश देश के टॉप शिक्षित राज्यों में शुमार है। सेब के ऊपर टिकी ऊपरी हिमाचल की इकॉनमी। पूर्ण रूप से इलेक्ट्रिफाइड सरप्लस बिजली राज्य। सांकृत्यायन की जुबान पर शायद साक्षात सरस्वती उस समय विराजमान रहीं होंगी। उसके बाद वो रामपुर छोड़ किन्नौर के लिए आगे बढ़ते हैं सांकृत्यायन रामपुर से घोड़े पर और पैदल सफर करते हुए निचार वांगतू टापरी होते हुए कल्पा के पास एरिहासिक चैनी गांव में डेरा जमाते हैं। खाने के लिए शाक सब्जी की भारी कमी है। आटा भी रामपुर से खच्चर पर लाद के लाये हैं। भेड़ का सूखा मांस खाकर ऊब गए हैं परंतु वहां की अंगूरी शराब और अखरोट आदि के लिए उनके मन में बहुत प्लान हैं। हालाँकि खुद वो शराब नहीं पीते 1948 में वो किन्नौर में तरक्की की संभावनाओं पर लिख रहे हैं कि सैलानियों को हिमाचल सरकार विज्ञापन बाज़ी से नहीं बुला सकती। निचार तक मोटर के लिए सड़क बनानी होगी आगे घोड़े लायक अच्छा रोड बनाना पड़ेगा। उनका कहना है निचार तक जब मोटर आ जाएगा तो यहाँ के मेवे नीचे ढुलना शुरू हो जाएंगे और यहाँ अन्न की बाढ़ आ जायेगी । यहाँ के मेवे सारी दुनिया में घर बैठकर खाये जाएंगे । अब आज के किन्नौर को देखे किन्नुरी सेब खुमानी अखरोट बादाम विदेशों तक निर्यात होता है। राहुल सांकृत्यायन ये भविष्य 1948 में ही बता चुके थे।
ऐसा नहीं है उन्होंने बस लिखा और किया कुछ नहीं। उस समय अभी तक वही तहसीलदार सेवा दे रहे थे जो राजा द्वारा नियुक्त थे। और देश नया नया आजाद हुआ था तहसीलदार को चिंता थी की आजाद भारत और हिमाचल की सरकार अब उन्हें नौकरी से न निकाल दे। कल्पा में जब वहां के तहसीलदार को पता चला की राहुल यहाँ आये हैं तो वो उनसे मिलने पहुंचे। तहसालदार चाहते थे सांकृत्यायन मेहता जी से उनकी सिफारिश कर दे और उनकी नौकरी पक्की करवा दें। सांकृत्यायन ने कहा मैं मेहता जी से बात करूँगा लेकिन पहले आप पुरे किन्नौर कल्पा तहसील के सेबों, खुमानी आदि के पौधों की गिनती का डाटा ग्रामीण स्तर पर इकठा करें और उसे सरकार सरकार को भेजें। यह किन्नौर और अपर हिमाचल की बागवानी क्रान्ति का रोडमैप था जो सांकृत्यायन ने बिना किसी स्वार्थ के तैयार किया उसे कागजों में समेटा और पत्रों के माध्यम से प्रदेश के प्रथम चीफ कमिश्नर एन.सी. मेहता को अवगत करवाया। इसके लिए हिमाचल प्रदेश सदैव उनका ऋणी है। फल संपदा मेवों से भरपूर हिमाचल कभी नहीं हो पाता अगर काशी का ये फक्कड़ घुमन्तु महापंडित किन्नर की यात्रा के दौरान इस प्रदेश का भविष्य यहीं के संसाधनों के नजरिये से न देखता।
नीवं मजबूत पड़ी तो कम से कम पहाड़ आज खुशहाल है दूसरों से बेहतर है। सांकृत्यायन कुल्लू स्पीति मंडी शिमला कांगड़ा चम्बा सिरमौर नाहन याहं तक की भरमौर भी पैदल घूम कर आये। 1948 में बिलासपुर रियासत में विलय के लिए बिअलसपुर के राजा आनंद चंद को जब दिल्ली बुलाया गया उस से पिछली शाम सांकृत्यायन बिलासपुर में ही आनंद चंद के साथ थे। नगरोटा बगवां के पठयार गाँव में खेतों के बीच एक सदियों पुराना शिलालेख है, यह बात भी राहुल के वहां जाने के बाद दुनिया को पता चली। राहुल सांकृत्यायन के बारे में जितना लिखा जाए उतना कम है। मैं भला उनके लिए क्या लिख सकता हूं मगर जो भी है, हिमाचल प्रदेश उनका हमेशा ऋणी है। उन्होंने यहां की विरासत लोक संस्कृति को सरल भाषा में पिरोकर किताबों के रूप में अजर अमर कर दिया। आज उनकी जयंती पर इस लेख को मैं उन्हें सपर्पित करता हूं।
(लेखक हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से हैं और आईआईटी दिल्ली से रिन्यूएबल एनर्जी पर डॉक्टरेट के बाद वर्ल्ड बैंक से जुड़े हैं। उनसे aashishnadda@gmail.com के माध्यम से संपर्क किया सकता है)