राजसी वैभव की कथा सुनाती हिमाचल की सिरमौर रियासत

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  •  विवेक अविनाशी

नाहन  के चौगान मैदान के बिलकुल सामने खड़ा रणजोर पैलेस आज भी सिरमौर रियासत के राजसी वैभव की गौरव गाथा सुनाता है l इस रियासत के अंतिम शासक महाराजा   राजेंद्र प्रकाश ने देश की आज़ादी के बाद 13 मार्च ,1948 को भारत संघ में विलय के लिए हस्ताक्षर किये और 15 अप्रैल 1948 को सिरमौर  हिमाचल प्रदेश का एक जिला बना।  

 राजेंद्र प्रकाश 1934 में सिहासन पर बैठे थे।   18वीं सदी तक सिरमौर रियासत की सीमायें पूर्व में टीहरी गड़वाल, उत्तर में रामपुर बुशहर,दक्षिण में अम्बाला  व पश्चिम में  पटिआला रियासत के कुछ भू-भाग तक फैले हुई थी।    कर्नल फ्रांसिस मैसी द्वारा वर्णित अँगरेज़ शासकों की तरतीबवार दरबार में बैठने वाली फेहरिस्त  में सिरमौर रियासत के राजा शमशेर प्रकाश, जो 1856 में सिंहासन पर बैठे, को 13 तोपों की सलामी दी जाती थी , इनमे से दो तोपें राजा की निजी तोपें थीं।
उस समय सिरमौर रियासत की वार्षिक आय 3 लाख रूपये  और  जनसंख्या11,271 थी।   आय के आधार पर सिरमौर के राजा के दरबार में बैठने का स्थान दूसरा था।   अंग्रेजों के वक्त में इस रियासत के पोलिटिकल अफसर शिमला पहाड़ी रियासतों के सुपरिटेंडैट थे।

सन  1800 में सिरमौर रियासत की स्टंप
राजा कर्म प्रकाश ने  सन 1621 में नाहन को राजधानी बनाया और आठ वर्ष तक राज किया l इससे पूर्व सिरमौर रियासत की राजधानी कालसी थी l सिरमौर में सबसे अधिक जन कल्याण कार्य राजा शमशेर प्रकाश के काल में हुएl सन 1867 में नाहन फाउंड्री की स्थापना भी राजा  शमशेर प्रकाश के काल में हुईl
सिखों के दसवें गुरु गोविन्द सिंह भी पोंटा साहिब जाते हुए यहाँ रुके थे।

नाहन फोर्ट का चित्र 1850 (Source www. wikipedia.org)

विभिन्न इतिहासकारों के अनुसार सिरमौर रियासत पर 11वीं सदी से लेकर हिमाचल प्रदेश में विलय तक 44 से ले कर 48 राजाओं ने राज किया l  सिरमौर का पहला राजा सुभाहंस प्रकाश था।  स्वर्गीय परमानन्द शास्त्री ने इन्दुकाव्यम के पांचवें सर्ग  से ले कर सातवें सर्ग तक सिरमौर की कथा का वर्णन किया है।   उन्होंने अपने इस  काव्य में 46 राजाओं का उल्लेख किया है।   परमानन्दशास्त्री ने  अपने काव्य में नटनी की कथा का भी उल्लेख किया है जिस के श्राप के  कारण 11वीं सदी में सिरमौर की तत्कालीन राजधानी सिरमौरी ताल राजा समेत नष्ट हो गयी थी।

इन्दुकाव्य्म की परमानंद जी की हस्त लिखित पांडुलिपि

इन  हिमाचल ,का सोभाग्य है कि यह फोटो प्रति हमारे पाठक  सतीश धर ने  विशेष रूप से हमें प्रेषित की हैl  जो खुद भी एक लेखक हैं लेखक सतीशधर ने स्वर्गीय परमानंद की पुस्तक ‘भारत और भारतीय संस्कृति ‘ का सह-सम्पादन उनके पुत्र रमेश शर्मा के साथ किया है।  


1877 में बनाया गया  Lytton  मेमोरियल 


लेखक हिमाचल प्रदेश के हितों के पैरोकार हैं और जनहित के मुद्दों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। इन दिनों ‘इन हिमाचल’ के नियमित स्तंभकार हैं। उनसे vivekavinashi15@gmail.com के जरिए संपर्क किया जा सकता है)