सन् 1643 में शोभा चंद ने अर्की नगर बसाया था और इसे राजधानी बनाया था। शोभा चंद ने अर्की में सुन्दर महल बनाये और इन महलों की दीवारों को पहाड़ी कलम के चित्रों से उकेरा। अर्की शिमला से 45 किलो मीटर दूर और सोलन से लगभग 70 किलोमीटर दूर है। पहाड़ी लोक संस्कृति और कला के रूप में बाघल (अर्की) का नाम विख्यात है। अर्की के पास ही एक बहुत बड़ा गांव बातल है, जिसे ‘छोटी काशी’ के नाम से जाना जाता है।
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अर्की का प्राचीन राजमहल और किला और पुरातन काल का स्मरण कराने वाले महलनुमा भवन खंडहर अर्की के अतीत की समृद्धि का स्मरण कराते हैं। यहां यह उल्लेखनीय है कि अर्की का राजमहल आज अपने प्राचीन गौरव व वैभव की गाथा सुना रहा है। एक ऊंची पहाड़ी पर बने इस महल के ‘दीवानखाना'(रंगमहल)में बनी भित्तिचित्रकला अत्यन्त लुभावनी है।
ये भित्तिचित्र अपने समय की अत्यन्त समृद्ध ‘कांगड़ा शैली भित्तिचित्रकला’ से संबद्ध माने जाते हैं। इन भित्तिचित्रों पर समय की चोट का कोई प्रभाव नहीं पड़ पाया है। पूरे हाल (रंगमहल) में चारों ओर, मध्य के खम्बों पर और छत में ये चित्र बनाए गए हैं। इन्हें देखकर तत्कालीन समाज की रुचि, रीति, प्रवृत्ति और प्रकृति का स्पष्ट चित्र सामने आने लगता है। लगता है कि ये भितिचित्र किसी एक विषय-वस्तु विशेष को सामने रखकर नहीं बनाए गए, बल्कि राजा की रुचि अथवा चित्रकार की कल्पना ही की उपज है।
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दीवारों पर शानदार चित्रकारी |
बाघल रियासत में कला को अधिक प्रोह्त्सान का कारण इस रियासत के राजाओं का कला प्रेमी होना भी था। सन 1840 में किशन सिंह सिंह ने अर्की को सुनियोजित नगर बनाया तथा अर्की का महल बड़ा किया। किशन सिंह को 1857 अंग्रेजों ने राजा की उपाधि प्रदान की थी। यह क्षेत्र वन्य-जीवों और वनस्पति से भरपूर था। है।अर्की में स्थित कुनिहार घाटी सोलनके प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है। कुनिहार हटकोट और छोटी विलायत के नाम से भी प्रसिद्द है।
इस घाटी की खोज सन 1154 में जम्मू के रघुवंशी राजपूत अभोज देव द्वारा की गई। यह घाटी श्री देवी मंदिर और श्री दानो देवता मंदिर देखने का अवसर भी प्रदान करती है जो क्रमशः कुलजा देवी और दानो देवता को समर्पित हैं। कुनिहार घाटी का एक अन्य प्रमुख आकर्षण कुनिहार तालाब है।बाघल रियासत शिमला के पहाड़ी रियासतों के सुपरिटेंडेंट की निगरानी में थी। 15 अप्रैल,1948 को यह रियासत भी हिमाचल मैं शामिल हो गई।
लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)
(पाठक भी किसी रियासत के इतिहास का विवरण inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।)