हुआ यूँ की दिल्ली की दौड़धूप की जिंदगी और सॉफ्टवेयर इंजीनियर की रूटीन जॉब के बीच अभी होली की पांच छुट्टियां आ गई तो मैंने और मेरे दोस्त रवि ने प्लान बनाया की क्यों न इनका सदुपयोग किया जाए। हिमाचल के बारे में पढ़ते पढ़ते अचानक मेरी नजर एक आर्टिकल पर पड़ी जिसमे हिमाचल प्रदेश के जिला किन्नौर के छितकुल का जिक्र था। फिर क्या बुलेट की सर्विस करवाई गर्म कपडे जरुरत का सामान बैग में पैक किया और निकल पड़े दिल्ली से किन्नौर के सफर पर।
दो पहिए जो ले गए जन्नत की ओर |
शिमला तक तो पहले भी गए ही थी उसके आगे जो हमारा पहला पड़ाव था वो था रामपुर बुशेहर। अब हम ठहरे फक्कड़ सन्यासी सस्ते में विस्वास रखने वाले धर्मशाला में रात गुजारी सुबह माँ भीमाकाली का आशीर्वाद लेने सराहन पहुँच गए। वहां के लोगों से बात करने पर पता चला इस मंदिर का सबन्ध महाभारत काल से है। काष्ठ कला का अलग ही नमूना यह मंदिर पहाड़ी शैली में बना है और अपने आप में अनूठा है। वहां का वातावरण एकदम सुन्दर और शांत। जैसे ही बाहर आए पारम्परिक वेशभूषा पहने हुए पहाड़ी औरतों ने घेर लिया और होली पर रंग लगाने को कहा। एक तो होली का पर्व मैं ठहरा इसका शौकीन जम के होली खेली और आगे बढ़ गए।
सतलुज की अविरल धारा |
गरूर के साथ सफेद चादर ओढ़े खड़े पर्वतराज हिमालय का असली रूप अब दिखने लगा था। ऊबड़ खाबड़ रास्ते से होते हुए थकान भी अब हावी होने लगी थी की एक पहाड़ की ओट से जैसे आगे मोड़ मुड़ा तो जो देखा हम अवाक रह गए अद्भुत नैसर्गिक शांत एक घाटी सामने थी यह सांगला घाटी थी। वहां की हवा में एक संगीत था। हर तरफ ताज़गी का एहसास था। हमने रात इसी जन्नत में गुजारने का फैसला लिया।
चलना ही जिंदगी है |
अगले दिन हम आगे बढे रकछम गावँ में मार्च महीने में भी बर्फ का दिखना हमारे लिए अजूबे से कम नहीं था। रास्ते में हम रुके लोगों से बात करी उनका रहन सेहन जाना और पहुंचे छितकुल उस बॉर्डर की तरफ से भारत का आखिरी गांव। सुंदरता की हद कहाँ तक हो सकती है यह छितकुल गांव को देख कर समझा जा सकता है। ऐसे जगह जिसकी कल्पना हम स्वप्नों में करते हैं यह उस से भी परे था।
मेरे मुल्ख का एक कोना |
वहां फौजी भाई लोगों से भी बात हुई। उन्होंने हमें चाय पिलाई हमने उनके साथ भी गपशप की। और अगली सुबह इस जन्नत को भारी मन से विदा कहते हुए रास्ते के हर मोड़ को फिर आने का वादा करते हुए अठखेलिया करती हुई सतलुज के साथ साथ हम भी रामपुर शिमला और फिर दिल्ली की ओर आ गए। हिमाचल प्रदेश और किन्नौर के बारे में मैं बस यह कहना चाहूंगा की पहाड़ का मजा मंजिल में नहीं सिर्फ सफर में है चलते जायो और यहाँ की ताज़ा हवा , खूबसूरती के साथ बहते जाओं