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जगत प्रकाश नड्डा: एबीवीपी कार्यकर्ता से बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष तक

इन हिमाचल डेस्क।। जगत प्रकाश नड्डा या जेपी नड्डा भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बन गए हैं। बीते साल जून में वह पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष बने थे। कौन जानता था कि जिस नेता को हिमाचल प्रदेश से नेतृत्व विवाद टालने के लिए हिमाचल से दिल्ली भेजा गया था, वह एक दिन पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएगा। मगर राजनीतिक जानकर मानते थे कि नड्डा माहिर रणनीतिकार हैं और लो प्रोफाइल रहकर काम करने में यकीन रखते हैं। इसी वजह से वह संगठन द्वारा दी गई जिम्मेदारियां निभाते चले गए और फिर संगठन ने भी उनका ख्याल रखा। एक नजर डालते हैं जेपी नड्डा के अब तक के राजनीतिक सफर पर:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के माहिर रणनीतिकार और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के विश्वासपात्र जगत प्रकाश नड्डा को जिस वक्त केंद्र में कैबिनेट मंत्री की जिम्मेदारी मिली थी, साफ हुआ था कि उनकी संगठन क्षमता और पर्दे के पीछे रहकर काम करने की खूबी को पुरस्कृत किया गया है। अपने कॉलेज के दिनों में प्रभावी छात्र नेता रहे नड्डा बेहद मृदुभाषी हैं। मुश्किल से मुश्किल कामों को आसानी से सुलझाने में माहिर नड्डा बीजेपी के अध्यक्ष पद की रेस में भी थे, लेकिन बाद में उन्होंने अपना समर्थन अमित शाह को दे दिया था।

जेपी नड्डा को बधाई देते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

नड्डा आज मोदी और शाह के साथ बीजेपी की सबसे शक्तिशाली तिकड़ी का हिस्सा हैं। वह पार्टी के हर बड़े फैसले में शामिल रहते हैं, साथ ही पार्टी और सरकार के बीच में कड़ी की भूमिका भी निभाते हैं। उन्हें आरएसएस से भी समर्थन मिलता है और बीजेपी से सभी बड़े नेताओं से उनके अच्छे रिश्ते हैं। किसी भी राज्य के चुनाव हों, या बीजेपी की कोई राज्य सरकार संकट में घिरी हो, नड्डा को ही केंद्र से पहले भेजा जाता रहा है।

छात्र राजनीति में प्रवेश
2 दिसंबर, 1960 को बिहार के पटना में नड्डा का जन्म हुआ था। उनके पिता पटना यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर थे। नड्डा जेपी आंदोलन से प्रभावित होकर छात्र राजनीति में आए थे। जिस वक्त बिहार में स्टूडेंट मूवमेंट चरम पर था, उस दौर में जेपी नड्डा की उम्र 15-16 साल थी। मगर इसी उम्र में नड्डा ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद वह छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और एबीवीपी के साथ जुड़े। 1977 में छात्र संघ चुनाव में वह पटना यूनिवर्सिटी के सेक्रेटरी चुने गए। 13 सालों तक वह विद्यार्थी परिषद में ऐक्टिव रहे।

जेपी नड्डा हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर से हैं।

हिमाचल वापसी
संगठन में उनकी काबिलियत को देखते हुए जेपी नड्डा को साल 1982 में उनके पैतृक राज्य हिमाचल प्रदेश में विद्यार्थी परिषद का प्रचारक बना कर भेजा गया। इसके साथ ही उन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई भी शुरू की। तेज़ तर्रार जेपी नड्डा हिमाचल के उस दौर के छात्रों में काफी लोकप्रिय हुए। नड्डा के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार छात्र संघ चुनाव हुआ और उसमें विद्यार्थी परिषद को संपूर्ण जीत हासिल हुई। उस दौर में वह 1983-1984 में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी परिषद के पहले प्रेजिडेंट बने। 1986 से 1989 तक जगत प्रकाश नड्डा विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रहे।

भाजयुमो में भी अच्छा काम किया
1977 से लेकर 1990 तक वह एबीवीपी में करीब 13 सालों तक विभिन्न पदों पर रहे। 1989 में केंद्र सरकार के भ्रटाचार के खिलाफ नड्डा ने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा का गठन किया इस आंदोलन को चलाने के लिए उन्हें 45 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा। 1989 के लोकसभा चुनाव में जगत प्रकाश नड्डा को भारतीय जनता पार्टी ने युवा मोर्चा का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया जो देश में युवा कार्यकर्तायों को चुन कर चुनाव लड़ने के लिए आगे लाने का काम करती थी। 1991 में 31 साल की आयु में नड्डा भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्य्क्ष बने। अपने कार्य काल में नड्डा ने जमीनी स्तर पर लोगों को जोड़ने और ट्रेनिंग देने पर बल दिया। जेपी नड्डा के कार्यकाल में बहुत से युवा पार्टी से जुड़े। उन्होंने कार्यशाला आदि लगाकर युवा वर्ग के भीतर पार्टी की विचारधारा का प्रचार किया । यह उस समय अपने आप में एक नई तरह का प्रयोग था।

जेपी नड्डा

जब अकेले घेरी थी वीरभद्र सरकार
साल 1993 में नड्डा ने चुनावी राजनीति की तरफ रुख किया और अपने पहले ही चुनाव में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बिलासपुर के विधायक के रूप में कदम रखा। इस चुनाव में पार्टी के प्रमुख नेताओं की हार के कारण नड्डा को विधानसभा में विपक्ष का नेता चुना गया। तेज तर्रार और ओजस्वी वक्ता के रूप में नड्डा ने कम विधायकों का साथ होने के बावजूद सरकार को 5 साल तक विभिन्न मुद्दों पर ऐसे घेरा की विपक्ष में होने के बावजूद उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया।

जब प्रदेश से केंद्र में गए
नड्डा 1993 से 1998, 1998 से 2003 और 2007 से 2012 तक बिलासपुर सदर से हिमाचल प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे। साल 1998 से 2003 तक वह राज्य के स्वास्थ्य मंत्री रहे और 2008 से 2010 तक वन एवं पर्यावरण, विज्ञान एवं तकनीकी मंत्री रहे। मंत्रायलय और सत्ता से ऊपर संगठन को तवज्जो देने वाले शख्स की छवि रखने वाले नड्डा ने मंत्रालय से इस्तीफा दिया और राष्ट्रीय टीम का रुख किया। अप्रैल 2012 में उन्हें राज्यसभा के लिए चुना गया और कई सारी संसदीय कमिटियों में जगह दी गई। वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी की टीम में राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रहे।

संगठन का काम
राजनाथ सिंह की टीम में उन्हें दोबारा राष्ट्रीय महासचिव चुना गया। नड्डा छत्तीसगढ़ के भी प्रभारी रहे थे, जहां पर बीजेपी ने तीसरी बार सरकार बनाई। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान संगठन की जिम्मेदारी संभालने से लेकर और भी कई काम भीउ न्होंने बखूबी निभाए। टिकट आवंटन के समय भी उनकी योग्यता पार्टी के काम आई। खास बात यह रही कि वह किसी भी खेमे से नहीं जुड़े और बीजेपी का हर धड़ा उनकी संगठन शक्ति का लोहा मानता रहा। आखिरकार जब लोकसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने, डॉक्टर हर्षवर्धन के बाद जेपी नड्डा को स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा दिया गया।

मोदी और शाह से रिश्ते
लो-प्रोफाइल रहने वाले नड्डा को बीजेपी के लगभग सभी बड़े नेताओं का समर्थन हासिल रहा। नड्डा के रिश्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी काफी अच्छे रहे हैं। एक अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मोदी जब हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे, तब से दोनों के बीच समीकरण काफी अच्छा है। दोनों अशोक रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय में बने आउट हाउस में रहते थे। अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद बीजेपी में नड्डा को अहम भूमिका रही है क्योंकि दोनों पार्टी के यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा में साथ काम कर चुके हैं। जब नड्डा भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उसके बाद अमित शाह भाजयुमो के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने थे।

केंद्र की ओर रुख करने से पहले हिमाचल प्रदेश में वह बेहद कद्दावर नेता बनकर उभरे थे। कम उम्र में ही बीजेपी के साथ उनका जुड़ाव रहा। जमीनी स्तर से उठकर उन्होंने यहां तक का सफर किया है, जिससे अनुभव के आधार पर राजनीति समस्याओं को शांति से सुलझाना उनकी काबिलियत में शुमार हो गया। वह हमेशा अपने भाषणों में आरोप-प्रत्यारोप के बजाय मुद्दों और विज़न की बात करते रहे हैं। ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि वह अध्यक्ष के तौर पर काफी सकारात्मक बदलाव कर सकते हैं। देश में ढर्रे पर चली आ रही निजी छींटाकशी वाली राजनीति को बदलने में उनकी भूमिका रह सकती है।

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